पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१५२

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मुसलमान बिहार प्रदेशमें वहाँके वलवेको शान्त करनेके लिये आये।। (ख) अजलाफ या निम्नश्रेणीकं मुसलमान- वलवा शान्त हो जाने पर प्रत्येक ग्राममें उन्होंने अपनी १ शेख (खेती करनेवाले) पोरालो और ठाकुर ई। सेनाके सैनिकों को रखा। इन सैनिकोंने हिन्दू रमणियों २ दरजी, जुलाहा, फकीर और रङ्गरेन । से विवाह कर वहां ही अपनी वस्ती कायम कर ली। ३ वड़ी, भटियारा, चोक, चुडिहार, दाई, धावा, विहारका जव वलवा शान्त हो गया, तब इब्राहिमको धुनियां, गहो, कलाल, कसाई, तेलो, कुजड़ा, लहेरो, मल्लिकको उपाधि मिली। फल यह हुआ, कि ये उपाधि माहिफरोस, मल्लाह, नलिया, निकारी। इब्राहिमने अपने सैनिकोंके सिर मढ़ दिया। तभीसे ये ४ आयदाल, भाखो, वेदिया, भाट, चम्वा, दकाली, मल्लिक कहलाने लगे। विहार शरीफमें इब्राहिमकी | धोवो, हजाम, मोची (चमार), नागरची, नट, पनवारिया मदारी, तूतिया। ४५ मंगन। भिक्षक या भीख मांगनेवालो जाति ।। (ग) अर्जाल या अछूत मुसलमान-भांड़, हलाल- ४६ मणिपुरी। ४७ मसालची, मसाल दिखलानेवाले। खोर, हिजड़ा, कसबी, लालवेगी, भङ्गो, मेहतर । ये दादूमियां सस्पदायके हैं। वङ्गालमें मुसलमानोंका अधिकार । ४८ मीर-(अमीर शब्दको अपभ्रंश) ४६ मीरधा सन् १९६६ ई में वङ्गालके सेनवंशोय महाराज लक्ष्मण- या मिर्जा। मिरीयासिन् या तोम मिरीयासिन-वज. कोपराजित कर महम्मद इ-बख्तियार खिलजीने वङ्गाल नियां । ५१ मियां । ५२ मुगल । ५३ मोचो (चमार)। ५४ पर अधिकार जमाया। तवसे १७६५ ई० नक जव अङ्गा- मुकेरो। ५५ नायक, नालबन्द, नान्वाई और पनेरी। रेजो कम्पनो दीवानीका अधिकार पा चुकी थी तब तक ५६ पठान। ५७ पटवार, रङ्गरेज, सावुन वनानेवाला, मुसलमानोंका प्रभाव अक्षुण्ण था। यहांके नवावोंके 'सरदार और शिकलगार। ५८ पोरालो-( यशोर और प्रयत्नसे और कार्यविशेषके अनुरोधसे विभिन्न श्रेणीके खुलना जिलावासी-ये पुराने हिन्दू संस्कार देशाचार- मुसलमान राज-कार्यमें नियुक्त थे अथवा मुसलमान का पालन किया करते हैं।) ५६ सैयद । ६० साम्बुनी। जातिके उपभोग्य वाणिज्य-सम्भार विविध देशोंसे (बङ्गालो और मग जातिके सहयोगसे उत्पन्न)। ६१ / सैयद, मुगल, पठान आदि श्रेणीके मुसलमान यहाँ शेख (पुरनिया जिलेके शेखोंमें बङ्गाली, कलाइया, हव आ कर बस गये। मुसलमान साधु और उपर्युक्त लियार और खोदा नामसे चार खतन्त दल हैं। बङ्गाली कर्मचारिंगण भी माफो जमीन ( विना मालगुजारीकी शेख वंगला और हिन्दी मिली हुई बोली बोलते हैं। जमीन ) पानेसे आ कर यहां रह गये। गयासुद्दीनने 'ये कोच और राजवंशसे उत्पन्न है। हिन्दुओंकी तरह। (१२१४-२७ ई०), नासिरुद्दोन्ने ( १४२६-५७ ई०) अपने कुलमें विवाह नहीं करते। इनमें कितने हो अभी और हुसैन शाहने (१४६७-२५२६ ई० ) बङ्गालमें फकीर भी विषहरीको पूजा किया करते हैं। हवली परगनेमें | | और उमरावोंके रहने के लिये सैकड़ों ग्राम और भूसम्पत्ति रहनेसे हवलीयर और कोशी नदीके पश्चिमी प्रदेशों में दान किया था। रहनेसे ये खोदा कहलाते हैं। ६२ सोनार, टिकुलिहार, १३३४ से १५५६ ई०तक वङ्गालके खाधोन मुसलमान उठाई। ६३ ठाकुराई और ६४ तूतिया। राजवंशके अधिकार के समय उत्तर भारत के मुसलमान- उपर्युक्त मुसलमान समाजके आभिजात्यानुसार सम्राटोंके अत्याचारस उत्पीड़ित हो वहुसंख्यक मुसल- बङ्गाली मुसलमान सम्प्रदाय निम्नलिखित रूपसे विद्य- मान है। मान वङ्गालमें आकर रहने लगे। गोरी राजवंशके अन्त- (क) असराफ या उच्च श्रेणोके मुसलमान- मैं और घोर अत्यचार मुहम्मद तुगलकके शासन कालमें १ सैयद, २ शेख, ३ पठान. ४ मगल.५ मलिक और बङ्गालम मुसलमानाको संख्या बढ़ गई। मुगल-समार ६ मिर्जा। किसी किसी जिले में पठान और मुगल अजअकवरके इलाही धर्म प्रचारके सम्बन्धमें कितने हो धर्मः लाफ समाजके अन्तर्भुत हैं। } प्रचारक मुसलमानोंने वङ्गलाके मुसलमानीको पुटिकी Vol. XVIII 138