पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२५०

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। । । कवरकी-कवलित २५१ कवरशी (० स्त्री०) कवर केशपाशं किरति विकिरति क्षेत्रफल ८८० वर्ग मीच संगता है। कोई ३८० ग्राम यत्र, कवर कृड्-डोष । कारागारबस्त्रो, के दमें पड़ी इस राज्यके अन्तर्गत है। हुए औरत। अपने देशपाशको बांध न सकनेसे कवर्धके पशिम अंश चिलपी गिरिश्रेणी है। कारागारमें पड़ी स्खो कवरको कडाती है। राज्य में वह स्थान उत्कष्ट समझा जाता है। यहां कवरना, कोरना देखो। रूयो, धान पोर गेइंको उपज पच्छो है। जङ्गलमें कवरपुच्छो (सं० स्त्री. ) कवर चित्रवर्ण पुच्छ अस्याः, लाख, महुवा और कई तरहका गैई पाते हैं। ६-तत्। १ मयूरो, मोरनी। २ विचित्रपुच्छविशिष्टा, राज्यका प्रधान नगर कवर्धा। अक्षा. २२१ उ. चितकवरी पुच्छवालो (चिड़िया वगैरहः) और देशा० ८.१५ पू. पर बसा है। कार्यास और कवरा, फवरी देखो। लाक्षाका व्यवसाय ही प्रधान है। कबीरपन्थी सम्प- कवरी (सं. स्त्रो.) के शिरः वृणोति आच्छादयति, दायके प्रधान यहां रहते हैं। क-व-अच्-डोप अथवा कुअरन्-डोष ! १ केशविन्यास, कवल (. पु.) केन जलेन वनत चनति, क-वल- जुल्फ। इसका संस्कृत पर्याय-केशवेश, कवर और अच् । १ ग्रास, कौर। केशगर्भक है। २ वरा, बबई। ३ बनतुलसी। "न्यजन् क बलाबागा गावो वनमान् न पाययन् ।" (रामायण २४१४६) ४ कपूरक वृक्ष, ववूलका पेड़। ५ रत करवीर, लान २ गण्डप ग्रहण, कुल्ली। कवचका वही मात्रा कनेर। मनःशिला। ७ हिङ्गपनी, होगको पत्ती पातो, जो सुखने मुख में चन्न जाती है। गणूप देखो। कवरीक (स.पु.) सुगन्ध पक्ष विशेष, एक पेड़। इचिलिचिमत्स्य, एक मन्दी। इसकी पत्ती खशबूदार होती है। कवरीकना (म. स्त्री०) मन:शिला। कवल (हिं. पु.) १ को, किनारा ।२ पक्षिविशेष, कवरीकूटक (स'• पु.) कवरी, बबई । एक चिड़िया। ३ अख विशेष, किसी किस्म का घोड़ा। कवरोभर, कवरीमार देखो। ४ प्रतिज्ञा, कौशा कवरीभार (स' पु०) कवर्याः भार पाधिक्यम्, कवलग्रह (सं० पु०) कर्ष परिमाण, कोई एक तोले की तौल। ६-तत्। १ स्थूल कवरो, बड़ो जुल्फ। २ कवरीका २ कवलका ग्रहण, कुल्ली लेने का काम । भारत्व, गुल्फका बोझ। यह चार प्रकारका होता है-ही,प्रसादौ,शोधी घोर रोपण। वातमें स्निग्धोण ट्रयसे स्नेहो, पित्तम खादु, कवरीभृत् (स.नि.) कवरौं विभति, कारी-भृ. शीत व्यसे प्रसादी, कफ, कटु पम्न लवण-रुच-उण क्विप। कवरोधारी, जुल्फोवाना । ट्रयसे शोध और व्रणमें कपाय-तिल-मधुर कटुःउष्ण कवर्ग (सं० पु०) कारादि पञ्च वर्गसमूह, कसे द्रव्यसे रोपण ग्रहया किया जाता | (मनुत) कवल्ल- ङ तक पांच अक्षर। क, ख, ग, घ और उपांची ग्रह लेनेसे भोजन अच्छा लगता, कफ घटता और अक्षरों का नाम कवर्ग है। यह कण्ठ स्थानसे उच्चारित बषा, तोष, वरस्य तथा दन्त चालका दोष मिटता होता है। है। (वैद्यकनिघण्ट) कवर्गोंय (स.नि.) कवर्गात् भवः, कवर्ग-छ। कवलप्रस्थ (संपु०) कवन्नस्य प्रस्था, ६-तत् । कवर्गसे उत्पन्न, जो क, ख, ग, घ और 3 अक्षरसे १ कवलयोग्य परिमाण विशेष, कुल्लीके लायक एक निकला ही। नाप। कवर्धा-मध्यप्रदेश के विलासपुर निलेका एक क्षुद्र कवलिका (स. स्त्री० ) व पबन्धनाथ उदुम्बरादिवल्कान, राज्य। यह पक्षा० २१. ५१ से २२. २९ उ. और जलम बांधने के लिये गूलर वगैरहको छान्न । देशा० ८१२से ८ ४० पू० तक प्रवखित है। कवलित (सं० वि०) कवलं करोति, कवल-णिच