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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२३३

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२३४ कल्कि संत्ययुगके साथ कसिकको उठाने के लिये शशिध्वज निकट पहुंचे थे। वह धर्म तथा सत्ययुगको अपने खड्गहस्त धुसे थे। विषकन्या एक स्थानपर देख पड़ी। कन्धाने कहा,-'मेरे तुल्य इतमागिनी विषनेता दोनी कचौमें दबा और कल्किको वक्षस्थलसे लगा कामिनी दूसरी नहीं। पाप कौन है ? कल्किने उपसे अपनी पुरो चले गये। उनने घरमें पहुंच रानीको विषनेता होनेका कारण पूछा। उसने उत्तर दिया मैं सखियोंके साथ हरिगुण गाते पाया था। राजा उनसे गन्धर्वरान चित्रग्रीवको भार्या सुलोचना है। एक दिन कहने लगे,-'प्रिये ! भगवान् कलिक मूछिलसे | मैं पतिके साथ गन्धमादन कुञ्जवनमें रसालाप करती हमारे वक्षस्थल में लग तुम्हारी भक्ति देखने आये हैं। थी। उसी समय नद्य मुनिका कदर्य कलेवर देख मुझे फिर हमारे दोनों कक्ष में धर्म और सत्ययुग है। इन बड़ी इंसौ पायो। मुनिने क्रोधवश विधवा होनेगा की यथोचित अर्चना कीजिये। सुशान्ता सबको अभिशाप दिया था। पाज आपके दर्शनसे मेरे प्रणामकर और हरिप्रेमसे विश्वल बन नाचने गाने भापका अन्त हुवा। अब मैं स्वामीके पास जाती है। लगौं। स्तवसे तुष्ट हो कलकिने सुतोस्थितकी भांति विषकन्या स्वर्ग को चली गयो। ककिने उन ईषत् लजितमुखसे सुशान्ताका परिचय पूछा। उन्होंने पूरीके अधोखर अमर्षशो राज्यपर अभिषिक्त किया। अपनेको दासी बताया था। धर्म और सत्ययुग मुशा फिर उन्होंने मरुको प्रयोध्या, सूर्यकेतुको मथरा, देवा- साको हरिभक्ति सराहने लगे। कलकीने कहा यथार्थ पिको धारणावत, अरिस्थल, कसल, कामन्दकं एवं तुम्होने हमको जीत लिया। शेषको उन्होंने शशिध्वज हस्तिमा, कविप्रभृति भाइयोंको घोह, पौड श्रादि, को कन्या रमाका पाणिग्रहण किया। फिर कल्किके जातिवर्ग को कोकट प्रभृति और विशाखयूपको कौर सहचर राजावाने शशिध्वजसे उस पपूर्व भक्तिको कथा तथा कलाप राज्य दिया था। फिर सब शम्भल लौट पूछौ। उन्होंने परिचय देकर जिस प्रकार हरिभक्ति गये। पृथिवीपर धर्म और सत्ययुगका अधिकार यायी, उसी प्रकार सब बात खोलकर बतायी थी। उसके पीछे कथाप्रसहमें शशिध्वजने भखि एवं कुछ दिन बीतने पर विष्णु यशाने या करनेको वासनातत्व देखा दिया और दिविद तथा जाम्बवान्को पुत्रसे कहा था। कल्किने उनके पादेशसे राजसूय, भांति मरणको प्रार्थना की। राजावाने उन दोनों वानपेय और पखमेधयज्ञ सम्पत्र किया। छाप, . वानरीका वृत्तान्त सुनना चाहा था। राजाने सब बताकर राम, वशिष्ठ, व्यास, धौम्य, अक्षतवण, अश्वत्थामा, कहा.-'हमी कृष्णावतारमें सत्यभामाके पिता सवा मधुच्छन्दा और मन्दपाल प्रभृति महर्षि उन सकत जित्थे।' इसके बाद कलिक खशर शशिध्वजको सावना यज्ञोंमें उपस्थित थे। कल्किने यज्ञान्तमें गङ्गायमुना. दे चल दिये और ससैन्य काञ्चनपुरी पहुंच गये। वह के सङ्मस्थलपर बायोको खिलाया पिलाया। पीके पुरी गिरिदुर्गसे वेष्टित और सपंजालसे रचित थी। सब लोम शम्भससौट गये। कल्कि विविध बाणों द्वारा विषास्त्र हटा पुरी, घुसे। समय पाकर परशराम कल्शिक भवन पहुंचे। युरोके मध्य सुन्दर प्रासाद हरिचन्दन वृक्षसे वेष्टित इसी बीच करिक पद्मावतो-गर्भजात नय और विजय और मणिवाचनसे अतहत थे। किन्तु मनुष्चोंका दो पुत्र हुये थे। रमाके कोयो बालक न रहा। उन्होंने कोई सम्पर्क न रहा। केवल नागकन्या चारो पोर परपरामको देख अपना अभिवाव कहा । परपराम- ने रमासे किसीव्रत कराया था। व्रतके प्रभावसे धुमती फिरतो-यौँ। कलकि पुरीमें घुसवे हिचकिचाने रमाने मेघमाल और वसाहक नामक दो पुत्र पायें। सगे। उसी समय देववाणी हुयौ,-'पाप अकेले ही प्रवेश कीजिये। इस पुरी में एक विषकन्या है। उसके कल्कि पत्नीपुत्रके साध महामुखसे दिन बिताते थे। पिर ब्रह्मादि देवतावोंने उनसे खग जानेको अनुरोध देखते पापको छोड़ सब मर जावेंगे।' फिर वह केवल एकको पका और अखपर चढ़ काचनपुरोम | किया। प्रवर्तित हुवा। . ककिने पुत्र तथा प्रजावर्गको बा अपने