सुहृद भेद विश्वास करता आया हूँ। फिर आज तुम्हे कैसे यह गका हुई? दमनक : महाराज, मुझपर आपका विगेप अनुग्रह है। तभी तो मैं सब सत्य-सत्य आपको बताता हूँ। वात यह है कि आपने यह ठीक नहीं किया कि सव मन्त्रियों के हाथ से कार्य छीन लिए और केवल संजीवक को उनका अधिष्ठाता वना दिया। आज उसी का यह फल है कि संजीवक अव आप को इस वन का राजा नही देख सकता। वह आपकी हत्या का पड्यन्त्र रच रहा है। पिंगलक वह मुझे मारना चाहता है ! दमनक : महाराज केवल चाहता ही नहीं, उसन इसका प्रवन्ध भी कर लिया है। इतना सुनना था कि पिंगलक भयभीत होकर सोचने लगा अव क्या किया जाये संजीवक बहुत वलगाली है। उससे युद्ध करना कोई आसान काम नहीं । पिंगलक को चिन्ताग्रस्त देखकर दमनक बोला महा- राज, आप विशेप चिन्ता न करे। दमनक के रहते आपका कोई बाल भी बांका नही कर सकता। पिंगलक तो क्या किया जाये। सजीवक को वन से निकाल दिया जाये? दमनक : यह तो बड़ी भारी भूल होगी। वह वाहर जाकर फिर हमे परास्त कर सकता है । पिंगलक . इन सब बातों से पहले हमे सोचना चाहिए कि वह हमारा विगाड़ क्या सकता है ? दमनक : किसी के सहायक एव साथियों को विना जाने यह निश्चय हो ही नहीं सकता। आपको यह सुनकर महान्
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