पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/५२०

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हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय जो नागर तथा गिरिधर है। +' वह अनाहत नाद को श्रवण करती है " और अनादि एवं अविनाशी प्रीतम को पाकर जरा मरण से मुक्त हो जाती है । =" इस प्रकार मीरा में हमें सगुण या निर्गुण दोनों प्रकार के उदाहरण मिलते हैं और यदि हम लोग इस बात का ध्यान रखें कि उन्हें रामानन्द के शिष्य रैदास अथवा उनको रचनाओं से प्रेरणा मिली थी तो हमें आश्चर्य करने का कोई कारण न मिलेगा। मीराबाई मेड़ता के राव बोरमदेव के अनुज रतनसिंह की पुत्री थीं। उनका जन्म लगभग सन् १४९८ ई. हुआ था विवाह राणा साँगा के पुत्र भोजराज के साथ सन् १५१६ ई० में हुआ था । लगभग सन् १५१८ में वे विधवा हुई थीं और सन् १५४६ ई. में मर गई । ( गौरीशंकर हीराचन्द ओझा : राजस्थान का इतिहास पृ० ६.५.०.१ ) । २. बावरी, बीरू, भीखा, अजबदास और शाहफकीर-- यावरी और पारी के गुरू बीरू निर्गुण सम्प्रदाय के इतिहास में तबतक थुधले चिन की .. +-नैनन बनज बसाऊँगे, जो मै माहब पाउँरी । इन ननन मोग साहब बसता, डरती पलकन नाऊँग । त्रिकटी महल में बना हे झरोग्या, तहाँ से झोंकी लगाऊँग । सुन्न महल में सुरति जनाऊ, मुख की सेज बिछाऊँरी । मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बार-बार बलि जाऊँ ।। -वही ( ३०-६८)।

  • -बिन करताल परनावग बाजे, अनहद की झनकार रे ।।

-वही (४२-१ )। =-साहब पायाँ प्रादि अनादी, नातर भब में जानी ।। -वही, ( १-१ )।