दूसरा अध्याय ३५ गुरु बनाकर वह भक्ति-पथ में अग्रसर हुआ और विठोबा की भक्ति में अपने जीवन को उत्सर्ग करके एक उच्च कोटि का संत हो गया। अपने जीवन का अधिक समय उसने पंढरपुर में विठोवा (विष्णु) के मंदिर में ही बिताया। परन्तु, अंत में वह तीर्थाटन के लिए निकला और समस्त उत्तर का भ्रमण करते हुए पंजाब पहुँचा। वहाँ लोग बड़ी संख्या में उसके चले हुए । गुरदासपुर जिले में गुमान नामक स्थान पर अब तक नामदेव का मन्दिर है। इस मन्दिर के लेखों से पता चलता है कि नामदेव का निधन यहीं हुआ था। मालूम होता है कि उनके भक्त उनके फूल पंढरपुर ले गये जहाँ वे विठोवा के मन्दिर के आगे गाड़ दिये गये। नामदेव की कुछ हिंदी कविताएँ आदि ग्रंथ में संगृहीत हैं, जिनमें उनके कई चमत्कारों का उल्लेख है, जैसे उनके हठ करने पर मूर्ति का दूध पीना, मरी हुई गाय का उनके स्पर्श से जीवित हो उठनाx, परमात्मा का स्वयं आकर उनकी चूती छत की मरम्मत कर जाना+ और नीच जाति का होने के कारण मन्दिर से उनके बाहर निकाले जाने पर मूर्ति का पंडित की ओर पीठ कर उसी दिशा में मुड़ जाना जिधर वे मन्दिर के बाहर बैठे थे। अंतिम चमत्कार का उल्लेख कबोर ने भी किया है। त्रिलोचन नामदेव का समकालीन था। उसकी भी कुछ कविता दूध कटोरे. -'ग्रंथ', पृ० ६२६. x सुलतान पूछे सुन बे नामा"-'ग्रंथ' । + घर...-'ग्रंथ', पृ० ६६२ । हँसत खेलत...-'ग्रंथ', पृ० ६२६ । - पंडित दिसि पछिवारा कीना, मुख कीना जित नामा । -क ग्रं०, पृ० १२७, १२२ ।
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