पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५७९

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अन्त्रवेष्टप्रदाह ५७३ सहज उपायसे ही अन्त स्वस्थानमें चढ़ जायगा।। होगा। खांसने, वमन किंवा मलमूत्रत्याग करने में अन्त के पेटमें घुसते समय गुड़-गुड़ और कर-कर शब्द यन्त्रणासे प्राण निकल जाता है। खास-प्रश्वासके निकलता है। किन्तु किसी-किसी स्थलमें इस समय भी पेट खिंचे, जिससे रोगी अत्यन्त कातर सामान्य उपायसे कुछ भी फल नहीं मिलता। उस पड़ेगा। पेटका चर्म अलग रखनेको रोगो अपनी समय अन्यान्य नाना प्रकार उपाय करना आवश्यक छातीके पास घुटना खींच लाता है। मध्य-मध्य होगा। रोगीके अण्डकोषपर पर्यायक्रमसे एक बार हिक्का और वमन करेगा, नाड़ी अत्यन्त क्षीण और उष्ण और एकबार शीतलजल धार बांधकर छोड़ना द्रुतगामौ होगो। सर्वाङ्गसे धर-धर धर्म निकलता, चाहिये। कुछ देर ऐसा ही करनेसे अन्त्र आप हो अवशेषमें रोगी अवसन्न पड़ प्राण छोड़ता है। चढ़ जाता है। इससे भी रोगको शान्ति न होनेपर पौड़ाको प्रथमावस्थापर मृत्यु न होनेसे पेरिटो- रोगीका मस्तक शय्यामें किञ्चित् नौचा रखे और कटि नियममें सिरस् रस सञ्चय हो जायगा। देशमें बड़ा तकिया लगा पैर ऊंचे उठा दे। इस प्रसवसे ४५ दिन बाद सूतिका-ज्वर के साथ अनेक प्रक्रियासे अन्त्र भीतरकी ओर सरक सकेगा। अन्त स्त्रोको पेरिटोनाइटिस सताता है। प्रसवके बाद स्वस्थानमें पहुचनेपर पेटको ट्रास नामक चमड़ेको इस रोगको उत्पत्तिका विस्तर कारण देख पड़ेगा। पट्टीसे बांध डाले। सोते समय ट्रास पहने रहनेका फूलका कियदंश गर्भक भौतर कटा रहनेसे क्रमशः प्रयोजन नहीं पड़ता। किन्तु शय्या छोड़नेसे पहले सड़ता, उसी गलित द्रव्यके बाष्पसे रक्त बिगड़ जाता ट्रास पहन लेना चाहिये, नहीं तो अन्त्र उतरनेको है। गर्भमें सन्तानके मर जानेसे भी अन्ववेष्टझिल्लोपर सम्भावना रहेगी। अन्त्रके स्थानभ्रष्ट हो कहों बंध प्रदाह दौड़ सकेगा। इरिसिपेलस्के विषसे कभी- जानेपर सिवा अस्त्रचिकित्साके रोगोका प्राण अन्य कभी पेरिटोनाइटिस् उपजनेको सम्भावना है। उपायस नहीं बचता। प्रसवके बाद सूतिकावर एवं अन्त्रवेष्टझिल्ली- अन्त्रवेष्टप्रदाह (सं० पु०) आंतके परदेको जलन प्रभृतिमें प्रदाह होनेसे ग्राहस्थ और चिकित्सक ( Peritonitis)। अन्वादिपर जो बारौक सफेद उभयको ही विलक्षण सतर्क रहना चाहिये । यह रोग झिल्ली जैसा चर्म लगा, वह अन्ववेष्ट (peritonium) अत्यन्त संक्रामक होता एवं समझने का कोई उपाय कहाता है इस चर्ममें कभी-कभी प्रदाह उठेगा। नहीं मिलता, इसका विष कैसे कहां रहता है। अन्तवेष्टप्रदाह अतिशय कठिन पौड़ा है। सकल सूतिका-ज्वराकान्त स्त्रीको छूकर चिकित्सकने अपने वयसमें हो यह रोग लग सकेगा। किन्तु प्रसवके नख कटाये, बाल बनवाय, वस्त्रादि छोड़ उत्तम बाद स्त्रोको ही यह अधिक सताता है। सिवा उसके रूपसे स्नान किया। इतनी सावधानताके बाद पेटमें किसी प्रकार आघात आनसे भी यह उत्कट वह अन्य गर्भिणीको चिकित्सा करने गये, किन्तु पौड़ा दौड़ सकेगी। उससे कोई फल न निकला। वही सकल स्त्री उलटे पोड़ा उठनेसे पहले कम्प लगता है। कम्पके उत्कट सूतिकाज्वरसे आक्रान्त हुई। इसलिये घरमें बाद प्रबल ज्वर, पिपासा, एवं उदर वेदना सतायेगी। किसौको सूतिकादि ज्वर चढ़नेसे वहां गर्भवती स्त्रीका सर्वप्रथम समस्त पेटमें वेदना नहीं उठती। रोगौसे रहना कर्तव्य नहीं ठहरता। चिकित्सक किंवा पूछनेपर वह केवल पेटके स्थान-स्थानमें वेदना आत्मोय बन्धुबान्धव सूतिका ज्वरग्रस्त खोके पास बतावेगा। उसके बाद पेट फूलता, ऊपरी भाग बैठनेसे मासावधि कभी किसो अन्तःसत्वाकै निकट सखू त पड़ता एवं समस्त पेटमें वेदना फैल जातो न जाये। है। वैसे समय रोगो किसोतरह पेट छुने नहीं देता । चिकित्सा-पेरिटोनाइटिस रोगमें हरगिज़ विरेचक उदरपर कोई बारीक कपड़ा भौं रखना उसे असह्य औषध न खिलाना चाहिये। किन्तु बहदन्वमें 144