पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४९३

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४६० • यन्त्र सोने या चांदीके पत्र पर अथवा भोजपत्र तथा ताम्रपत्र : प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचारसे और विविध मुद्रापद- पर लिख कर उसे मोड़ माड़ कर पहनना चाहिये। शन द्वारा इष्टदेवताकी पूजा करनी चाहिये। पीछे उस सुवर्ण पर लिखा यन्त्र यावजीवन, चांदी पत्रका लिखा यन्त्रमें पट्टवस्त्र, आभूषण, मुद्र, चामर, घण्टा और 'यन्त्र २० वर्ष, भोजपत्रका लिखा १२ वर्ष और ताम्रपत्रका | अन्यान्य द्रव्य यत्नपूर्वक प्रदान करना चाहिये। फिर लिखा यन्त्र ६ वर्ष तक पहना जा सकता है। सर्वकामनाकी सिद्धिके लिये एक हजार इष्टदेवताका . साधारणतः यन्त्र दो तरहका होता है। एक पूजा- मन्त्र जपना आवश्यक है। इसके उपरान्त वलि चढ़ा 'यन्त्र, दुसरा पहननेका यन्त । पूजायन्त्रसे जिस देवता कर प्रणाम करना होता है। पीछे १०८ बार होम को पूजा करनी होगी, उसी देवताका यन्त्र अङ्कित कर करना चाहिये। होम करते समय उस यन्त्र पर प्रत्या- 'उसमें पूजा करनी पड़ती है, इस तरहके यन्त्रको पूजा- हुति देना होगा। होम करनेमें अशक्त होने पर होमको 'यन्त्र कहते हैं। संख्याका दुगना जप करना पीछे गुरुको शक्तिके अनु- जो यन्त्र लिख कर पहना जाता उसका नाम पह सार अलंकृत गोदान दक्षिणामें देना उचित है। ननेको यन्त्र या धारणयन्त्र है, इसी धारणयन्त्रको भोज ___ तन्त्रप्रदीपमें लिखा है, कि काष्ठ पर भीत या दीवार पत्र पर लिख कर पहना जाता है। यन्त्र लिख कर उस पर यन्त्र स्थापित करनेसे उसके पुत्र, पौत्र, धान्य और का यथाविधि संस्कार करना आवश्यक है। संस्कार होने | आयुका विनाश होता है। अन्यान्य तन्नमें भी लिखा पर उसको धारण करना चाहिये। है, कि जिसको गृह, पुत्र, पौन, धान्य आदि पर ममता . यन्त्र-संस्कारके सम्वन्धमै 'तन्त्रसार' नामक ग्रन्थम है, वह मनुष्य दीवार या काठ पर यन्त स्थापन न इस तरह लिखा है,-पहले साधकको चाहिये, कि वह करेगा। स्नानादि कर गुरुकी अर्चना करें। इसके बाद 'हाँ' यन्त्र-संस्कार। मन्त्रसे पञ्चगव्य शोधन कर "ॐ" मन्त्रसे यन्त्रको पञ्च- गष्यमें छोड़ देना चाहिये। पीछे उससे यन्त्र निकाल "शृणु देवि महामागे जगत्कारिणि कौलिनी। कर सोनेके वने पात्रमें रस्त्र पञ्चामृतसे स्नान कराना तस्योयोपनकमाङ्ग सर्ववर्णविनिर्णय ॥ स्नात्वा सङ्कल्पयेन्मन्त्री गुरोरच नमाचरेत् ।... आवश्यक है। पीछे इसको दूधसे स्नान करा फिर पश्चगव्यं ततः कृत्वा शिवमन्वय मन्त्रितम् ॥ इसको ठण्ढे पानीसे भरना होगा। इसके बाद चन्दन, अत्र चक्र क्षिपेन्मन्त्री प्रणवेन समाकुलम् । सुगन्धित द्रव्य, कस्तूरी, कुंकुम, दूध, दही, घी, मधु, तदुद्धृत्य ततश्चक्र' स्थापयेत् स्वर्ण पात्रके । और शक्कर-इन्हीं सब वस्तुओं द्वारा प्रत्येक वार स्नान, कराना उचित है। इसके बाद जलपूर्ण आठ सोनेके पञ्चामृतेन दुग्धेन शीतलेन जलेन च । चन्दनेन सुगन्धेन कस्तूरीकुंकुमेन च ॥ . फलशों द्वारा स्नान करो कर कलशेके कषाय जल द्वारा पयोदधिघृतक्षौद्र-शर्करायरनुक्रमात् । उस यन्त्रको स्नान-क्रिया सम्पादित होनी चाहिये। तोयधूपान्तरैः कर्य्यात् पञ्चामृतविधि बुधः ॥ . इस तरह यन्त्रको स्नान करा उसे सोनेके पात्रमें हाटकैः कलसैद्दवीमष्टाभिर्वारिपुरितः । रख कर "यन्त्ररॉजाय विद्महे महायन्त्राय धीमहि तन्नो कषायजलसम्पूर्ण कारयेत् स्लानमुत्तमम् ॥ यन्तः प्रचोदयात्” इस गायत्री मन्त्रसे अभिषिक्त करना। स्नानं संप्राप्य तां देवीं स्थापयेत् खण पीठके। आवश्यक है, कि कुशासे स्पर्श करा करा कर पुनः गायत्री यन्त्रराजाय विद्महे महातन्त्राय धीमहि ॥ मन्त्रसे १०८ बार अभिमन्त्रित करने पर उस यन्त्रमें ! तन्नो यत्रः प्रचोदयात् ॥ देवताका अधिष्ठान हो जाता है। इसके बाद आत्मशुद्धि स्पृष्ट्वा यन्तं कुशाग्रेन गायच्या चाभिमन्त्रयेत् । कर देवताका षडङ्गन्यास करना होता है और उस यन्त्र- अष्टोत्तरशतं देवि देवताभावसिद्धये ॥ . . में देवताका ध्यान और 'आह्वान कर उसमें देवताकी|