पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४५३

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विद्यानगर इन्होने अङ्गारेजीको अधीनता स्वीकार न की। किन्तु | सुशोभित वस्त्रमण्डल, विविध द्रव्यसे परिपूर्ण जगण्य पीछे इन्हें वाध्य हो कर, भानगुण्डीका शासनभार | लोकमुखरित पण्यशाला, विलासिजनसुषसेष्य सुरम्य निजामके हाथ सौंपना पड़ा। इससे राजा तिरुमल | प्रमोदभवन, विरहरित्शोभामय लतामण्डप. विविध निजामके वृत्तिभोगी हुए । निरुमलने १८०१ ई०से निजाम कुसुमराजिराजित, मधुकरकरभ्यित मनोहर पुष्पोद्यान, से वृत्ति पा कर १८२४ ई०को मानवलीला संघरण को । कमलकुमुदकहारपूर्ण सरोचर, सौधश्रेणीके मध्यवत्तों तिरुमलके दो पुत्र थे। पिताके मरनेसे पहले हो वड़े | सरल और सुदीर्घ राजपथ, हस्तिशाला, अश्वशाला, लड़फे एक कन्याको छोड़ इस लोकसे चल बसे। छोटे गीमायास, फलके बोझसे अवनत फलोद्यान, मन्त- का नाम थोर वेङ्कट रनि था। विवाहके पहले ही इनकी | भवन, सभामण्डप, धर्माधिकरण आदि विविध नागरीय मृत्यु हुई थी। वे १८३२ ई० तक जीवित धे। तिरुमल. वैभवों पियानगर किसी समय जगत्के प्रधान शहरोंमे की पौत्रोके गर्भसे तिममलदेव नामक एक पुत्र और गिना जाता था। कृष्णदेव रायालुके शासनकालमे लक्ष्मोदेगाम्मा नामकी एक कन्या उत्पन्न हुई। तिरुपल | पियानगरको समृद्धि बहुत बढ़ गई थी। इस समय १८६६ ई०को पञ्चत्यको प्राप्त हुए । तियमलदेवके तीन वसयपत्तनमसे ले कर नागनपुर पर्यन्त विद्यानगर शहर पुत्र और एक कन्या थीं । प्रथम पुत्र येङ्कटरामराय, २य पुत्र विस्तृत था। इसको लम्बाई १४ मोल और चौड़ाई १० कृष्णदेव राय, पीछे वेडमा नाम्नी एक कन्या और उसके | मोल धी, इमका रफ़या एक सौ चालीस वर्गमील था, याद नरसिंहराजाका जमा नरसिंह acto! तमाम घनी यस्ती नजर आती थी। दर दर देशोंसे आपे में जन्मप्रहण किया। इसके एक वर्ष बाद बड़े भाईका हुए यणिक, राजप्रतिनिधि और गजदूतगण विद्यानगरमें और उसके भी एक वर्ष बाद दूसरे भाई कृष्णदेवराजका आ कर अपना अपना कर्म किया करते थे। विद्यानगरफे देहान्त टुगा । घेङ्कटरामराय दो कन्याको छोड़ स्वग- शासनकर्ता का समरविभाग बहुन ही पढ़ा चढ़ा था। घासी हुए। हजार हजार मनुष्य इस विभागर्ने सभी समय नियुक्त होते विद्यानगरकी समृद्धि। थे। युद्ध के सामान सर्वदा सजा कर रखे जाते थे। कुश्ती, प्रसन्नसलिला तुगभद्रा नदीके दाहिनी किनारे उस कसरत और विविध प्रकारके व्यायामको चर्चाका अच्छा महासम्मृद्धिशाली हिन्दू राजकीर्त्तिके चिहस्वरूप विद्या प्रवन्ध था। विद्यानगर में इस समय जो सब पहलवान नगरका ध्वंसावशेष माज भी विद्यमान रह कर विद्या दिखाई देने थे, भारतवर्ष में वैसे और कहीं भी न थे। नगरकी प्राचीन गौरवमहिमाको घोषित करता है। श्री. फिर दूमरी ओर विविध विलासजनक कलाविशी मी मद्वियारण्य मुनिके समयसे ही विद्यानगरफे विपुल यथेष्ट ना हुई थी। सुगायक, नर्तक और नर्तकियोंका धैभवका सूत्रपात हुगा । उस शुभ समयसे हो इस भी अभाव न था । इम समय विद्यानगरमै विविध विशाल राज्यका परिमाण, अर्थगौरव और राजवैभव | शिलाकार्यको उन्नति हुई थी। हजारों' मनुष्य शिल्प दिनों दिन बढ़ता गया। विद्यानगरके विशाल वैभवको कार्याकी उन्नति र सुखसे जीविका निर्वाह करते थे। वात सुन कर पारस्य गौर युरोप आदि स्थानोंके बि स्थापत्य कार्यसे गो हजारों मनुष्यको जोधिका चलती शीय पर्याटकंगण यह रिशाल नगर देखनेको गाते हैं। ची। मगण्य सौधसभाकीर्ण विद्यानगर हजारों स्थाति- . गगनभेदी गिरिमालाकी तरह सुरक्षित मुद्गढ़ दुर्ग को जीयिका प्रदान करता था, यह सहज अनुमान 'माला, कपिकल्पित इन्द्रपुरीको मात करनेवाले घभव किया जा सकता है । नित्य श्यवहार्य अस्त्र और समरास्त्र शोभामपो विपुलं सुरम्य राजपासाद, नगरमें यहनेवालो निर्माण के कारण कर्मकारों का खूप आदर होता था तशा पहुन मी जलप्रवादिका, शङ्खघंटा आदि मुखरित श्रीविग्रह उनकी खूब उन्नति हुई थी । फिर विदुरनगर हिन्दू गण अध्यूपित देवमन्दिर, अगण्य शिक्षार्थिसंकुल विद्यया । राजाकी राजधानी होने के कारण यहां पौरोहित्योपजीयो लय, विविध कारकार्यस्खनित प्रतिहारीमण्डलाधिष्ठित ! प्राहाणों को संपरा भी बहुत ज्यादा थी। उस समय घर- Vol xxI, 96