पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४४९

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षष्ठ अध्याय हुए कबीर ने कहा है कि मैंने अपने शब्दों में आत्मोपलब्धि के साधनों का सार देकर उसकी व्याख्या की है।*" एक सौंदर्य के रहस्यवादी का जो स्त्रियों की मनोमोहकता में भी ईश्वरत्व के दर्शन करता है हम केवल यही कह सकते हैं कि "वह एक, तेजस्वी देव है जिसके हृदय एवं मस्तिष्क विशाल हैं और जो केवल सौंदर्य का ही प्रेमी है ( वह सौंदर्य जो प्रत्येक प्रकार के रूप व चित्र में पाया जा सकता है ) i" निर्गुणी कवि, कोट्स कवि के साथ-साथ कह सकते हैं कि 'सौंदर्य की वस्तु सदा आनंदप्रदायक होती है, परन्तु सौंदर्य उनके लिए वाह्य आकृति के अनुपातों में न होकर उस वस्तु की सुसंगति में पाया जाता है जिसे टेनिसन ने 'चित्त' अर्थात् आत्मा कहा है। हृदय के सौंदर्य से विहीन रूप-सौंदर्य की वे निंदा करते हैं । ' सोने के बर्तन में भी भरी हुई मदिरा. की साधु लोग निंदा ही किया करते हैं ।+" उनका लक्ष्य सदा नियमित व संयत जीवन का रहा है। जब आगे चलकर, काव्य में की विलासिता की प्रतिध्वनि सुन पड़ने लगी और हिंदू करद सामन्तों के यहाँ भी उनके अनुकरण की होड़ लग गई तथा स्त्रियों के नखशिख की चर्चा प्रतिदिन का कार्य बन गई तो उन्होंने इसके विरुद्ध सर ऊँचा किया। इस प्रकार की कविता केवल निम्नस्तर के मनोविचार जाग्रत करने का साधन मात्र थी। सुन्दरदास ने उसे अस्वास्थ्यकर असंयम ठहराया मुगल दरबारों -तुम्ह जिन जानौं गीत है, यह निज ब्रह्म विचार रे । केवल कहि समझाइया, आतमसाधन सार रे ।। क० ग्र० पृ० ८६ पद ५। 1-A glorious Devil, large in heart and brain. That did love beauty only (Beauty seen In all varieties of mould and mind)—Tennyson. +--सोवन कलस सुरै भरया, साधू निद्या सोइ । क० ग्रं॰, पृ० ४८।