पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३९७

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सोवन्मुक्त-बौययुष्प यशाचरणको पत्ति होतो. पानीवन्मुक्त नहीं। को पार कर जीयम हो जाता है। शौचाला देगा . उमको पात्मा का मकते हैं। जीवन्म लिके ममय अनः नौवम्मति (मस्ती ) जोयतो मुभिः । तत् । तत्व मिमानित्य मादि मानमाधक गुण पौर प्रत्यादि ज्ञान होने पर जीवहगामें ही संसार यन्धनमें परिवाए। .. योभन गुग्ण प्रसारकी भांति उस जीवनमा पुरुषकर्ट व. भोर, व प्रादि पखिताभिमानका त्याग ने पतुर्तित होते है । पईन तत्वनानी पुरुषके अमाधन पर विविध दुःोंमे छुटकारा मिलता है और न पुनः रूप यष्टत्वादि मदगुण अयव सुनभमे अनुयर्तित ते जन्म मृत्यु पाटिका कैश भो नहीं समा पड़ता। है। य जीवरम पुरुष देहयावा निर्यात के लिए इच्छा, जोवन्म तिका उपाय, श्रमण, मनन, निदिध्यामम, योग पनिच्ा, पोवा इन तीन प्रकारमे पारय कर्मजनित पादि। (तन्त्रशार ) जीवनमुक्ति देना। सुग्न पौर दुको भोगता हुमा मातितन्यस्वरूप विद्या- जोवन्मृत (स० वि०) जीवद्रव मृतः मृतस्य बौदित बुद्धिका पवभामको कर प्रारयकमके भवसानके उप. अवस्था में मृतकल्प, जो जीवित दशामें होमोके ममान रान्त पानन्दस्वरूप परग्वधमें लीन हो जाता है। पीछे हो, जिमका जीना पोर मरना दोनों वरायर हो। श्री प्रधान पीर तस्यायल्प संस्कारीका नाश होता है। इसके कर्तव्य कार्य से परामरख हो कर सर्वदा दुःौका पनु.. पगात् परमकैवलारूप परमानन्द, पास अगष्ट्र ब्रह्म भव करते रहते हैं, वे भो जोवन्मृत है। जो प्रामाभिः । सल्पमें प्रयस्थित हो कर कैवम्यानन्द भोगता है। मानो में और बड़ी कठिनतामे पाप्माका पोषण करते हैं देहावसान होने पर जीवन्मुक्ता पुरुष के माण लोकान्तरको तथा जो वैश्वदेव पतिथि पादिका यथोधित सत्कार नहीं मना कर परमानमें लोन होता और मंसारबन्धनमे मुक कर सकते है, हिन्दूधर्मशास्त्रानुमार ये भी जीवागरी हो कर परममाम कवायसुखमें लीन हो जाया करता, समान वाम करते हैं। (दक्ष ) है। (वेदान्तदर्शन) जोवन्यास (म. पु० ) जोयम्य न्याम, नत् । मूर्तियाँको __मांत्यपातजनके मतमे--प्रकृतिपुरुषको विकन्नान | प्राणप्रतिष्ठाका मन्च । रोने पर जीवन शिक्षोता है । "इयं प्रकृतिः अप्पा परिगामिनी, जीयपति (स' वी. ) जीयः जीयनपतिरस्याः, यहो। निगुनायी" यर प्रतति जद और परिणमनमोल है, सत्त्व. १ मधया स्त्रो, व यो जिमका पति जीवित हो। (पु.) रजम्तमोगुरमयी, प्रीत् सब दुः मोक्ष्मयी है. मैं | २ धर्मराज। निर्मर और चैतन्यसरूप-यह जान जय होता है. जोयपत्री (म. सी०) जीव: जीयन पतिर्यस्याः पयो । तब पुरुष गोवाम त होता है। निरन्तर दुःख भोगते । जोवत् पतिका, सुक्षागिनी स्त्री, पर खो सिमका पति भोगने पुरुष के लिए ऐमा ममय पा उपस्थित होता है, जोषित हो। ३५ या उस दुग्यको निति लिए शुक उपाय सोचने | लोयपत्र प्रवायिशा (म. मी. ) जोयस्य नीयबसम्म नगता है। पोछे समको गाम्बधान मास करनेकी का पनामि प्रचोयन्तोऽस्यां । भीष प्रचि भावे गत । कोड़ा होतो है। फिर यह विधेशगाम्के पनुपार योग विगेप, एक प्रकारका सेस । पादिका प्रयाम्बग कर ममारयन्धनमे मुनादीवार, उमा जीवपत्रो (मो .) जीवनी । औपती देवो। ' ममय प्रति इमनो छोड़ देती है। माति पुरुष के पप-जीवपुत्र (म. पु. जीवः ओयकः पुय जय रूपं पितुवात् । या माधित फरक हो निहत्त हो जाती , फिर नदी हम, हिंगोटाका पेड़। उसके माय नहीं मिनतो। | जीवपुयक (म'• पु.) जोधपुरः वार्य कन् । १ दी प्रतिम य र सुमारतर पर कुछ भी नहीं है , Eिगोटाका पे । २ पुवीय च। पुरुप ने भारा पफ बार देश जाने पर फिर यह दिमाई जीयपुत्रा (मं. मी०) जीयः नोयन प्रयो यस्या, यमुनी नधी देतो। १६ पुरुष थपर्ने समयको ममझ लेता र योर पर भी निमका पुत्र सीमित हो। ERT प्रान नट को माता सब यह मुपदु.प.मोर. बीवपुष्य (म• को.) नीय: अतः पुण्य का