पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४८३

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४७६ अनुमरण 3B ! मन्त्र पढ़ने लगे। अपरापर लोगोंने मृतदेह को किन्तु महाभारतके समय सहमरण चल पड़ा सान दे उसपर फूल बरसाये। इसके बाद पुरवासी था। पाण्डु की मृत्यु बाद माद्रीने उनका अनुगमन सतीको बाहर लाये। उस समय वह साज न रहा, लगाया। राजतरङ्गिण के मतसे ६५३ वत्सर कलि- वह वसनभूषण न जाने कहां चला गया। युग बीतनेपर कुरुपाण्डव भूतल में प्रादुर्भूत हुये थे,- उसके अङ्गमें केवल एक सादो धोती रही, बालमें "शनेषु षषु साधेषु वाधिकेषु च भूतले । कलर्गतेषु वर्षाणामभवन् कुरुपाण्डवाः ॥" फूलका गुच्छा बंधा था। सतीने स्वामौके सम्मुख दक्षिण हस्त उठा स्थिरगम्भीर चित्तसे इष्टदेवताका आजकल कोई ५०१५ वर्ष कलियुग बीता ; नाम लिया, पुरकामिनाने अग्रसर था उसके हाथ में अतएव प्रायः ४३६२ वर्ष हुये, पाण्डव जीवित एक एक फूलका गुलदस्ता पकड़ाया; सतीने अभि रहे। उनके कोई सात सौ वर्ष पहले यदि सहमरण वादन दे वही गुलदस्ता फिर सबको वापस दिया। हो, तो कोई पांच हजार वर्ष हमारे देशमें इस उसके बाद स्त्रीने दुबारा इष्टदेवताका नाम निकाल प्रथाको चले निकलते हैं। किन्तु पुराणादि में पाते हैं, खामोका मस्तक, वक्षःस्थल, नाभि, जानु और पदतल कि उस समय सकल विधवा स्त्री पतिके साथ जलकर जा सूघा। बस, पूर्वानुष्ठान पूरे पड़ा। शेष सतौके न मरती थों-कोई ब्रह्मचारिणी बनतो, कोई घरमें ‘भाईने उसके निकट पहुंच पूछा,–'भगिनि ! तो रहती, कोई पुनर्वार विवाह भो कर लेती। क्या सत्य हो आप अनुमरण लगायेंगी?' स्त्रीने | पाण्डुको मृत्यु बाद कुन्तीने पतिका अनुगमन न कहा,-'हां। उसके बाद चाता छुरी निकाल बोल लगाया था। द्रोणाचार्यको मृत्यु होनेसे कपोने भी उठा,-'देखो, मैं. तब आपको मारता हूं, इसमें पतिका अनुगमन नहीं किया। भागवतमें लिखा मेरा कोई दोष नहीं।" यहो कहकर अपनी है-अश्वत्थामा नामक वीरपुत्र उत्पन्न होने के कारण भगिनीके वक्षःस्थल में अल्प अस्त्राघात लगा वह लम्बे कृपीको पतिका अनुगमग करना न पड़ा था- पड़ा। शेषमें फिर किसी सम्भ्रान्त व्यक्तिने जा स्त्रीको 'तस्वात्मनीई पबद्यास्त नान्वगाद्दौरसूः कपो।' (१७४३) जानसे मार डाला। पौछे दम्पतीको अन्त्येष्टिक्रिया बङ्गालमें इस नियमका चलन न रहा। वहां सम्पन्न की गयी। पुत्रवती भी मृतपतिके साथ जल मरतो थो। किन्तु किन्तु भारतवर्षमें स्त्रोहत्या करनेकी प्रणाली पञ्जाबमें पुत्रवतोके पक्षमें सहमरण निषिद्द रहता था। "It is a cliaracteristic trait that, only those women दूसरी तरह रही। छोटो हो या बड़ो, इस देशके devote themselves to tliat dismal ceremony whose ate लोग सतीको पतिके चितानलमें जीते जी पतङ्गको had decreed them not to be mothers.' तरह जला डालते थे। कह नहीं सकते,-यह (Honigberger) दारुण निष्ठुर आचार कितने दिनसे चला आता रहा। पूर्वकालको बनिस्बत. इन दिनों सहमरण कुछ किन्तु इसका जीवन्त प्रमाण वेद हो हैं, कि वेदके अधिक प्रचलित हुवा। स्त्रोको इच्छा न रहते भी समय सहमरण होता. न था। लार्ड वेण्टिङ्क और जातिबन्धु आत्मीयस्वजन उसे जबरन जला डालते थे। राममोहन रायने जब सहमरण प्रथा उठा देनेका अकबरके सेनापति जयमल्ल सिंहको मृत्यु बाद उनकी यन्त्र निकाला, तब इस देश धर्मव्यवसायियोंने अनेक स्त्री पतिक सङ्ग जल मरनेको असम्मत हुयो। जय. आपत्ति उठायो ; सहमरणके, अनुकूल स्मृति और मल्लके पुत्र उदयसिंहने जबरन जननोको जलानक. पुराणादिका प्रमाण बढ़ा, वेदसे भी. प्रमाण पहुंचाया। चेष्टा चलायो। बादशाहने यह संवाद पा उदय- किन्तु वह मिथ्या था। वेदमें सहमरणका प्रमाण सिंहको कंद किया। बादशाहने ऐसा कड़ा नहीं मिलता, मनुने भी अनुमरणको व्यवस्था. बतायो कानन भो बनाया, कि कोई स्त्रो अपनी इच्छा नहीं। मानारोः इत्यादि ऋङ मन्त्रका अर्थ अनुमृता शब्दमें देखो। अनुमृता न बननेसे, कोई उसपर ज़ोर न डाल