। हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय सृष्टि है । इसके विपरीत स्त्रियों को इस बात के लिए. उनका अगो- होना चाहिए कि उन्होंने उनके लिए भी भक्ति का द्वार खोल दिया है । निगणियों ने स्त्रियों को अपने शिष्य रूप में भी स्वीकार किया था । दाद, की कुछ स्त्री शिष्याएं थीं जो उच्च परिवारों की थीं। चरणदास की शिष्याए सहजोबाई व दयाबाई निर्गुण पंथ के परमोच्च 'रत्नों में से हैं। कबोर की स्त्री जिसका जो भी नाम रह। हो एक पूर्ण शिष्य का उदाहरण स्वरूप थी। फिर, अपने विश्व प्रेम के नाते से भी निर्गुणी दूसरों को निर्बलता का विशेष ध्यान रखते हैं। जहाँ कहीं उन्हें दोष दीख पड़ेगा उसे वे दूर करने की चेष्टा करेंगे। किन्तु किसी के दोष का विरोध करते हुए भी वे उसे हानि पहुँचाना नहीं चाहते। वे बुराई के शत्रु हैं, बुराई करनेवाले के नहीं। वे अपने प्रति किये गये किसी भी अपमोन को मुस्कराहट के साथ सहन कर लेते हैं। 'शटे शाख्यम्' की नीति बुराई को बढ़ा दिया करती है । भलाई के बदले भलाई करने में कोई विशेषता नहीं है किन्तु बुराई के बदले बुराई करना बुराई दूर करने का कभी साधन नहीं बन सकता । कबीर कहते हैं कि 'जब कभी तुम्हें कोई गाली देता है तो वह दुवैचन अकेला रहता है किन्तु जब तुम उसका बदला दे देते हो, वह कई गुना बन जाता है। बुराई को जड़ से दूर करने का असलो उपाय उसे करनेवाले के प्रति भलाई करना है । असत्य का विरोध यदि सत्य से किया जाय तो असत्य निर्मूल हो जायगा । बुराई के लिए भी यदि भलाई करो तो + जेती औरति मरदाँ कहिये सबमें रूप तुम्हारा । क० ग्र० पृ० १७६, २५६ । + गारी प्रावत एक है पलटत होय अनेक । सं० बा० सं० पृ० ४५ ।
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