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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/२५

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३० हितोपदेश मित्र, तुम लधुपतनक ने उत्तर दिया : मित्र ! मित्र को खाने से किसी का पेट सदा के लिए तो भर नही जाता। फिर तुम तो इतने छोटे हो कि मेरा एक समय का आहार भी नही वन सकते। हिरण्यक : आप हमारे शत्रुपक्ष के है । शत्रुपक्ष का प्राणी कभी भी भलाई नही कर सकता । पानी कितना भी गरम क्यों न हो आग को बुझा ही देता है । हिरण्यक के वारंवार इन्कार करने पर भी लघुपतनक नही माना और बोला : जो कुछ कह रहे हो, वह सब मै पहले ही सुन चुका हूँ । वास्तव मे मै प्रतिज्ञा कर चुका हूँ कि या तो तुम्हारे साथ मित्रता ही करूँगा अन्यथा आत्महत्या कर लूंगा। मुझे इस बात का दुःख नही कि आप मुझ से रूखेपन से बाते कर रहे है। मै जानता हूँ कि सज्जन लोग नारियल के फल के समान होते है। ऊपर से तो वह रूखे-सूखे दिखाई देते है और अन्दर से मीठे और सरस होते है। बेर की भाँति नही कि जिसके ऊपर तो मिठास होता है, पर अन्दर गुठली होती। इसके साथ-साथ सज्जनो मे एक गुण और भी होता है। वे लोग प्रीति के टूटने पर भी सम्बन्ध नही तोड़ते। आप में ये सव गुण है। आपके अतिरिक्त आप जैसा मित्र मुझे और वहां मिलेगा ? अतः हे मित्रवर ! आप बिल से बाहर निकला के किर मुझ से मैत्री करो। हिरण्यक लघुपतनक के श्रद्धायुक्त वचन सुनकर वह प्रसन्न हुआ और अपने विल से बाहर निकल आया। हिरण प्रक लघुपतनक से गले मिलते हुए वोला : .