पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अपक्षित-अपचायित अपक्षित (स.त्रि०) क्षीण हुआ, घटा हुआ। कर, आगमें जलकर गलेमें रस्सी बांधकर इत्यादि अपक्षिप्त (सं० त्रि०) फेंका हुआ, पतित । प्रकारसे मरना, आत्महत्या। अपक्षेपण (सं० क्लो०) अपक्षिप्यते अप-क्षिप भावे अपघात मृत्य दो प्रकारको है-इच्छाधीन और ल्युट् । अधःपातन, गिराना, फेंकना। आकस्मिक। दैवयोगसे यदि कोई जलमें डूबकर अपगण्ड ( स० पु०) गण्डो वृद्धो वैधरीत्यार्थे । अत्यन्त अथवा और किसी तरह मर जाय, तो यथानियम शिश, जिस शिशुके हाथ पैर दृढ़ न हुए हों, नितान्त उसके प्रेतकर्मादि होते हैं। किन्तु यदि कोई जान अबोध शिशु, विकलाङ्ग, अङ्गहीन। बूझ कर बिष खा वा गलेमें रस्सी बांधकर अथवा और अपगत (सं० त्रि०) अप-गम कर्तरि क्त । मृत, गत, किसी तरहसे प्राण दे डाले, तो हम लोगोंके शास्त्रानु- दूरीभूत, अपघात, पलायित, रहित, मरा हुआ, भागा सार कभी उसको सद्गति नहीं होती। उसकी हुश्रा, नष्ट। अग्निक्रिया, अशौचग्रहण एवं तर्पणादि सब मना हैं। अयगम (सं० पु०) अप-गम भावे घञ् नोदात्त इति आत्मघातीको लाशको पड़के तले वा किसी तीर्थ- न वृद्धिः। प्रस्थान, नाश, पलायन, वियोग, जुदा स्थानमें फेंक देनेको व्यवस्था है। जो ऐसे पापीको होना, भागना। दाहक्रिया करता है, उसे गुप्तवच्छ ब्रत करना पड़ता अपगमन (सं० लो०) अप-गम भावे ल्युट् । नाश, है। यदि यह ब्रत करने में असमर्थ हो, तो उतने ही अपसरण, प्रस्थान, पलायन, जाना, भाग जाना, मूल्यके रौप्यादि दान कर दे। आत्मघातीके लिये खिसक जाना। आंसू गिराना न चाहिये। उसके पुत्रको नारायण- अपगर ( स० पु० ) अप-गृ निन्दने भावे अप । निन्दन, वलि देना पड़ता है। नारायणवलि न देनेसे जन्म निन्दा करनेवाला। बद जबान बोलनेवाला। भर देह अशुद्ध रहती है। अपगर्जित (सं० वि०) गर्जनरहित, बिना कड़ अपघातक (सं० पु.) अप-हन्ति अप-हन-खुल् । कड़ाहटका। विनाशक, वञ्चक, विश्वासघात करनेवाला। अपगल्भ (सं० पु.) वीरत्वविहीन, किनारे रहना, अपघातिन् (स० त्रि.) अप-हन कर्तरि णिनि । अधूरा, कच्चा, अकारण । अपघातकर्ता, अपहननकर्ता, आत्महत्या करनेवाला। अपगा (सं.वि.) अपगच्छति निष्यन्द्यते अप-गम- अपघाती (हिं० वि०) अपघात करनेवाला, विखास- विट । पलायनकर्ता, अपमानकर्ता, जलवाहिनी नदी। घाती, घातक, वञ्चक। अपगारम्, अपगोरम् (स० अव्य०) अप-गुरी उद्यमने अपण (सं० त्रि०) अपगता घृणा यस्य। निर्दय, णमुल। उठाकर। निर्लज्ज, निष्ठुर, बेशर्म। अपगोपुर (सं. त्रि०) बिना फाटक वा दरवाजेका अपच (सं० पु०) पक्तु न शक्नोति पच्-अच् । पाक (जैसे कोई नगर)। करने में अशक्त, जो पच न सके, पाचक न हो, बद- अपगोह (सं० पु.) अप-गुह-घञ्। गोपन, तिरो- हजम, अजीर्ण। धान, छिपनेको जगह। अपचय (सं० पु.) अपि-चि-अच् । क्षति, अपहरण, अपग्रह (सं० पु०) प्रतिकूल ग्रह। क्षय, व्यय, हानि, पूजा, नाश, सम्मान, कमी। अपघन (सं० पु०) अपहनाते शत्रु प्रभृतिर्येन अप अपचरित (सं० लो०) अपकृष्ट चरितम्। दुष्ट हन करणे अप निपात्यन्ते। अङ्ग, शरीरके अवयक, आचरण, दुष्ट चरित, बुरा कर्म, दुराचार। हाथ पैर। शरत्काल, मेघशूना । अपचाय (सं० पु०) कमी, हानि, घटी, तङ्गी, मुहताजी। अपघात (सं० पु.) अपकष्टं हनाते अप-हन-भावे अपचायित (सं० वि०) अप-चाय पूजायाम्-ता। घञ्। अपमृत्यु, अपहनन, रोमादि भिन्न जलमें डूब पूजित, आदृत, सम्मानित।