५ धन-संचय का बुरा परिणाम दानं भोगो नाशस्त्रयोगतयो भवन्ति वित्तस्य, यो न ददाति न भुडुक्ते तस्य तृतीयागतिवति । धन की केवल तीन ही गतियां होती है-दान, भोग और नाश । जो दान नहीं देता, भोग भी नहीं करता, उसके धन की तीसरी गति होती है । उसका धन नष्ट हो जाता है। o चम्पक नामक नगर में संन्यासियों का एक मठ है। किसी समय उस मठ में चूडाकर्ण नाम का एक संन्यासी रहता था। वह हाजन से बचे हुए अन्न को खूटी पर टांगकर सोता। उस सो जाने पर मैं उछल-कूदकर उस अन्न को खा लिया करा था। एक दिन उसका वीणाकर्ण नाम का एक मिन उसति मिलने आया । वे दोनों आपस में बात-चीत करने लगे। भूख से व्याकुल होकर मै भी उछल-उछलकर खूटी पर टंगे भिट, पात्र की ओर बढ़ने लगा। चूडाकर्ण वीणाकर्ण के साथ वात- चीत करने के साथ-साथ हाथ में फटा बांस लेकर पृथ्वी पर मार- कर बजाता जा रहा था। यह देखकर वीणाकर्ण बोला : . ।