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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।


भाषा या बोली से नहीं निकलीं। वे पूर्वोक्त गौड़ अपभ्रंश से उत्पन्न हुई हैं जो पश्चिम की तरफ़ बोली जाती थीं।

मागध अपभ्रंश उत्तर, दक्षिण और पूर्व तीन तरफ़ फैली हुई थी। उत्तर में उसकी एक शाखा ने उत्तरी बँगला और आसामी की उत्पत्ति की, दक्षिण मेँ उड़िया की, पूर्व में ढक्की की, और उत्तरी बँगला और उड़िया के बीच में बँगला की। ये भाषायें अपनी जननी से एक सा सम्बन्ध रखती हैं। यही कारण है जो उत्तरी बँगला सुदूर दक्षिण में बोली जानेवाली उड़िया से, मुख्य बँगला भाषा की अपेक्षा अधिक सम्बन्ध रखती है--दोनों में परस्पर अधिक समता है।

जैसा लिखा जा चुका है पूर्वी और पश्चिमी प्राकृतों की मध्यवर्ती भी एक प्राकृत थी। उसका नाम था अर्द्ध-मागधी। उसी के अपभ्रंश से वर्तमान पूर्वी हिन्दी की उत्पत्ति है। यह भाषा अवध, बघेलखण्ड और छत्तीसगढ़ में बोली जाती है।

भीतरी शाखा

यहाँ तक बाहरी शाखा की अपभ्रंश भाषाओं का ज़िक्र हुआ। अब रही भीतरी शाखा की अपभ्रंश भाषायें। उनमें से मुख्य अपभ्रंश नागर है। बहुत करके यह पश्चिमी भारत की भाषा थी, जहाँ नागर ब्राह्मणों का अब तक बाहुल्य है। इस अपभ्रंश में कई बोलियाँ शामिल थीं, जो दक्षिणी भारत के उत्तर की तरफ़ प्राय: समग्र पश्चिमी भारत में, बोली जाती थीं। गङ्गा-यमुना के बीच के प्रान्त का जो मध्यवर्ती भाग है। उसमें नागर अपभ्रंश का एक रूप, शौरसेन, प्रचलित था।