पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३९

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३७ ' वाजीकरण उसे उतारले। पीछे उसमें निम्नोक्त चूर्ण मिला दे। प्रशमित होते तथा यल और धीर्यको पृद्धि हो कर मध्यके 'यह'चर्ण जैसे-इलायची, वीजवन्द, पीपल, जातोफल, | समान मैथुनक्षम होता है। यह अति उत्तम वाजीकरण खैर, जातीपन, आदित्यपत्र, तेजपत, दारचोनी सोंठ, है। इसका नाम आम्रपाक है। अतिशय इन्द्रियसेवनादि • खसको जड, पथरचूर, मेथा, त्रिफला, वंशलोचन, द्वारा शिश्नको उत्तेजना कम पड़ जाने पर गोक्षरचूर्ण • शतमूली, शकशिम्बी, द्राक्षा, कोकिलाक्ष वीज, गोक्षुरयोज, बकरीफे दुधमें पाक फरे। पोछे उसमें मधु मिला कर "हती, पिण्डखजूर, शोरा, धनियाँ, यष्टिमधु, पानीफल, सेवन करनेसे रोग बहुत जल्द आराम होता है।

ओरा, कृष्णजीरा, अजयायन, चोजकोप, जटामांसी, सौंफा तिलका तेल 58 सेर, कलकार्थ रक्तचन्दन, अगुय

मेथी, भूमिकुष्माण्ड, तालमूली, असगंध, कचूर, नागके | कृष्णागुरु, देवदारु, सरलकाप्ट, पद्मकाष्ठ, कुश, काश, शर, - शर, मरिच, पियाल वीज, गजपिप्पली, पदावोज, श्वेत इक्षुमूल, कपूर, मृगनामि, लताकस्तूरी, कुंकुम, रक्त- । चन्दन, रक्तचन्दन, लवंग इन सबोंके प्रत्येकका चूर्ण आघ, पुनर्नवा, जातोफल, जातीपत्न, लवङ्ग, बड़ो और छोटो पाय। अनन्तर उसमें पारेका भस्म, ' रांगा, सीसा, | इलायची, काकलाफल, पृषवा, तेजपत्र, नागकेशर, गंगेरन, लेाहा, अन, कस्तूरी और कपूरका चूर्ण थोड़ी मात्रामें | खसकी जड़, जटामांसी, दारचीनी, घृतकपूर, शैलज, मिला कर यह मादक तैयार करे। अग्निके पलानुसार नागरमोथा, रेणुका, प्रियंगु, तारपिन, गुग्गुल, लाक्षा, मात्रा स्थिर कर सेवन करना उचित है। भुक्तान्न अन्न | नखी, धूनी, धयका फूल, बोला, मधिष्ठा, तगरपादिका ' अच्छी तरह परिपाक होने पर आहारके पहले यह सेवन | तथा मोम इन सबोंके प्रत्येकका माध तोला, चार गुने जल- करना चाहिये। इससे जराग्नि, बल, वीर्य · और काम- मे यथाविधान पाक करें। यह तेल देहमें लगानेसे अस्सी पृद्धि होती है एवं पार्सपय नए और शरीरको पुष्टि हो | पर्षका वृद्ध भो शुक्राधिक्यसे युवाको तरह स्त्रियोंका प्रिय 'कर मध्यके समान मधुनक्षम होता है। होता है। खास कर वन्ध्या स्त्री अगर यह तेल लगाधे, .' इस तरीकेसे रतिवल्लभपूगपाक प्रस्तुत ; करके सुरा, तो उसका यध्यापन दूर हो जाय । इसको चन्दनादितैल धुस्तूरवीज, माकन्द, सूर्यायत, हिङ्गल बीज और समुद्र फेन प्रत्येक ओधा तोला, खस फलका छिलका आधा ___दशमूल, पीपल, चिता, खैर, बहेड़ा, फाटफल, मरिच, छटाक पर्व सव चूर्णीका अर्द्धाश भंगका चूर्ण मिला कर साठ, सैन्धव, रक्तरोहितक, दन्ती, द्राक्षा, कृष्णाजीरा, जो मोदक पनाया जाता है, उसे कामेश्वरमोदक कहते | दरिद्रा, दामहरिदा, आमलकी, विटन, काकड़ासींगी, है। यह बहुत अच्छा याजोकरण है। .. . देवदारु, पुनर्नवा, धनियां, लएंग, डामलतास. गोखरू, सुपक आमका रस १॥४ एक मन चौवोस सेर, चीनी पृद्धदारक, पढ़ार और वीरणकी जड़ प्रत्येक एक पाय ८ सेर, धृत ४ सेर, सोंठका चूर्ण १ सेर, मरिच ॥ साध और हरीतको 5 सेर इन सर्वोको एकत्र कर दो मन सेर, पीपल । एक पाव और जल १६ सेर इन सयोको | जल पाक करे। हरीतकी अच्छी तरह सिद्ध होने पर 'एकल कर मिट्टोके दरतगमें पाक करे। पाक करने के उसमें मधु दे। पोछे तोन दिन, पांच दिन गौर दश समय मथानीसे आलोहन करना होता है। जय यह दिनमें फिर उसमें मधु दालना होगा। इस तरह जय गाढ़ा हो जाय, तब उसे नीचे उतार कर उसमें धनियां, हरीतकी दृढ़ हो जाय, तय घोके बरतनमें उसे मधुपूर्ण नीरा, हरीतकी, चिता, मोथा, दारनीनी, पोपलामूल, कर रखे। इस मधुपक हरीतकीके सम्बन्धमें धन्वन्तरिने मागफेशर, इलायचीका दाना, लयङ्ग और जातीपुष्प ] कहा है, कि यह बानेसे श्वास, काश आदि नाना प्रकार- मस्पेकका चूर्ण आध पाव डाल दे। ठएढा हो जाने के रोग दूर होते हैं एवं बलबीर्य वर्द्धित हो कर रोगी पर उसमें फिर एफ सेर मधु मिला दे। भोजन करनेके अत्यधिक सुरतक्षम होता है। . . . पहले मग्निफे बलानुसार मात्रा स्थिर कर इसका सेवन | कशिम्बो दोज आध सेर और घृत ऽ४ सेर गायके ... करना होता है। इससे महणी मादि अनेक प्रकारके रोग दूध पाक करे। पीछे जव यह गाढ़ा हो जाय, तब उसे .... Vol, IXI 10 - .. . .