पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२१८

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२१८ कालिदासने कहा है,- "स वीवा कपिश सेन्यवंडदिरदसतुमिः । उत्कलादविपथः कवितामिमुखी ययौ। (रघुवंश) रघु हाथियों का सेतु बांध कपिशा नदी उतरे और उत्कलदेशवासी राजावोंके साहाय्यसे पथको देख कलिङ्गकी और चल पड़े। शक्तिसङ्गमतन्त्रके मतमें- "मनवायात पूभागात कृष्णावीरान्तगं शिवे । कलिकदमः मोती वाममार्गपरायणः । कलिदेशमारभ्य पवायोजनं शिवे। दक्षिणया महथानि काखितः परिकीर्तितः।" जगन्नाथ पवै भागसे -कृष्णानदीके तौर तक कलिङ्ग देश है। इस स्थानके लोग वाममार्गपरायण होते है। फिर कलिङ्गदेशसे दक्षिण ५८ योजन पर्यन्त कानिट कहाता है। कविरामने अपने दिगविजयप्रकाशमें बताया है,- "पौड्देयादत्तरे च कलिङ्गो विश्नुवो भुवि । वाज्यं भोमकेशस्य सर्वखोकेषु विश्वतम् ।" १८) भीड़ देशसे उत्तर प्रसिद्ध कलिङ्ग देश है। वहां सोकप्रसिद्ध भीमकेश राज्य करते हैं। यह हमारे देश का प्राचीन मत हुआ। अब देखना चाहिये-प्राचीन ग्रीक और रोमका ऐतिहा. सिकोंन कलिङ्गके सम्बन्ध में क्या कहा है। लिनिने तीन कलियों का उल्लेख किया है,-१ कलिङ्गी, २ मोदोगलिङ्गम् आर ३ मकोकलिङ्गी। इनमें कलिङ्गो, मण्डि एवं मल्लिके बीच पोर मालेयास पर्वतके निकट qafga (Pliny, Hist. Nat. VI. 21) सब लोग पूछ सकते-मण्डि और मंनि किसे कहते हैं। फिर मालेयास पर्वत ही कहां है। मण्डिलोग मानकत मुण्डा कहाते और छोटे-नागपुरके दक्षिण अंशमें पाये जाते हैं। (Campbell's Ethnology of India, pp. 150-I) wê wafa दूर उड़ीसेक पावत्यप्रदेश में कन्ध नामक असभ्य रहते हैं। यही असभ्य जिनिवर्णित मनि मालम होते हैं। यह अपनेको कभी कभी मझारु या माल भो कहा करते हैं। मालेयास पर्वत इमारा पुराणोख "मात्यवान्” है। प्लिनि दूसरे स्थानमें लिखते, कि मालयास् पर्वत पर मोनेदे और शयरी रहते थे। इसका भूरि भूरि प्रमाण मिला-पति पूर्व कालसे उड़ासके पार्वतीय प्रदेश में शवर लोगोंका वास रहा। पुराणको वर्णनाके अनुसार नीलाचलके निकट ही शवरागार था। वहां शव-चक्र गदाधर विष्णुको मूर्ति विराजमान थी। "नीलाचलं लिखन्तं खं पश्यतां पापनाशनम् भन्यदभुतं निवसति साधाचनुमती हर:॥ उपत्यकाथामाष्टः समन्तान्मार्गयन् दिजः । ददर्श शवरागाष्टित परितो क्षित चेवस्य दीप यत् शवरदीपकम् ॥ ददर्श विष्णुमक्वान्तान् गहचागदावरान् । भतो विश्वावसुर्नाम शवर पलिवाहकः " (स्कन्दपुराण.) अतएव लिनि-वर्णित 'शयरी' पुराणकथित शवर- से भिन्न दूसरे नहीं ठहरते। पाजकन्न उड़ीसेके अन्तर्गत पातलहरा राज्यके मध्यवर्ती एक उच्चगिरि शृङ्गको मालय (माल्यगिरि) कहते हैं। सम्भवतः पूर्व- कालमें उक्त राज्यको समस्त गिरिमालाका नाम .. माल्यगिरि रहा । यही गिरिमाला 'मालयास' नामसे लिनि हारा वर्णित हुयी है। इसे पुराणोख माध्यगिरि माननमें कोई दोष नहीं लगता। सुतरां समझ पड़ा, कि प्लिनिने उड़ौसके पश्चिमांशको कलिङ्क अनुमान किया था। दूसरा मोदोगलिङ्गम् है। हमारे प्रनतत्वविद राजेन्द्रवालने इसे मध्य-कलिङ्ग लिखा है। फिर विख्यात फरामोसी पण्डित सेण्टमार्टिन इस स्थानके सम्बन्धम वतात, कि मनुस्मृतिमें मद नामक एक प्रकारके असभ्य लोगों का नाम पाते हैं। वह आन्धोक साथ वर्णित हुये हैं। प्लिनिने उन्हें गङ्गाके बाद दीपका वासी बताया है। गलिङ्ग सम्भवतः कन्तित शब्दका रूपान्तर मात्र है। गवाके 'व' दीपमें रहने- वाले मदगलिङ्ग कहाते थे। हमारी समझमें उस दोनों मत सङ्गत मालूम नहीं पड़ते। वेलगु भाषामें मोदोगलिङ्ग शब्द मिचता है। तेजड़ियों के उच्चार-

  • मनुहिवामैं बह वेदैहिक नाविधमुत्पन्न मेद पोर अन्ध भामसे

पमिहित ये है। (ननु १०।२६) मद नाम पद्ध है।