सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कलिङ्ग २२२ समय इसका क्षेत्रफल प्रायः ८३३ मौल रहा।. चतु: उल्लेख है-मणिपुर और रानपुर। बौधशास्त्रमें सोमा उक्त न होते भी यह राज्य पश्चिममें अन्ध और कलिङ्गके दन्तपुर और कुम्भवती नामक दो प्राचीन दक्षिणमें धनकटक राज्यसे मिला था। प्रान्तको नगरीका नाम मिलता है। फिर जैनियोंके हरिवंशमें सीमा दक्षिणपश्चिम गोदावरी और उत्तरपश्चिमको काबननगर लिखा है। प्राचीन शिलालेखोमें कलिङ्ग- इन्द्रावती नदीको शाखा गण्डिलियासे आगे न नगर, पिष्टपुर, वेङ्गीपुर प्रभृति कई दूसरे भी प्राचीन रही। यह विस्तीर्ण भूमिखण्ड महेन्द्रपर्वत द्वारा नगर देख पड़ते हैं। समाकीर्थ था। शिलालिपिवित् हुल्टसके मत, कलिङ्ग यह निर्णय करना कठिन लगता, किस समय गोदावरी पौर महानदीके मध्य पड़ता है। कलित जनपद संस्थापित हुवा । महाभारतके मतमें हमारे मत महाभारत और इरिवंशके समय दीर्घतमाके पुत्र कलिङ्गने अपने नामपर यह जनपद कलिङ्गराज्य वर्तमान वैतरणी नदीके तटप्रदेशसे लेकर वसायाया- दक्षिणमें दावरी नदी तक विस्तृत था मेदिनीपुर, "पको वनाः कविनय पुषः सूझाय ते सुवाः । उड़ीसा, गजाम और सरकार कलिङ्ग राज्यमें ही वैषां देशाः समाख्याताः स्वनामप्रथिता मुवि । कलिविषय व कलिङ्गस्य च स मा तः। (महाभारत,आदि,१०४॥४८) रहा। उत्कलराजके बढ़ जाने पर उड़ीसा कलिङ्गसे महाभारतको देखते कलिङ्गराज्यका स्थापन कालं निकल पड़ा। उल्कल देखो। फिर केवल गजाम और वैदिक लगता है। दौघदमा देखो। सरकार कलिङ्गमें रह गया। ई के १०म तथा ११श वास्तविक यह जनपद पति प्राचीन है। वैदिक शताब्दमें चालुक्य राजावोंके प्रवल प्रतापसे कलिङ्कराज्य अन्यों में न सही-रामायणादिमें इसका उल्लेख मिलता है। उत्तरको उत्कल और दक्षिणको चोलमण्डल तक (रामायण, किस्विन्ध्या, ४११०) फैला था। उस समय तेलङ्ग पर्यन्त कलिङ्गराज्यके पूर्वकालमें यहांके क्षत्रिय विलक्षण क्षमताशाली अन्तभुत रहा। मुसलमानोंके चढ़ते कलिङ्गराज्यको थे। कुरुक्षेत्र में युद्धके समय कलिङ्गराज महावीर भूमिका परिमाण बहुत घट गया। उत्कल और श्रुतायु दुर्योधनको ओर पाण्डवोंसे लड़े। भीमके तैलङ्ग स्वतन्त्र हुवा। महेन्द्रपर्वतके उपरिस्थित हायसे वह और उनके पुत्र शक्रदेव तथा केतुमान् सामान्य भूभागको लोग कलिङ्ग कहने लगे। वस्तुतः मारे गये। (मीमपर्व) उस समय कलिङ्ग नामक लोपकी बारी आयी थी। दाथावंश, महावंश प्रभृति प्राचीन बौद्ध ग्रन्थमें प्राजकसके वर्तमान मानचित्रमें भी कलिङ्ग राज्यका लिखा, कि वुद्धका निर्वाण होने पर कलिङ्ग के तत्का- कोई उल्लेख नहीं। केवल समुद्रतटस्थ कलिङ्गपत्तन लोन रानाने बुहका दन्त ले जाकर अपने राज्यमें डाला और गोदावरीके सुहानका करिङ्गनगर मानो कलिङ्ग था। उन्होंने जहां वह दन्त रखा, वहां दन्तपुर राज्यके चिङ्गमात्रका सारण दिलाता है। नामक नगर वस गया। दन्तपुर देखो। महाभारत पादिमें कलिङ्गके दो प्रधान नगरोंका कलिङ्गक (संपु०-क्ली०) कलिङ्ग इव कायति, कलिङ्ग संज्ञायां कन् कसिङ्ग - के - क इति वा । E. Holtzsch's South Indian Inscriptions, p. 63, १ इन्द्रयव। २ प्रचक्ष, पाकरका पेड़। ३ कुटजवृक्ष, परिशमं लिखा है,-"पाय कलिकालावलिप्तकाः।" कुटकोका पेड़। ४ शिरीषवाक्ष, सिरिसका पेड़। ५ (२२८५०५५ शो०) पूतिकरल, करौल। ६ पक्षिविशेष, एक चिड़िया। इस स्थलमै नाबलिप्त (वर्तमान तमलुककै) साथ कलिङ्ग उक्त होने से दोनों सन्निकटस्य बनपद समझ पड़ते टलेमिने भी गवा- ७ तरम्बुज, तरबूज, कलीदा। यह मधुर, शीतल, वृष्य, सागरकै निकट लिङ्का राज्य · बताया है। Indian Antiquary * रामायणमैं एक दूसरे कलिनका नाम है। वह गौमनौ चौर Vol. XIII p. 368. अयोध्याकै मध्यवतो किसी स्थानमें रहा। (रामायण, अयोध्या, १०) Vol. IV. 56