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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/५२४

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हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय अतिचेतन होता है। किंतु कबीर में कभी-कभी इसकी विचिन्न व्युत्पत्ति दीख पड़ती है और बिना अर्थ के परिवर्तन के यह उनमन .( वहमन ) समझा जाता है जो इनमन ( यहमन ) के विपरीत है। ब्रह्म को 'तत्' भी कहा गया है और इसीलिए सत्य को तत्व कहते हैं । इन संतों के अनुसार हमारे भीतर का सत्य 'उनमन' अथवा वह मन है जो परात्पर ( तन्मनत्व ) के साथ संबद्ध है। यह प्रकाशमय मन है जो 'इनमन' अर्थात् सांसारिक अनुभवोंवाले मन के विपरीत है और जो इसी कारण 'खाकी' वा धूलिमय है।