पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३३५ नोनगर और सोमवंशीय सविम बतलाते हैं। जीनगरीका कहना कौण्डिन्च, बशिष्ठ प्रादि पाठ गोत्र हैं। पुरुषों का गरोर है कि ब्रह्माण्डपुराणमें उनकी उत्पत्तिका निपय १५ : गोला और रंग काला है। स्त्रियाँ दुममो, गोरी पोर प्रकार लिखा-पुगकाम्नमें एक दिन देव और ऋषियोंने देखने में खूबसरत है। पुरुष मिर पर चोटो रात में हदारण्यकर्म एक यज प्रारम्भ किया। हवासरका पोव, तथा मप्ताहमें एकवार मस्तक मुड़ाते चौर तलाट पर दुई जनुमण्डल नामका दानय प्रमाके पाममे अमरत्व | चादन पोतते हैं। निशं ललाट पर मिन्दा लगाती पोर और प्रजयत्वका वर प्राप्त कर एम यतको बिगाड़ने के मम्ताके पोछेको तरफ चोटो बांधती हैं। अन्लाङ्गानाएं लिए वी पाया। देव और ऋषियोंने भयभीत हो नकली वानो वा फन्नों मे मस्तक नहीं सजाती, करती महादेवका स्मरण किया। दानवके इस अत्याचारको . य मध तो वेश्या और नाचनेवालियोंके की देख कर महादेवको क्रोध आ गया पोर उनके ललाटमे लायक है। पमोनाको एक वृंद टपक कर उनके मुवमें जा पड़ी। इनकी भाषा मरा है, पर कनाड़ी भो प्रोमले हैं। उसमे मौक्तिक वा मतादेव नामका एक वीर उत्पद। ये लोग परियमो, बुद्धिमान, मुदक्ष, स्वायतम्बो, गान्त. सुना। मुतादेवने जय जनुमण्डलको युइमें पराजित | प्रकृति प्रातियेय और गिट है। पेशवाोंने इनसे कर देय और ऋपियों को अभयदान दिया, तब उन | बहुतों को गिल्पकार्यके पुरस्कार स्वरूप भूमि और मकान खोगाने सुग हो कर मुतादेवको उम स्थानका राजा प्रादि दिये हैं, जोन, घोड़ाके अन्यान्य माज इत्यादि बना दिया। दुर्वामाकी कन्या प्रभावतोके माथ मुता बनाना हो इनको पटक उपजोधिका है। इस समय देवका विनाश यो गया। प्रभावती के गर्भमे मुनादेवके । अधिकांश लोग सूबर, मकार, नौहकार, चित्रकर ८० पुत्र हुए। उनके वयःमाप्त होने पर मुक्तादिनने उन्हें आदिका कार्य करते हैं। बहुमसे जिल्द पोर विन्तीने राज्य दे कर पत्नी के मात्र वानप्रस्थ भवनान किया। यनाते हैं। कोई कोई घड़ी मरम्मत करने पादिका किन्तु पुर्वाने गौरदमदमें मत्त हो कर एक दिन लोमा काम भी करते हैं। ये घरमें गाय, भैस , घोडे पादि इर्पण ऋपिका अपमान कर डाला। ऋपिने क्रोधर्म का पाते हैं। बकरो, मैंमा धादिके मास म्हानेमें इनकी कर यह पभिमम्मात दिया-"तुम लोगोंने राज्यमदमें ] कोई उच्च नहीं, छिपा कर देगो शराब भी पीते हैं। मत हो कर मानणका अपमान किया है, इस अपराधमे | ये लोग दाक्षिणात्य के ग्रामपोंके ममान धोती, चहर, तुम लोग राज्यमष्ट और येदविधिरहित हो कर महा-| कुर्ता, पगड़ो घोर जूता इत्यादि पहनते हैं। पुरुष कटमे दिन बिताते रहोगे" मुतादेवने पुओं पर दम दूकानों में बैठ कर अपना अपना काम करते हैं और दारुण अप्रयापको पड़ते देख, प्रान्त दुःखित हो कर स्तियां घरका काम पूरा कर कभी कभी उनको महायता गिवसे मम हत्तान्त कहा : गिवने कहा, ब्राह्मणाप अन्य पईचाती है। इनके म्नड़ मे १९॥१२ वर्षको उममे भापक है। हाँ, मैं कहता कि. तम्हारे पुत्र पि कर वेद. कार्यमें नियुका होते हैं भोर १११८ वर्षको प्रवसा ये विधिका अनुष्ठान करेंगे तथा 'पाय क्षत्रो उपाधि त्याग प कागगर बन जाते है। ये वैशवधर्मको मानते है, कर चिवकर, स्वप कार, निस्पकार, पटकार (नन्तुवाय), ! किन्तु धरम गणपति, विठोबा, भवानो पादिको मूर्ति भी रेशमकर, लुहार, मृत्तिकाकर और धातुमृप्तिकाकर, इन रखते हैं। माप पुरोहित इनको याजकता करते हैं। पाठ नामोंमे प्रहित होंगे और उन्हीं हत्तियों का अवलम्बन इनके क्रियाकलाप तथा मत उपमनादि हिन्दूमतानुसार कर जोषिका निर्याच कारेंगे। होते हैं। मन्तान उत्पन्न होने पर पठीपूजाती है। मर्म ये पोविभाग नहीं है। सबमें परस्पर रोटी धानकका ११ माममे लगा कर ३ वर्ष के भोसर घुड़ाकरप घटो चनती है। इनकी प्रधान प्रधान उपाधि पचान । तया ५, ७ मा ८ वर्पम उपनयन होता है। ये सोग धेडा ने, यादव, मनोदकार, काम्पलो, नवगीर, पोवर पुनको ३० वर्ष तक पयिवादित रख सकते है, किन्त पादि हैं। इनमें पानीरस, मारहाल, गौतम, करख, कन्याका विवाह १२ वर्षये परले से कर देते हैं। .