पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३७८

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नोमूतक-ौमूतमुक्ता ३३० एक प्रकारका इन्द। १५ दाइकभेद, एक प्रकारका उसी तरह मोतो भी उत्पन्न होते हैं। पोले जिम दण्डक हत्त। इसके प्रत्येक चरणमें दो नगा और प्रकार मेघोंसे गिरते हैं, यह मोतो भी उसी तरह समम ग्यारह रगण होते हैं। यह प्रचिमके अन्तर्गत है। वायुके स्कन्धसे भ्रष्ट हो कर गिरते है। परन्तु ये मोन . जीमूतक (स'• पु०) जीमून स्वाधे-कन् । जोमूत देश।। । पर नहीं गिरते, देवता लोग ईन्हें वीचहौमे उड़ा ले जोमूतक तैल (सं० क्लो०) कोशातकोतैन, तरोईका सैन्न । जाते हैं। जोमूतफूट (म. पु०) जीमूतः मेघः कूटे गिरे यस्य । दूसरे ग्रन्यमें लिखा है कि, जलविन्दु के विकार रुद्रौन, छोटा पहाड़, पहाड़ी। विशेषमे मेघ और मुक्ताका उत्पत्ति है, जो मनुष्य लिए जोमूतकेत (म पु०) हिमालयस्थित विद्याधर रानाका दुर्लभ है। देव इन्हें पाकाशमे हो हरण कर देते हैं। नाम। ये जीमूतवाहनके पिता थे। जीमूतवाहन देखे।।। मेधसे उत्पन्न मणि मुरगीक पगई को भांति गोन, ठोम, जीमूतमुक्ता ( म. स्त्रो०) जीमूत अर्थात् मेवसे उत्पन्न | वजनमें भारी और सूर्य-किरणको भांति दोखिशाती मुक्ता वा मोतो । प्राचीन रनगास्मादिमें इस अद्भुत मुला- होती है। यह देवतापोंके लिए भोग्य और मनुष्यको का वर्णन मिलता है, पर मेघमे किस तरह मोतो पैदा अनभ्य है। होता है, यह समझ नहीं पाता। क्या प्राचीन शास्त्र | ___ गरुडपुराणमें लिखा है कि, मेघसे उत्पन्न मुक्ता या कारीने मेधमे मेघान्तरगत तडित्प्रभाको अथवा सूर्यको | मोती पृथिवी पर नहीं गिरता, प्राकाग हो देवता किरणेम विभासित नानावण की दीप्तिमान् विमानस्थ ) उन्हें ले जाते हैं। इम मोतीके तेज और प्रभागे जल बिन्दु वा करकाखगोको देख कर मेघमुलाके | दिशाएं प्रकागित हो जाती है। यह प्रादित्यको तरह अस्तित्वका अनुमान किया था ।वा यह कविको मल्पना दुनिरीक्ष्य है। इमको ज्योति हुताशन, चन्द्र, नक्षत्र, माव है ? अथवा मेघमुप्ता सचमुच ही कोई पदार्थ है, ग्रह और तारापों के तिजको भो मन्द कर देती है। यह यह नहीं कहा जा सकता। क्योंकि, पृथियो पर यह मोती क्या दिन पोर क्या गात, सय समय समान दोमि. मोती मिलता नहीं। जिन्होंने मेव-मुलाका वर्णन कर है। इसके मूल्य के विषय में उस पुराणकर्ता ऐमो किया है, वे खुद हो कहते हैं कि, मधमे मुक्ता उत्पन्न | लिखते हैं-हमारा विश्वास है कि, भयनादियुत सुवर्णः होते ही, देवगण उसे ले जाते हैं। ऐगा दशामें इसका | पूर्ण इस चतुःसमुद्रा समग्र पूयिषीका भो मून्य मेवमुता. होना न होना बराबर है। के समान होगा या नहीं, इममें सन्देह है। कुछ भी हो, प्राचीन शास्त्रकारीने शक्ति, गा, मर्प ____इन्होंने पौर भी लिखा है कि-"नीच ध्यतिको भो पादिकी मांति मेघमुताका भो निर्देश किया है । जैसे- यदि कभो पुण्यवतमे यह मिल आय, तो वह भी धन । (क) "मस्य, सर्प, शहर, वराह, यश, मेध पौर स्तिसे | होन हो कर समग्र पृथिवीका रामा हो मकता है। मोती उत्पन होते हैं, जिनमेमे शतिज्ञात मुक्ता ही उत्तम यह सिर्फ राजापोंके लिए हो एभकागे हो ऐसा मो, और ज्यादा हैं। या प्रजाको भी मौभाग्यका कारण है। या मोती धारी ___ (ख) जस्तो, सर्प, शशि शहा मेघ, बांस, तिमि पोर मौयोजन स्थान तक पनिटका निवारण करता है। मसर पोर शूकरमे मुलाकी उत्पत्ति होती है, जिममें | जल, प्योति: और वायुसे मेवों की उत्पत्ति है, इसलिए शतिन मुसा ही उत्तम पौर प्रचुर है। (वृहत्संहिता) । मेघ नुवाके भो तीन भेद अन्नाधिक मेघजात होनेने इसके अतिरिमा गाड़पुराण, पग्निपुराण, युहिकल्प- यह अत्यन्त सच्च और प्रतिगय कानिायु होता है। तर भादि प्रन्योम मेघ-मुनाका वर्णन है। शास्त्रकारीने ज्योतिःप्रधान मैघमे उत्पय मोती गोन, मच्छो कामिर- इसके पाकार और गुण-अवगुपके विषयका भी वर्णन युक्त पीर सूर्य किरणकी तरह किरपशाली होता है; किया । पदसहिता म प्रकार लिखा है कि, इमलिए दुनिरीक्ष्य है। वायुप्रधान मेधसे उत्पब मोती मध जिस प्रकार वर्षांपत अर्थात् पोले सत्पन होते हैं, सबमे निर्मत और हनका जीता। Vol. VIII. 25