पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४८८ वालपेवाल-तालरेपनक समय यह खान विशेष ममहिपालो था। भम्बदुर्ग, बीज-विन्धकार, मूखकारक, बलकारा पोर पहाड़के चारों ओर सुशोभित दुर्भद्यदुर्ग पाचोर, प्रासाद लिङ्गदोष-प्रशमनक पौर अट्टालिकाएं प्राचीन ममृदिका विलक्षण परिचय मूल-सिग्धकारक, तिक्त, मूत्रकारक पौर बल. देतो है। मर हिड राजने १८५७ ई० में यहाँका प्राचीन कारक है। टुर्ग धनम मिला डाला। नगरको प्राय प्रायः ६००) पत्र-निग्धकारक पोर मूत्र कारक है। १० है। यहां अनेक प्रकारके अब पोर कपासका व्यव. ___ बम्बई प्रदेशमें इसके बोजों का रोजगार होता है। माय चलता है। पुलिमका खर्च निभाने के लिये प्रत्येक पर्याय कोकिलाक्ष, काकेक्षु, रक्षुर, भिक्षु, कागडे, ग्राम्यमे कुछ कुछ कर लिया जाता है। यहां एक इक्षुगन्धा, शृङ्गलो, शूरक, शृगालघण्टो, वष्वास्थि, शृङ्गला, प्रकारका कम्बल नैयार होता है। वनकण्टक, वज विक्षुर, शुकपुष्प, छत्रक ओर पनिच्छत्र। तालबेताल (हि.पु.) दो देवता या यक्ष। प्रवाद है अतिच्छत्र देखो। कि राजा विक्रमादित्य ने इन्हें मिद किया था और ये तालमदंक ( म० पु०) वाद्यभेद, एक प्रकारका बाजा । बराबर उनको मेवामें रहते थे! तालमलिका ( म स्त्रो.) तालमूलो देखो। तालभृत् ( पु.) ताल विभर्ति ध्वजरूपेण भृ-क्षिप । तालमूलिका (सं० स्त्रो०) तालमुलो स्वार्थ कन टाप. बलराम। हस्वय । तालमूलो, मुसलो। . तालमखाना-(हि.पु.) गोलो या मोड जमीन पर तालमूलो (म स्त्रो०) लालस्य मुलमिव मूलमसया, होनेवाला एक पौधा । यह औषधके काम आता है। बहुव्रो० । स्वनामख्यात सुपविशेष, मूसलो। संस्कृत संस्कृत प्रतिच्छवा। पर्याय-तालिका, तालमुलिका, अर्शीनो, मुषलो, ताम्लो, कर्णाटकी कालबबीज। खलिनी, सुवहा, तालपत्रिका, गोघापदी, हेमपुष्यो तामिन्न निमलो। भूताली पौर दोध कान्दिका। गुण-योत, मधुर, वृष्य, बम्बई। पुष्टि, बल भार कफप्रद, पिच्छिल, पित्त, दाह पोर मन्द्राज) तालमखाना, कोलशुगड़ा। महारक है। इसके दो भेद हैं, खेत पौर कृष्ण । सन्यान' गोकुल जनम। खेत पल्पगुणयुक्त और कृष्ण रसायन होता है। खेत यह एक तरहका छोटा कपट कतत है। यह भारत में तालमूलो सफेद मूमनी और कण तालमूलो काली सर्वत्र विशेषतः पानी या दल ' लाना होता है। मसलोके न ममे मशहर है। गुगण-मधुर, रम्य, वृष्य, इसके बीज, जड, पैड मनो दवाई काममें आते हैं। उष्णवोय और वहग, गुरु, तिक, रसायन तथा गुदज यह कण्ट मारी, गोखरू प्रादिको नातिना है। मपल- रोगामिलनायक है। (भावप्रकाश) मानो और आय वैद्यशास्त्र में मका बहन व्यवहार देख- तालमेल (हि पु०) १ तानसुरका मिलान । २ उपयुक्त नमें पाता है। इस शैत्य और मृत्रकारक गुणा अति योजना, मिलान, मेल जोल । ३ अनुकूल सयोग, पच्छा प्रमिद है। मूत्रमच्छ, उदगे बात भार लिङ्गसम्बन्धो मौका। रोगाम डमका व्यवहार किया जाता है। इमर बीज सालयन्त्र (स को०) मत्मातालुवत् हादशाङ्गल परिमित कामवर्षक हैं। इसकी जड़का उबाला हुआ पानो अधा यन्त्रभेद, बारह जंगलोका एक यन्त्र जिसका पाकार प्राध चम्मच दिन में दो बार पोनेसे मूत्रमच पोर अश्मगे मछलोके तालमा होता है। कान, नाक और नाड़ीके रोगमें फायदा पचता है। मनव र पदेशमें चिकिः शल्य निकालने के लिये यह गन्त्र याहत होता है। समे बिना पामा लिग हो लोग सत्ता कोगों ने रमका तालरस (म. पु. ) ताडके पेड़का मध, ताड़ो। व्यवहार करते हैं। यापीय डाकमि भो फिर ह ल तानीजनक (म'• पु०) सालेन रेचयति रिच-पिच ज्यु इसकी परीक्षा की पौर निक प्रकार गुण बतलाए है। । साथै पार। नट।