जो आर्य्य काबुल की पार्वत्य भूमि से पंजाब में आये वे सब एक दम ही नहीं आ गये। धीरे-धीरे आये। सैकड़ों वर्ष तक वे आते गये। इसका पता वेदों में मिलता है। वेदों में बहुत सी बातें ऐसी हैं जो इस अनुमान को पुष्ट करती हैं। किसी समय कंधार में आर्य्यसमूह का राजा दिवोदास था। बाद में सुदास नाम का राजा सिन्धु नदी के किनारे पंजाब में हुआ। इस पिछले राजा के समय के आर्य्यों ने दिवोदास के बल, वीर्य्य और पराक्रम के गीत गाये हैं। इससे साबित होता है कि सुदास के समय दिवोदास को हुए कई पीढ़ियाँ हो चुकी थीं। आर्य्यों के पंजाब में अच्छी तरह बस जाने पर उनके कई फ़िरके़-कई वर्ग-हो गये। सम्भव है इन फ़िरक़ों की एक दूसरे से न बनती रही हो। इनकी बोली में तो फ़रक़ ज़रूर हो हो गया था। उस समय आर्य्यों का नया समूह पश्चिम से आता था और पहले आये हुए आर्य्यों को आगे हटाकर उनकी जगह खुद रहने लगता था।
उस समय के आर्य्य जो भाषा बोलते थे उसके नमूने वेदों
में विद्यमान हैं। वेदों का मन्त्र-भाग एक ही समय में नहीं