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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/२३

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२८ हितोपदेश उसके पास आने पर हिरण उससे बोला : मित्र मै जाल में फंस गया हूँ। तुम्हारे दाँत तो बहुत तीखे है । कृपा करके मेरे बन्धनों को काट दो । हिरण की बात सुनकर सियार ने जाल की ओर देखा और सोचा-यह तो बडे मजबूत जाल में फंसा हुआ है । अब यह किसी भी तरह नही छूट सकता । वह कुछ सोचकर बोला : मित्र, यह काम तो कोई कठिन नहीं था। पर, आज रवि- वार का दिन है और मेरा आज व्रत है । अगर मैं अपने दाँतों से ताँत के वने इस जाल को काटता हूँ तो व्रत खण्डित हो जायेगा । मुझे पाप भी लगेगा । हाँ, अगर तुम थोड़ा धैर्य रखो तो कल सुबह मै आऊँगा और तुम्हारे देखते-ही-देखते इस जाल के टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा। हिरण सियार का उत्तर सुनकर हैरान रह गया। उसे गीदड से स्वप्न में भी ऐसी आशा न थी। गीदड़ हिरण के सामने से एक ओर हो गया और थोड़ी दूर पर एक झाड़ी में छिपकर बैठ गया। उसके मुंह मे बार-बार पानी भर आ रहा था। वह सोच रहा था कि कब खेत का स्वामी आए और गरी कई दिनों की इच्छा पूरी हो। इधर कौए ने जब हिरण को ठीक समय अपने स्थान पर नहीं पाया तो चिन्तित हो उठा । कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद वह उसे खोजने निकला । कुछ दूर उड़ने पर उसने हिरण को जाल में फंसा देखा। कौवा हिरण के पास पहुंचा और बोला : मित्र, आज तुम्हारा परम मित्र कहाँ है ? सरो हिरण : कौन सियार ? उसका नाम मत लो । गया तो