पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७२८

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योगवर्तिका-योगशास्त्र ७२५ योगवर्तिका (सं० स्त्री०) भोजविद्याविषयक आलोकभेद।, योगशरीरिन (सं०नि०)१ योगार्थ शरीरधारी।२ योगी। (Magic lantern) | योगशायिन् (सं० वि०) आधा सोया हुआ और आधी योगवह (सं० वि०) मिलावटसे तैयार किया हुआ। । धर्मको चिन्ता या योगमें मग्न। योगवाणी (सं० पु.) हिमालयके एक तीथका नाम। योगशास्त्र (सं० क्ली०) योगप्रतिपादक शास्त्र। वह योगवाशिष्ठ (सं० पु०) आध्यात्मिक तत्त्वसम्बन्धीय एक शास्त्र जिसमें योग अर्थात् चित्तवृत्तिको रोकनेके उपाय ग्रन्थ । देवर्षि वशिष्ठने रामचन्द्रको वेदान्ततत्व और वतलाये गये हैं, पातञ्जलादि शास्त्र। यह छः दर्शनों से आत्मांके चिरशान्तिविषयक योगको उपदेश किया था। पक दर्शन है। संस्कृत भाषामें बहुत-से योगविषयक वही इस ग्रन्थमें लिखा है। इसे लोग बाल्मीकि रामा- अन्य प्रचलित हैं। नीचे अकारादिकमसे वे सब ग्रन्थ यणका उत्तरकाण्ड मानते हैं और वशिष्ठ रामायण भी और प्रन्थकारोंके नाम दिये गये हैं;-योगशास्त्रकी उत्पत्ति- कहते हैं। इसमें वैराग्य, मुमुक्षु व्यवहार, उत्पत्ति, स्थिति का संक्षिप्त इतिहास पातञ्जल शब्दमें देखा ।। उपशम और निर्वाण ये छः प्रकरण हैं। इसको भाषा | ग्रन्थ ग्रन्थकार और भावतत्त्व साधारणके लिये कठिन है। अन्व अजपागायत्रीपुरश्चरणपद्धति शङ्कराचार्य । यारण्य, आत्मसुख, आनन्दवोधेन्द्रसरस्वती, गंगाधरेन्द्र अद्भु तयोग सरस्वती, माधवसरस्वती, सदानन्द आदि इसकी टीका अध्यात्मयोग कर गये हैं। अमनस्क सुन्दरदेव योगवाह (स'. पु०) योगस्य वाहः योगं वहयतोति वह- अमनस्ककल्प णिच्-अण् । अनुसार विसर्ग। अमनस्कयोग मल्लम प्रभुदेव योगवाहिन् । संत्रि०) योग' वहति वह-णिनि । योग (स्वात्माराम द्वारा हठप्रदीपिकामें उद्धत) द्वारा वहनशील। अपाङ्गहृदयसंहिता योगवाही (स. स्त्री० ) १ भिन्न गुणोंकी दो या कई अष्टाङ्गयोग ओषधियोंको एकमें मिलाने योग्य करनेवाली ओषधि या शङ्कराचार्य आचारपद्धति द्रव्य, योगका मध्यम । २ क्षीरविशेष, सञ्जीखार । ३ पारद, वासुदेवेन्द्र आसनाध्याय पारा। ईश्वर-वामदेव-संवाद काकचएडीश्वर योगविक्रय (सपु०) धोखे या बेईमानीके साथ विक्री, घोलमेलका सौदा। (स्वात्मारामा द्वारा उद्धत) योगविद् (सं०नि०) योगं वेत्ति विद्-क्विप् । १ योगज्ञ, कपिलगोता कपिल केदारकल्प योगशास्त्रका ज्ञाता। (पु०)२ महादेव । ३ वाजी- गर। ४ ओषधियोंको मिला कर औषध बनानेवाला कुम्भकपद्धति सुन्दरदेव (Compounder of medicines )। क्रियायोग (१) विट्ठल आचार्य योगविभाग (सं० पु०) एक मिली घस्तुका दो भाग। (२) वेङ्कट योगिन् खेचरीविद्या योगवृत्ति (सं० स्त्री०) चित्तकी वह शुभ वृत्ति जो योगके द्वारा प्राप्त होती है। (महाकाल योगशास्त्रोक्त) आदिनाथ योगशक्ति (स० स्त्रो०) योगके द्वारा प्राप्त होनेवाली शक्ति, गोरक्षशतक या तपावल। ज्ञानशतक गोरक्षनाथ योगशब्द (सं० पु० ) वह यौगिक शब्द जो योगरूढ़ि न | (मीननाथशिष्य) गोरक्षशतकटिप्पण मथुरानाथ शुक्ल हो बल्कि धातुके अर्थ (सामान्य अर्थ )-का बोधक हो। Vol. XVIII, 182 गोरक्षशतकटीका