पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६५०

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जानकल्प-मानचनु धर्मनीति एक तिर कारण है, किन्तु मानके दिप: । जानकाण्ड (म. पु० सी०) वेढका पनावियेष. घेद के यमें ऐसा नहीं कहा जा मझता। भान किती एक तोन विभागोमम एक। इममें ब्रह्म पादि म विप- निदिर मीमा तक जाकर पियाम नहीं करता, यह | योका विचार है। घिर उन्नतिमीन है। मि० या यह भी कहते हैं कि, ज्ञानकोटि-१ एक दिगम्बर जैनाचार्य । ये वादिभूषण के माम या वुद्धिने धागलो सब सत्य उपार्जित होता है, गिज्य पोर १९२१ में विद्यमान ये। इन्होंने यगोधर• यह मव देगों में यत्नपूर्वक लिपिबह किया जाता है। चरित्र नामक १४.० मोकोका एक जैन अन्य रचा है। इसलिए वह मनुष्य जातिको साधारगा मम्मत्ति हो जाती २ एक बौह पाचार्यका नाम । है। परन्तु वल साहव कुछ भी कहें, हमारो धर्मनीति धानशा (म', वि.) मानेन बुद्धिपूर्व केन तं, ३ तत् । या नीति-शान कभी भी अचन नहीं है। हम चारों दुधिपूर्वक हत, जो जान बूझकर किया गया हो। भाम तरफ देख रहे है कि. नोति-जान क्रमोन्नतिगील है । सत पापोंका प्राययित्त दूना लिखा गया है। भानात नोतिको अपेक्षा भानका फल अस्थायी है, यह बात भी गोवधका विषय प्रायरित्ततव में इस प्रकार लिखा पा मानी नहीं जा सकतो। हो, मानका फन जैमा है। "गोवरस्य बुदिपूर्वकावं तदा भयति, यदि गोसारमा एना जान्वयमान है, नीतिका फल येमा नहीं है, यह परोक्ष) इन्मीतीच्या हन्ति, तदा कामनाद्वारे शानस्य प्रायंगसात् ।" में गूदभावमे मनुष्य समाजमें कार्य करता है। (प्रायश्चित्ततत्स) भान और नोतिको उन्मप्ति एक दूमरेकी अपेक्षा यर गो है, इस तरह स्थिर कर दमको मारेंगे, ऐमो रखती है। इन दोनोंती ममम उन्नति के दिनः वास्त- उच्छासे वध करने पर भानमत गोवध होता है। लिशसभ्यताका याभो भो विकाग नहीं होता। शान प्रायश्चित्त देखो। पर्जनमोल है, वापर अनेक मलोंका प्राविष्कार कर भानदेत (सं० पु.) भानका पि। मानसिया उन्नति और ममाजपुष्टि करता है । भानको जानकध्वज (सं० पु.) देयर्षिभेद, एक ऋपिका नाम । गति स्वाधीनताशी तरफ है। जानका फन नोतिहारा ज्ञानगम्य (म० पु.) भनिन गम्यः. ६-सत्। जानका विषय, परिगोधित न होगमे, पाथ परना मादि होन उत्तिम| वह जो मानके हारा माना जा सके, भानको पके परिपत होता है; और फिर नोति मानके इरा निा- भीतर । "उत्तरी गोतिगोप्ता ज्ञानगम्प: पुरातनः' (मिणुक.) लिम न होने पर उद्देश्य विफन्न होता है। दोनों के ! जानमानगम्य परमेखर है। परमेश्वरका जान लेवल लिए ही पृथक् साधनाको प्रापश्यकता है। हा! भामको एकमात्र मानमे ही हो सकता है न कि कर्म प्रभृति जितनी उन्नति होगी, उतनो को नोति की उन्नति होतो। द्वारा। तिने कहा है, "न कर्मया न प्रश्या न पनेत ग है, पान और नोतिमें ऐसा कोई वाध्यबाधकताका स्यागेन नै ममतत्वमानधः।" (शुति) कम, मजा, भम, सम्बन्ध नहीं है। त्याग प्रभृति द्वारा प्रमतत्व नाम नहीं किया जा मकता, म उरशष्ट प्रति हारा परिचालित होकर जिन ये देयन भानमे ही माम किये जा सकते हैं। कार्याशा अनुष्ठान करते हैं. वे सुनोतिमूनक है। बीके ज्ञानगर्भ (म. वि.) डाम म यस, बहुमो. भानयु, जब युधिक पारा परीक्षा को जाता है कि वे काय! जिनमें ज्ञान हो। मानव-ममाजके लिए हितकर या नहीं। सब मनानगिरि-पानन्दगिरिका दूसरा नाम । उनको मिर्फ भान हे हारा हट कर मेले । कानगोचर (सं.वि.) भानगम्य, शानिन्द्रियों शानने अनातायुमार ज्ञान का सार जानना रो तो नपर्म शम्दर्भ | योग्य । नम्याप प्रकरण देणे! . मानधन मामाय:- योधनाचार्य के विच, परावेंदतात्पर्य- परमध। ( ऋषि) विशु। (भारत) दोपका भोर वेदाम्लतत्त्वरिपरि प्रता। . जानकास्प-गहरावाय के एक गिणका नाम! मानपद (स.पु.) भान प्रामसाधन', वेदादिया Vol. VIII.149