पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४७९

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४७२ अनुबन्धा-अनुभावन अनुबन्ध्य (सं० त्रि०) अनु पश्चात् वधार्थ बध्यते रुध्यते अनुब्राह्मणिन्, अनुब्राह्मणिकं देखो। यत्, अनुबन्ध कर्मणि खत्। १ मारा जानेवाला, अनुब्राह्मणिनी (सं० स्त्री०) अनुब्राह्मण देखो। जो ज़बहके लिये बांधा गया हो। २ प्रधान, प्रथम, अनुभर्ट (वै० त्रि.) अनुरूप प्रशंसा पहुंचाते तत्त्व जैसा ; बड़ा, पहला। इस अर्थमें यह विशेषण हुवा, जो मुवाफिक तारीफ सुनाता हो, नकल. ज्योतिष्ठोम यज्ञके तीन प्रधान पशुका द्योतक है। निकालनेवाला। अनुबल (सं० क्लौ०) पश्चादगामी रक्षक सैन्य, जो अनुभव (सं० पु०) अनु-भू-अप । १ ज्ञान, अल. फौज हिफाजत के लिये पीछे रहती है। २ उपलब्धि, समझ। ३ स्मृति-भिन्न ज्ञान, जो अक्ल.. अनुबोध (सं० पु०) अनु-बुध-णिच्-घञ्। १ पूर्व | याददाश्तसे ताल्लुक न रखे। ४ बोध, जो समझ अपने - संलग्न चन्दनादिके गन्धोद्दीपनको पुनर्वार मर्दन, तजरबसे आती है। ५ फल, नतीजा। पहली खुशबू निखारनेका दुबारा मालिश। २ अनु अनुभवना (हिं० क्रि०) अनुभव लाना, बोध बांधना, यायौ ज्ञान, पिछली समझ । ज्ञान निकालना, समझ सभालना। अनुबोधन (सं० क्लो०) स्मरण, स्मृति, याददाशत, अनुभवसिद्ध (सं० त्रि०) परीक्षा अथवा प्रतिपत्तिसे. ' खयाल । प्रतिष्ठित, जो तजरबे या कमालसे कायम किया. अनुबोधित (सं० स्त्रि.) स्मरण द्वारा सूचित अथवा गया हो।

विश्वसित, याददाशतसे जो मालूम हुवा या जिसपर | अनुभवानन्द-कृष्णानन्दके शिष्य और कोषरत्नप्रकाश

• एतबार आया हो। नामक वेदान्त-ग्रन्थके रचयिता। अनुब्राह्मण (स' क्ली०) ब्राह्मण वेदस्य मन्वंतर- अनुभवारूढ़ (स० त्रि०) परीक्षामें पड़ा, तजरबेपर भागविशेषः; ब्राह्मणसदृशोऽयं ग्रन्थोऽनुब्राह्मणम् । लगा, जो जांच कर रहा हो। अनुब्राह्मणादिनिः । पा ४।२।६। ब्राह्मण-सदृश ग्रन्थ । (स्त्री०) अनुभवी (स' पु०-त्रि.) अनुभवप्राप्त, तजरबेकार, अनुब्राह्मणिनी। जिसने कोई बात जांच ली हो। वेदके ब्राह्मण परिशिष्टपर कोई गड़वड़ नहीं अनुभाव (सं० पु०) अनुभावयति अनेन, अनु-भू- पड़ता। किन्तु अनुब्राह्मण किसे कहते है ? जान णिच्-घञ्। १ सङ्केत, इशारा। २ प्रभाव, सामर्थ, पड़ता है, कि सामवेदका परिशिष्ट और याज्ञवल्का महिमा, रुवाब, शान-शौकत, नामवरी। ३ निश्चय, प्रभृतिका रचित ग्रन्थ अनुब्राह्मण कहाता है। सामवेदके विश्वास, सम्मति, यकीन, एतबार, सलाह। कर्तरि -निदानसूत्र में अनुब्राह्मणिनाः' शब्दका उल्लेख निकलता अच् । ४ अलङ्कारशास्त्रोक्त स्थायिरसविशेषका प्रकाशक, है। फिर पाणिनिका यह सूत्र सुन याज्ञवल्का प्रभृति रत्यादिजनक कटाक्ष भूभनि प्रभृति। सात्विक, आधुनिक मुनिरचित पुस्तकको अनुब्राह्मण बताना कायिक, मानसिक और आहार्य भेदसे अनुभाव चार असङ्गत नही लगता,-पुराणोक्त ब्राह्यणकल्पेषु । पा ४।३।१०५॥ तरहका होता, जिसमें हाव भी मिला रहता है। याज्ञवल्का अधिक · दिनके प्राचीन नहीं, क्यों "विभावा अनुभावाय कथ्यन्ते व्यभिचारिणः । वह पाणिनिके समय प्रादुर्भूत हुये थे। इसलिये वक्तः स तैर्विभावाद्यः स्थायी भावो रसः स्मृतः ॥” (काद्यप्रकाश)

उन्हें पुरातन मुनि कैसे मान सकते हैं ? इन बातोंसे | अनुभावक (स० वि०), अनुभावयति बोधयति,

- अनुमान आता, कि याज्ञवल्कादि आधुनिक मुनिके अनु-भू-णिच्-खुल्। अनुबोधक, बता देनेवाला, - रचित ब्राह्मणसदृश ग्रन्थका ही नाम अनुब्राह्मण जिसके जरिये जान जायें। होगा। अनुभावन (सं० लो०), सङ्गेत अथवा अनुमानसे अनुब्राह्मणिक, (स'...पु.) अनुब्राह्मणवेत्ता, जो विषयका प्रकाशन, इशारे या अन्दाजसे: बातका शखस अनुब्राह्मण पढ़ा हो बलाना। 1