पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२५८

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नापान २२९ . . एक वर्ष किसी जमीनम खती नहीं करेगा, उम जमीनमें | जायगे। इसके अलावा जापानमें पोर एक प्रकारका उसका कुछ भी स्वत्व नहीं रहेगा।" माय है जिसे 'मामाका गाटो' या 'दोधा' कहते हैं। जापानके घोड़े मध्यमाकारक होते हैं, किन्तु वे | यदुतसे मापानी इस मापको दिखा कर अपनी जीविका प्रतान्त वलिष्ठ होते हैं। इनकी संख्या बहुत कम है। निर्वाह करते हैं। जापान के लोग प्रायः आरोहण करने के लिये ही घोड़े नापानमें तरह तरहको मनियां पाई जाती है। पालते हैं। गाड़ी खींचने वा दलदल भूमिमें खेती जापानी लोग मछली साकर हो जीवन धारण करते है। करने के लिये मैंमे और बैल आदिसे काम लेते हैं। यहां 'राकिट' नामक एक प्रकारको मन्ती बहुत जापानी उनका दूध या माम नहीं खात । जापानमें हंस, / विषात होती है। मायधानीसे विनाधीये उस मश्नीको मुरगा, चकवा तथा डाक नामका एक प्रकारका पनी | खानसे मृत्यु हो जाती है। यह मानो पाप्महत्या पाया जाता है। खरहा, हरिन, भान्लू, सूअर अादि | करने के लिए सहन उपाय है । इम मछलीको खा कर जङ्गली जन्तु भी यहां अधिक पाये जाते हैं। पहले बटुतमे जापानी मर भी चुके हैं, तोमो इसका पाना जापानमें कुत्ते का अतान्त आदर होता था। सम्राटके | नहीं छोड़ते । इस मछलोका मून्य भो अधिक है। प्रादेशानुसार प्रताक रास्ते पर बहुतमे कुत्ते रखे जाते | नापान सागरमें और एक तरहको भायजनक मछली थे और हर एक व्यक्तिको कुत्तोंके खाने के लिए आहार देखी जाती है, जो देउनमें दश वर्षके नहोकी नाई रखना पड़ता था। कहा जाता है कि एक जापानी मरे है। इसका मस्तक बड़ा होता है, छातो पीर मुंह पर हुए कुत्ते को पहाड़के ऊपर गाड़ने के लिये ले जा रहा किमी तरका हितका नहीं होता, पेट बड़ा होता था, किन्तु बहुत थक जाने के कारण वह मम्राट्को | जिममें बहुतमा पानी ममाता है । म मछलो के वैर होते अभिशाप देने लगा। उसके मायोने कहा-"भाई : चुप | हैं और बालकको तरह उप्त अंगुलियां होती हैं। हम रहो, सम्राट्की निन्दा मत करो, वरन ईजरको धन्यवाद तरहकी 'मछलो जडो उपसागरमें हो अधिक पाई दो कि सम्राट्ने अव-चिह्नित समय में जन्म नहीं लिया, | जाती हैं। नामको एक तोमरी जातिकी मानी नहीं तो हम लोगोंको और भी ज्यादा बोझा लादना | भो यहाँ मिलतो है नो देखने में सफेद मान म पड़ती पड़ता।" पहले जापानो वर्षको बारह चिमि चिजित है। पहले जापानो इम मचनोको प्रत्यन्त राम ममझते करते थे तथा उसके जिम चिह्नित अहम मनुषका जन्म थे। 'यक' तथा 'मुकि' नामके कछुएको भी ये राम होता था, वह उसी के अनुमार गिना जाता था। समझते थे। जापान के पधिकाग नोग अपने पाहारके जापानमें दोमक बहुत होतो हैं, जिममे वहकि । लिये मछली पकड़ते पीर देवते है। पधिवासियाँको बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। जापानके ममुद्रम मोतो पाया जाता है। जापानी इनसे छुटकारा पानिके लिये किमी चोन के नोचे पोर इममें उसे फैना-साम्मा कहते हैं। पहले ये मोतोका व्यवहार चारो घोर नमक छिड़क दिया जाना है। जापानी दोम | मथा मृन्य नहीं जानते है, वो उन्होंने यह चीमाम कको 'दोसम' कहते हैं । जापान में मपं यातुत कम पाये । सौला । मोती निकालने के लिये उन्हें किमीको राजकर जारी है। कहीं कहीं 'तिताकान्य' या फिनाकरों' .महीं देना पड़ता। प्रत्येक जापानोको मोनो निकालने नामक सर्प देखे जाते हैं। दम जाति सय प्रत्यक्ष का पधिकार है। यड़े पड़े मोतोको नापानी भाषामे भयानक होते है और इनके काटनेमे मनुण मर हो 'पाकीजा' कहते हैं। परने झापानो बोग कहते कि जाता है। सूर्योदयके समय काटनेसे यह मनुष्य सुर्यास्तके | म मोतोमें एक विशेष गुण यह कि एक भापानो पहलेहो मर जाता है। बापानके मैनिक इम मर्पका चिकमे यालिम किये हुए वामम इमे रमने पर मजे मांस खाते घे। स्नोमाका विश्वाम पा कि मका। दोनों मगल दो छोटे छोटे मोती को मारी। यह माम पार्नमें ये पत्यास माहसी और कष्टसहिए हो.पानिमतकाराने मामफ मीपमे बनती है। मामुद्रिक _____Vol. VIII. 66 ,