पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५३७

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ययाति शुक्राचार्यने ययातिसे कहा. 'राजन् ! यह हमारी | नियतमा कन्या आपको वर चुकी है, अभी आप इसका | और उपेन्द्र सदृश दो पुत्र उत्पन्न हुए । उनको नाम यदु पाणिग्रहण करें और अपनी महिषी धनार्थे ।' ययातिने | पुरु नामक तोन पुत्रोंने जन्म लियो । एक दिन देश्यानी और तुर्तासु था। शर्मिष्ठाके गर्भसे ब्रह्म , अनु और उत्तर दिया, 'हे भार्गव ! इस विषयमें वर्णसङ्करसे | ययातिके साथ निभृत उद्यानादिमें भ्रमण कर रही थी। होनेवाले महान् अधर्म जिससे मुझे छू न सके, ऐसा ही| इसी समय उसने देवतुल्य तोन कुमारोंको खेलते देख आप मुझे वरदान दीजिये ।' शुक्राचार्य वोले, 'मैं तुम्हें पूछा 'ये देवकुमार सदृश कुमार कौन है, किनके अधमसं विनिर्मुक्त करता हूँ । इस विवाहमें तुम उदास लड़के हैं। ये तीनों रूप और तेजमें तुम्हारे हो जैसे क्यों हो, मेरे घरले तुम्हारे सभी पाप दूर हो जायंगे। मालूम होते हैं।' तुम देवयानीसे धर्मतः विवाह करो। यह वृषपर्णकी। अनन्तर देवयानी उन तीनों कुमारोंके पास गई और कन्या शर्मिष्ठा आपकी सेवा टहलमें हमेशा लगो रहेगो, उनके पिताका नाम पूछा। कुमारोंने कहा, “यहो राजा किन्तु तुम कभी भी इसे अपने कमरेमे न बुलाना।' ययाति हमारे पिता और शर्मिष्ठा माता है।" ___ अनन्तर ययातिने यथाविधान दो हजार दासियोंके । साथ देवयानीका पाणिग्रहण किया और शर्मिष्ठाको ले अनन्तर देवयानी कुल वृत्तान्त जान गई और शर्मिष्ठासे जा कर कहने लगी, तुम मेरी दासी हो कर कर अपने घर लौटे। कालक्रमसे देवयानीको एक पुत्र क्यों झूठ बोलती और ऐसा अप्रिय काम करती हो ? हुआ। पीछे शर्मिष्ठाके ऋतकाल उपस्थित होने पर उसने शर्मिष्ठा वोली, मैंने अपने अपने परिनेताको जो ऋषि राजा ययातिसे ऋतुरक्षाके लिये प्रार्थना की। इस पर कहा था, वह मिथ्या नहीं है। मैंने न्याय और धर्मा- राजा बोले, 'मैं जव देवयानीके विवाह करता था, तब नुसार कार्य किया है । फिर मैं तुमसे डरू क्यों ? तुमने शुक्राचार्या बोले थे, कि तुम शर्मिष्ठाको कभी भी अपने जिस समय इस राजाको अपना स्वामी बनाया, उसी कमरे में न बुलाना ।" शमिष्टाने कहा, 'राजन् ! 'गमन न । समय मैं भी उन्हें कर चुकी हूँ। क्योंकि सखीका करूंगा' कह कर गम्या स्त्रीसे गमन करने, विवाहकालमे , स्वामी धर्मानुसार सखोका भी स्वामी होता है। परिहास स्थानमें, प्राणविनाशकी सम्भावना तथा सर्ग स्व अपहरणमें इन पांच जगह झठ बोलनेसे दोप नहीं। देवयानोने शर्मिष्ठाका यह वचन सुन कर राजासे होता। अतएव मेरी प्रार्थनाकी रक्षा करने में आपको कहा, 'अब मैं यहां क्षण भर भी ठहर नहीं सकती, तुमने दोषो नहीं होना पडेगा।' राजाने शर्मिताको नाना प्रकार- मेरे प्रति अप्रिय कार किया है। इतना कह कर देवयानो की युक्तियुक्त वाक्य सुन कर उसको तरक्षा को । इसके अपने पिताके घर-चली गई। राजा ययातिने भयभीत फलसे शर्मिष्ठाके भी एक पुत्र उत्पन्न हआ। । हो कर उसका पीछा किया । • देवयानी शर्मिष्ठाके पुत्र हुआ है, सुन कर जल भुनी देवयानी पिताके पास जा कर रोने लगी और बोली और उसके पास आ कर बोली, 'शर्मिष्ठा! तुमने काम-' 'पिताजी! अधर्मने धर्मको जीत लिया है, नीचको वृद्धि लुब्धा हो कर यह कैसा घोर पाप किया।' शर्मिष्टाने कहा, हुई है, शर्मिष्ठा मुझे मात कर गई । इस ययातिके औरस- 'मेरे पास एक वेदपारग ऋषि आये थे। जब वे मुझे वर से शर्मिष्ठाके तीन पुत्र और मेरे केवल दो पुत्र हुए हैं। यह राजा कहलाता तो है धर्मज्ञ, पर इसम जरा भी धर्म देने उद्यत हुए, तब मैंने धर्मानुसार उनसे ऋतुरक्षा करने- की प्रार्थना की थी। मैं अन्याय कामचारिणी नहीं है नहीं, यह विलकुल अधर्मी है।' .... अतएव यह मेरा पुत्र ऋषिके औरससे उत्पन्न हुआ है, इस पर शुक्राचार्यने राजाको कहा, 'तुमने धर्मन-होते मैं सत्य कहती हूँ। देवयानीने कहा, 'यदि यह सत्य है, हुए भो अधर्मका आश्रय लिया, इस कारण मेरे शापसे तो इसमें कोई दोष नहीं, मैं प्रसन्न हूँ। तुम्हें बुढ़ापा बहुत जल्द आयेगा। ययातिने कहो, 'हे भनन्तर राजर्षि. ययातिके औरससे देवयानीके इन्द्र ! भगवन् ! दानवेन्द्रसुता शर्मिष्ठाने मुझसे ऋतुरमाके