सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/११३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पहला अध्याय ३१ परंतु जब कबीर में वर्ण-भेद के विरुद्ध मुसलमानी अरुचि के साथ उच्च वेदांती-भावों का समन्वय हुआ तो परंपरागत समाज-व्यवस्था का एक ऐसा कट्टर शत्रु उठ खड़ा हुआ, जिसने उसके भेद-भाव को पूर्ण- तया ध्वस्त कर देने का उपक्रम कर दिया । इस प्रकार कबीर के नायकत्व में इस नवीन निर्मु णवाद में समय की सब आवश्यकताओं की पूर्ति का आयोजन हुआ। इतना ही नहीं इसमें भारतीय संस्कृति का बड़े सौम्य रूप में सारा निचोड़ आ गया। कबीर के रंगभूमि में अवतरित होने के पहले ही इस आंदोलन ने अपनी सारग्राहिता के कारण भारत की समस्त आध्यात्मिक प्रणालियों के सारभाग को खींचकर ग्रहण कर लिया था। भारत में समय-समय पर उत्थित होनेवाले प्रत्येक नवीन आध्यात्मिक आंदोलन ने भारम- संस्कार के मार्ग में जो-जो सारयुक्त नवीन तव्य निकाले वे सब इसमें समन्वित होते गये। योगमार्ग, बौद्धमत, तंत्र आदि सबके कुछ न कुछ चिह्न इसमें दिखाई देते हैं जिनका यथास्थान वर्णन किया जायगा । कबीर के हाथ में इसने सूफी मत से भी कुछ ग्रहण किया। सामाजिक व्यवहार तथा पारमार्थिक साधना दोनों के क्षेत्र में पूर्ण ऐक्य तथा समानता के प्रचार करनेवाली समस्त प्राध्यात्मिक प्रणालियों के सार स्वरूप इस आंदोलन का नायकत्व कबीर के बाद सैकड़ों उदार- चेता संतों ने समय-समय पर ग्रहण किया और जी जान से उसके प्रसार का प्रयत्न किया। निर्गुण संप्रदाय के सिद्धांतों का विस्तृत विवे- चन करने के पूर्व यह आवश्यक है कि हम उनका कुछ परिचय प्राप्त कर लें । अतएव आगे के अध्याय में उन्हीं का संक्षिप्त परिचय दिया जाता है।