९२ हितोपदेश गधा मजे से खेतों में चरता फिरता। धीरे-धीरे यह बात सारे गांव में फैल गई । कई किसानों ने तो खेतों पर जाना भी छोड़ दिया। इस तरह कुछ ही दिनों में गधा फिर से मोटा-ताजा हो गया। एक दिन किसी किसान ने सोचा-यह चीता अब कहां से आने लगा । पहले तो यह कभी आता नही था। उसने एक काला कम्बल ओढ़ लिया और हाथ में तीर कमान लेकर झुककर खड़ा हो गया । गधा धीरे-धीरे चरता हुआ उधर निकला। उसने दूर से ही इस किसान को देखा । जरूर यह भी कोई गधा है, यह सोचकर गधा अपने स्वर में चिल्लाता हुआ किसान की ओर दौड़ा। तब तो किसान ने खेल-ही-खेल में उसका काम तमाम कर दिया। इसलिए मै कहता हूँ कि अपने और दूसरे के बल को अवश्य देख ले। x x x x दीर्घकर्ण : इसके बाद वे बोले : मूर्ख बगुले ! तू हमारे राज्य में ही विचर रहा है और हमारी ही बुराई करता ? यह कहकर वे मुझे अपनी चोचों से मारने लगे और बोले: वगुले ! सुन, तेरा राजा भी तो बहुत कोमल है ? वह अपनी ही रक्षा नही कर सकता फिर राज्य की क्या रक्षा करेगा। तू तो मूर्ख है ! यदि किसी वृक्ष के नीचे ही रहना है तो कोई बड़ा भारी वृक्ष खोजना चाहिए। क्योंकि यदि भाग्यवश वह फल न दे तो क्या ? उसकी छाया तो कोई नहीं छीन लेता ? किस राजहीन के राज्य में तू रहता है ? सदा किसी पराक्रमी राजा के आश्रय में रहना चाहिये। क्योंकि सिंह की अनुकम्पा
पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/८७
दिखावट