पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६६०

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झानापन्न-धानों को अवस्था तक ये ग्राम प्राथमिक शिक्षा पास रहे पोर । जगत्, भगवत्पामिक दो उपाय है-एक शानयोग १५ वर्ष इनका विवाह हो गया। तोमरे थप, धीर दूमरा कर्मयोग। सांख्यमतावलंधी मानयोगका हिरागमनके नोटा नहीने बाद ही लेगको वोमारोमै अपनबन कर मुमिताभ करते है और दूसरे कर्मयोग इनका पोका देहान्त हो गया, जिसमे इन्हें मसारमे द्वारा मुक्त होते हैं। किन्तु कर्मयोग बिना किये मान विरमित हो गई। ये एप कार काशो चले पाये और: योग हो नहीं सकता। क्योंकि कर्म करते करते पित्ता यहां स्याहाद जैन महाविद्यालय में रह कर विद्याध्ययन । शहि होती है, फिर चित्तमे रज पौर. तम दुर होते है करने नरी। तथा विशुद्ध मत्वका प्राविर्भाव होता है. पोछे निर्मम अध्ययन ममा करने बाद ये अपनी प्रावर बुद्धि के पित्तमें वास्तविक ज्ञान उपस्थित होता है। इस प्रकार 'प्रभायमे उमी विद्यालय के प्रधान प्रध्यापक और अधि. का मान होने पर महजही में मुशि हो सकती है। जाम छाता हो गये। इसके कई वर्ष बाद इन्होंने पंच योगही मुप्तिका एकमात्र माधन है। फर्म देखो। अन्तर्गत नामिक जिन्ने पार्स स्थित गजपन्या क्षेवम । जानामृतयति-ऐतरेयोपनिषदभायटोका, त्तिरीयोपनि जा कर दीक्षाग्रहण ( मतम प्रतिमा धारण ) कर लो।। पद मायटीका पोर माग्यमवटोका प्रभृतिके टीकाकार: अनन्तर इन्होंने कागोमे "अहिंमा" नामय एक जानाण घ (म पु०) भानम्य पण वः, नत् । १ भान माताहिक पत्र निकाला और हस्तिनापुर जा कर वहाँक समुह । २ शुभचन्द्राचार्य का एक अन ग्रन्थ। इसमें यह्मचर्याश्रम के अधिष्ठाताका पद ग्रहण किया। यहाको ध्यानका स्वरूप विस्त न पम यर्णित है। जलवायु अस्वाम्बाकर होनसे चे पायम को जयपुर ले जानावरण (म. पु.) १ जानका परदा, यह जिममे गये, जो अब भो वर्तमान है। अन्त में अजमेर जिलेवे | भान में बाधा पहुंचतो हो। २ वह पापकर्म जिममे ध्यावर नामक स्थानमें इमका (स. १८७८, ज्य जीवको भानका यार्थ लाभ नहीं होता। हमने पांच राका १३शोको) स्वर्गारोहगा हो गया। | भेद है-१ मतिज्ञानावरण, २ गुतभानावरण. ३ प्रधि- इन्होंने पानपरोसाटोका, शान्तिमोवान, भायमा । मानायरण, ४ मनःपर्यायज्ञानावरण और ५ केवनमानाय. भवन, जगतो जागतो ज्योति बादि कई गद्य एवं पद्य रण। जैनधर्म शब्द कमरिद्धान्तका विषय देखो। प्रन्योंकी रचना की है। जानयरणीय (मवि० ) जिममे जानमें बाधा पहुंचतो शानापन ( म० वि०) जान' पापना, २ तत् । ज्ञानप्रास हो। मानावग्ण देगा। जिमे शान प्राममा हो, ज्ञानी, पकानमन्द । जानामन ( म० पु. ) गद्यामनमें कहा गया एक मामन । भानायोड (म. पु.) धानम्य अपोहः तत् । शान दम घासनमे बैठ कर योग करनेमें गोध्र योगाभ्यामी नोप विस्मरण, भूलना, यिसरना। बना जा सकता है, यह पामन भानविद्याप्रकाया है। जानाभ्यास (.सं..पु.) जानस्य अभ्यामः, तत् । इसलिए योगेच्छ, व्यक्तियोको म चामन योग करना जानका अभ्याम य यिपयका चिन्तन क्यनप्रबोधन चाय यामल गद्रयामनमें दम पामनके विषय- पाटि। मर्यदा ईश्वरनामादि के कीर्तन करनेको में इस प्रकार निवा-दधिपाटके उपमूममें पौर प्रादि मामे में जय नहीं मा, या हण्य जगत । वामपादतन नया दहिपाई में दक्षिषपादसम मयो. कुल भी नहीं है, यह जगत मिप्या है, मैं ही मत्यम्वरूप जित करना चाहिये ।म पामन धराबर धैठते रहने. ह. एम प्रकार के व्ययप, मनम, निदिध्यामन पादिको म पादग्नयिया गिधिन हो जाती है। . । सामाभ्यास कहा जा सकता है। मानी (म.वि.) शानमम्तयम्य मान-दनि । अतानि. सानामत (म.मी.) ज्ञानमेव पमत रूपचकर्मधाटनौ । पाप१५१ मामयुमा. बघसामानारयुल, जानरूप सुधा। योगिगण मानामतका पान कर पम अनमानी. भागमानो । 'प्रामाजि"शान होनर्म रत्वको प्राप्त होते . - . . ही मुनि सेतो.। मायावन्धनरहित हानी पुरुष मयंदा