महीने। अनुमाष-अनुमृता अनुमाष (सं. अव्य०) अव्ययी। माषानुरूप, वस्त्राभूषण पहन कर खड़ी रहती थीं। उनकी उड़दके बराबर। आंखोंसे एक भी विन्दु आंसू न आता, एक बार अनुमास ( स० अव्य०) मासे मासे, वीप्सार्थे अव्ययी। भी कोई स्त्रो भूलकर शोक न करतौ। कुछ देरके प्रति मासमें, हरेक महीनेपर, मास-मास, महीने पौछ सधवा रमणियोंको घर भेज दिया जाता था। एक दिन ऋत्विक्ने विधवा स्त्रीको चितासे उठने अनुमित (सं० त्रि०) अनु-मा-त । हेतु द्वारा निश्चित, कहा, और उसके उठनेपर पुनार विवाह करने जिसका अनुमान लगाया गया हो, हवाला दिया का आदेश दिया। उस समय देवर या मृतव्यक्तिका हुवा, अन्दाजका, जो अटकलमें चढ़ा हो। शिष्य अथवा घरका कोई पुराना नौकर आके अनुमिति (स. स्त्री०) अनु मा-क्तिन्। व्याप्य हेतु हाथ पकड़ स्त्रीको चितासे उठा लेता था। उसके पीछे हारा व्यापक वस्तुका निश्चय, अन्दाज, कयास, शवको दाह क्रिया होती। अटकल। अनुमान देखी। पहले हिन्दुस्थानमें वेदप्रचार अधिक न था, अनुमित्सा (स० स्त्री०) अनु-मा वा मि वा मौ लोग वेदका मर्म न जानते थे। इसलिए समय समय सन्-भावे । १ अनुमान लगाने की इच्छा, कयास पर उन्हें बड़ा भ्रम पड़ा। रघुनन्दन भट्टाचार्यने करनेकी तबीयत । २ क्षेपणको इच्छा, फेंकनको सहमरणके मन्त्रोंसे दो एक ऋङ् मन्त्र उठाये हैं ; एक मर्जी। ३धनको इच्छा, दौलतको चाह । मन्त्रक शेषमें 'योनिमग्रे पाठ है। यही प्रकृत पाठ अनुमिमान (सं• त्रि०) पूर्ण करते हुवा, नतीजा है। हस्तलिखित और मुद्रित पुस्तकोंमें भी यही पाठ निकालनेवाला। लिया गया है। सायणाचार्यने “योनिमग्रे" इसी अनुमीयमान (सं० त्रि.) अनुमान लगाया जाता पाठको रखकर व्याख्या की है। किन्तु रघुनन्दन हुवा, जिसका कयास बंध रहा हो। भट्टाचार्य, 'योनिमग्ने' भूल का पाठ रख गहरे गड्ढेमें अनुमृत (स त्रि०) अनु-मृ-कर्तरि क्त, अनु पश्चात् गिरे हैं। जो कुछ हो, “योनिमग्ने" भूलका पाठ मृतम्। पुत्रादि शोकसे पश्चात् मृत, लड़के वगैरहके | स्वीकार करनेसे भी सहमरणको बात प्रमाणित नहीं रञ्जसे पीछे मरा हुवा, जो कोई दुःख पड़नेसे पीछे कर सकते और पूर्वमन्त्रका पर मन्त्र के साथ कोई मर गया हो। सम्बन्ध नहीं मिलता। सिवाय इसके “योनिमग्रे" अनुमृता (सं० स्त्री० ) अनु पश्चात् मृता। स्वामीको इस मन्त्रमें बड़ा गड़बड़ पड़ जाता है। सायण भाष्यके मृत्यु बाद उनके पादुकादि उठा ज्वलन्त चितामें जल साथ नोचे ऋचा उद्धृत को और उसको स्फुट व्याख्या मरनेवाली स्त्री, जो औरत अपने खाविन्दके मरनेसे लिखी जाती है। उसको खड़ाऊ वगैरह ले चितामें जल जाती है। "इमा नारीरविधवाः सुपनी रांजनेन सपिषा सविशंतु । वेदके समय अनुमरण या सहमरणको प्रथा अनवीऽनमोवाः सुरवा पा रोहंतु जनयो योनिमग्रे ॥ प्रचलित न थी। किसीको मृत्यु होनेसे आर्य हंसते, ऋक्संहिता १०।१७। और सकल मिलजुल कर कितना ही नृत्य मौत करते (इमाः, नारीः, अविधवाः, सुपत्नीः, अञ्जनेन, घूमते रहते थे। “प्रांचो अगाम नृतये हसाय।” ( ऋक् १०।१८३) सर्पिषा, सम्, विशन्तु, अनश्रवः, अनमौवाः, सुरत्नाः, उन्हें इसके द्वारा परमायु बढ़नेका विश्वास था। आ रोहन्तु। जनयः योनिम्, अग्रे।) अन्त्येष्टिक्रियाके समय श्मशानमें चिता सजाकर उस 'अविधवा:-धवः पतिः। अविगतपतिकाः, पर शव रख दिया जाता, मृत व्यक्तिको विधवा जीवों का इत्यर्थः। सुपत्नीः-शोभनपतिकाः । इमा पत्नी उसके पास चितापर सोती; चिताको चारो नारी नार्य आञ्जनेन सर्वतोञ्जनसाधनेन सर्पिषा और पुत्रवती सधवा स्त्रियां आंखोमें मृत लगा वृतेनाक्तनेत्राः सत्यः विशन्तु। तत्रानश्रवोऽश्रवर्जिता
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४८७
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