पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५२२

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अनेकाल-अनह ५१५ 1 यदारी। मङ्गल गंठता। किन्तु ऋत्विगोंने वैसा न कर इन्द्र ई. तक धारवाड़के दक्षिण और पूर्व कृष्णातक शब्दपर जोर डाला था। इसलिये बहुव्रीहि समास राज्य किया था। होने पर यह अर्थ निकला, कि इन्द्र जिसके शत्रु | अनेजत् (सं० क्लो) एज कम्पे शट न एजत्, नञ्- अर्थात् घातक हैं, उन्हों इन्द्रको श्रीवृद्धि हो। तत् ; एजनं कम्पन स्वभावात् क्षरणं तत् वर्जितं सर्वदा "मन्चोहीनः खरतो वर्णतो वा मिथ्याप्रयुक्तो न तमर्थमाह। एकरूपत्वात्। सर्वदा एकरूप परब्रह्म। (त्रि०) २ कम्पन- स वाग्वञ्ची यजमान' हिनस्ति यथेन्द्रशव : खरतोऽपराधात् ।" रहित, कंपकंपीसे अलग, जो हिलता-डुल्ता नहीं। मतलब यह, कि मन्चका स्वर किंवा वर्ण हान | अनेड़ (स. त्रि.) मुखे, निर्बुद्धि, नादान, हो जाने अथवा मिथ्याप्रयोग पड़ने से, वह वाक्यरूप नावाकिफ। वज्र यजमानको नष्ट करता है। जैसे, स्वरप्रयोग | अनेडमूक (स• त्रि०) एड़ो बधिरः मूको वाक्- विषयमें अपराध आते भो ‘इन्द्रशत्रु' इस शब्दने शक्तिशून्यश्च नास्ति यस्मात् । १ अतिशय बधिर, यजमानको नष्ट किया था। निहायत बहरा। २ अन्ध, नाबौना। ३ कुत्सित, अनेकाल (सं० वि०) व्याकरणमें-एक अक्षरसे बद, बुरा, खराब। अधिकका, जिसमें एकसे अधिक अक्षर रहे। अनेद्य (स० वि०). णिदि कुत्सायां नेद्यते, निद- अनेकान्तवाद (सं• पु०) चमवाद, अधर्मचर्चा, ख्यत् न नेद्यम् ; नञ्-तत्। अनिन्दनीय, अप्रशस्त, कलाम-कुफर। प्रधान, मशहर, मौरूफ, खास । अनेकान्तत्व (सं० ली.) अस्थिरता, चाञ्चल्य, नापा- "माध्यन्दिनस्व सवलख जवहन्ननेद्य ।" (ऋक् अनेन (स० वि०) १ पापरहित, निरपराध, बेगुनाह, अनेकाश्रय-अनेकाधित देखो। बेकुसूर। २ विचित्र अख दलविहीन, जिसके पास अनेकाश्रित (सं० पु०) अने केषु आश्रितः युक्तः, गूना घोड़ेको जोड़ी न रहे। (पु.) ३ प्रभु, ७-तत् । १ संयोगादि, सामान। (त्रि.) २ अनेकके मालिक। ४ राजा, बादशाह। शरणापन्न, कितनोंहीको पनाहमें पड़ा हुवा। अनेनस् (सं० त्रि.) नास्ति एन: व्यसन पापं वा ३ अनेकके यहागत, कितनोंहोके घर गया हुवा। यस्य, नञ् -बहुव्री० । व्यसनशून्य, पापशून्य, खुश- अनेकीकरण (सं.ली.) कितनी ही तहका चढ़ाव । नाम, बेगुनाह। अनेकोभवत् (स० वि०) दोमें विभक्त, दोमें बंटा "राजा भवत्यनेनास्तु मुच्यन्ते च सभासदः । एनो गच्छति कर्तारं निन्दाहों यव निन्दयते ॥" ( मनु ८१९) हुवा। अनेकौय ( स० वि०) कितनो हीका, जिसके पास अनेनस्य (सं. क्लो) पाप अथवा अपराधको कई रहें। स्वतन्त्रता, गुनाह या कुसूरसे आज़ादी। अनेग (हिं०) अनेक देखो। अनेमन् (सं० त्रि०) नौ मनिन् नेमन् न नेमा, अनेगदेव-बम्बई प्रान्तवाले देवगिरि राज्यके नृपति नत्र-तत्। प्रशस्य, तारीफ़के काबिल.। विशेष। इनके पुत्रका नाम महामण्डलेवर वौर अनेरा (हिं० वि०) . १ असत्य, झूठ। २ व्यर्थ, बिज्जरस रहा, जो माहिष्मतीनगरोंके.एकमात्र अधि बेफायदा। ३ निष्य योजन, बेमतलब । पति कहाते थे। इनके विषयके जो दो ताम्रफलक बदमाश, अन्यायी, जालिम । मिले, उनमें सन् १२१० ई०को तारीख पड़ी है। अनेव (सं• अव्य.) १ दूसरी तरह। २.अथवा, अनेगुण्डो–धारवाड़के विजयनगरका दूसरा नाम, या। ३ नहीं तो। अंगरेजी अधिकारके प्रारम्भमें यह राज्य बड़ी उन्नति- अनेह (हिं. पु०.) मेहका अभाव, प्रेमका अनस्तित्व, पर रहा। यहांके राजाने सन् १३३३से १५७३ मुहब्बतका न होना।