पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वाधयन्त्र . वेणु। . . . . . तुरही। - वेण्यन्त्र घेणु अर्थात् बांसका बना होता है। इसो- तुरहीका याकार सीधा होता है । यह पोतलको वनी लिये इसका नाम घेणु पड़ा होगा। इसको लम्बाई घंशो! होती है। यद्यपि इसके द्वारा सैन्यप्रोत्साहादि कोई जातीय समी प्रकारके यन्त्रोंकी अपेझा बड़ी होती है। कार्य सम्पन्न नहीं होता, तथापि रणक्षेत्र में ही इसका इस यन्त्रमें एक तरफ छः और दूसरी तरफ एक छिद्र | व्यवहार होता है। कभी कभी यह नौबतखाने में भी होता है। इसकी वादन प्रणाली स्वतंत्र है। पादक इस | बनाई जाती है । इसका आकार रणसिंगेसे कुछ छोटा • यन्त्रको किंचित् यक्रमापसे पकड़ कर एयं मुखको कुछ होता है। यह यन्त्र रणसिंगेको वादन-प्रणालीसे वजाया . टेढ़ा कर, आहिस्ते माहिस्ते फूक कर बनाते हैं । फुत्कार जाता है। के तारतम्यानुसार नाना प्रकार के स्वर निकाले जा सकते मेरी। हैं। यह यन्त्र बहुत आसानीसे बजाया जाता है। प्रयाण | मेरी दूसरा नाम दुन्दुभि है . यह देखने मे बहुत घादक इससे बहुत हो मधुर स्वर निकाल सकते हैं।। कुछ दुरवीक्षणयन्त्र के समान होता है । इस यन्त्रक । सिंगा। नलके भीतर एक और नल इस कौशलसे घुमाया रक्षता ___ गाय, महिप आदि लम्बे सोगर्याले पशुओंके सोगसे है. कि मजानेक समय हायके सा लन है. कि मजाने के समय हायके सच लन द्वारा इससे नाना यह यन्त्र तैयार किया जाता है। यह याद्ययन्त्र बहुत प्रकारके म्या निकाले जा सकते हैं। यह यात प्राचीन प्राचीन है । यहाँ तक कि यह शुपिर यन्त्रका आदि यन्त्र समयमै युद्धयन्त्रमें ही गिना जाता था। किन्तु इस समय पहा जा सकता है। भूत भावन मयानीपति शंकर | नीपतके वजानेके बाद यह यन्त्र यजाया जाता है। सर्वदा इम यन्त्रका व्यवहार करते थे। उक्त पशुओं के श । सिंगके पतले भागमें एक छोटा सा छेद करके, उसमें शन दूसरे यंत्रों की तरह मनुष्यों के हाथका बनाया मुंहलगा कर इसे यजाते है। यंत्र नहीं है। यह एक प्राकृतिक यन्त्र है। समुद्र में शंख रणसिंगा। . नामक एक प्रकारका जानघर होता है। प्रकृति ने उसके रणसिंगेका भाकार बहुत बड़ा होता है। यह यन्त्र । धाच्छादनीकोपको इस ढांचेसे तैयार कर रखा है, कि पीतलादि धातुओंसे तैयार किया जाता है एवं मुखसे लोग उसके ऊपरी भागमें सिर्फ एक छोटा सा छिद्र फूक फर धजाया जाता है। रणक्षेत्रके मध्य सैनिकों के करके याजा बना लेते हैं। शंख बहुत प्राचीन यन्त्र कोलाहल में वाद्ययन्त्र द्वारा जिस समय सैनिकोको है। यह इस समय फेवल मंगल कार्याने ही यजाया जाता प्रोत्साहित, माहान गथया किसी प्रकारका इशारा करने- है, किंतु माचीनकालमें युद्धके समय ही इसका अधिक को सम्मावना रहती है, उसी समय यह यन्त्र व्ययहत व्यवहार होता था । इस गंलके मुखौ एक अंगुल होता है। इसको सांकेतिक ध्वनिके द्वारा सेना अपने प्रमाण छेद करना पड़ता है। इस मंत्र बजानेके लिये सेनापतिका गभिप्राय आसानीसे समझ लेती है । यद उसी छेदमें पूरो नाकतसे कना पड़ता है। यह पात्र रणक्षेत्रमें बजाया जाता है, इसी लिये यह रणसिंगा यांत्र जितनी ताकतसे फूका जाता है, ध्यान भी उतनी ही कहलाता है। रामसिंगा। ऊंची होती है । प्राचीन कालमें मनुष्य पूरे बलवान होते . . रामसिंगा भी धातुका पना हुभा एक बहुत बड़ा थे, इसलिये उस ममयफे लोगोंके शंखको भायाज • कुण्डलाकार यन्त्र है। इसका ध्यास रणसिगको अपेक्षा बड़ो गम्मोर होती थी। यहां तक कि उस समयके वड़ा होने के कारण इसका स्वर भी उसकी अपेक्षा कहीं यो के शंखको गम्भीर ध्वनिले लोगों का कलेजा कोप गम्मरताप सिंगेको मान-प्रणालीले उठता था। 'दीवजाया जाता है। यह यन्त्र बैष्णयसम्प्रदायके महो। तितिरी। त्सवादिमें अधिक पवहन होता है। होहो पहले तित्तिरीके नाममे विग्यान rol XL 29.