वर्णन किया था ।* उन्होंने वहां पर बतलाया था कि निरंजनी धारा के अनेक संतों में से हरिदास, तुलसीदास और सेवादास की बहुत सी बानियाँ मेरे पास सुरक्षित हैं तथा खेमजी, कान्हड़दास और मोहनदास की भी कुछ कविताएँ कई संग्रहों में मिलती हैं। इस संप्रदाय के मनोहर- दास, निपट निरंजन तथा भगवानदास के उल्लेख पहले से भी होते पा रहे थे और उनकी कुछ रचनाएँ भी उपलब्ध थीं । परंतु उपर्युक्त संतों की चर्चा कुछ भक्तमालों के अतिरिक्त अन्यत्र बहुत कम सुनी गई थी और ऐसे सभी संतों को एक पंथ में लाकर उनका परिचय देने का प्रयत्न उसके पहले किसी ने भी नहीं किया था। इन संतों की विशेषता इनके नाथपंथ-द्वारा अधिक प्रभावित होने तथा इनकी सगुणोपासना के प्रति सहिष्णुती में दीख पड़ती है और डा० बड़थ्वाल ने इन्हें इसी कारण नामदेव जैसे पूर्वकालीन संतों का समकक्ष माना है। परंतु, इस विचार से देखा जाय तो योगसाधना एवं कृष्ण भक्ति की अोर बहुत कुछ उन्मुख रहने वाले चरणदाम तथा उनके संप्रदाय के सम्बन्ध में भी हमें यही स्वीकार करना पड़ेगा। निरंजनी संप्रदाय की अब तक उपलब्ध रचनाओं के अध्ययन से ऐसी कोई भी विशेष बात लक्षित नहीं होती जिसके आधार पर हम इमे, डा० बड़थ्वाल के शब्दों में नाथपंथ एवं संत संप्रदाय के बीच की एक महत्वपूर्ण लड़ी' मान लें। इस संप्रदाय के प्रमुख प्रवर्तक हरिदास अपनी रचनाओं में कबीर को कहीं-कहीं अपना आदर्श मानते हुए भी दीख पड़ते हैं और इन दोनों संतों के सिद्धान्तों, व बहुत कुछ साधनाओं, में वैसी भिन्नता न होने के कारण भी उक्त कथन को अधिक महत्व देना उचित नहीं जान पड़ता। डॉ० बड़थ्वाल ने जिस सबसे गम्भीर विषय की चर्चा अपने निबन्ध -देखिये 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका', सं० १९६७, पृ०७१-८८। -सम्पादक
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