कागज ३१५ छालसे बनता है; यह कागज चीनमें धावको लिंट (Lint) वा पट्टीके काम, पाता है, फटे लत्तेकी जगह भी यह कागज काममें चाता । कियोसिमें पियाउ-सिन् नामका एक तरहका कागज होता है। इस कागजमें पुड़िया बांधी जाती है। छोयासिन नामक कागजमें सिर्फ दवाईयों को पुड़िया बांधी जाती है। कियांसि प्रदेशमें होयांपियान् नामक कागजसे हो-सि कागजकी भांति शवदाह किया जाता है। ता-से और चं-से नामके कागज हिसावको वही खातोंक लिए बनता है। म-पियन और नियेनसि नामक सुन्दर और पतले कागज, लिखन मुद्रणादि करने के लिए तथा चित्रादि बैठाने के लिए और कोइलियनसि नामके पीले रंगके पतले कागज औषधालयोंम चया- पौषधियांको पुड़िया बांधनेक काममे पाता था। ल्म-सियेन नामक चिकने कागज पर पनादि लिखे नाते थे। इनके सिवा और भी एक प्रकारका रंगीचा कागज बहुत सस्ते दाममि बिकता है, इसके कुछ कागजों पर ७ और कुछ पर ८ लाल रंगको रेखाएं (लम्बाईमें ) रहती हैं ये सब कागज ही भित्र भिन्न उपदानोंसे बनता है। फो-कियेन प्रदेशमें खूब कञ्चे बांस से, चि-कियां प्रदेश में धानके पूलासे ; और किया नान प्रदेगर्म फटो- पुरानी रेशमसे कागज बनता है। इनमसे रेशमका कागज कीमता, प्रादरणीय और देखने में खूबसूरत होता है। कागज स्याही न सोक सके, इसके लिए ये लोग उस पर शिरीषका एक पदार्थ लगाते थे। यह देखनमें मोमको ‘पटपटी' की भांतिका होता है। मछलके कांटोंको खब अच्छी तरह धोकर उसके तैलांगको नष्ट करके उन्हें नियमानुसार फिटकिरीके साथ मिला कर रख देते हैं। जिससे दोनों गन्न कर तरल हो जाते हैं, फिर चोमटीने एक कागज उठा कर उसमें डुबा कर धाममें वा पागके सामने रख कर उसे सुखा लेते हैं। ये लोग और भी एक भांतिका कड़ा कागज बनाते हैं, वह आधा इंच मोटा होता है। यह कागलं सहन में भाग लगते ही जल नहीं -सकता। ये लोग "भारत" नामका एक प्रकारका कागज ( India-papsr) बनाते हैं, इस पर अति सूक्ष्म पित्य खोदित होता है और बहुत ही बढ़िया छपाई होती है। चीनमें नौका या घरको छत्तमें छेद हो जाने पर, उसमें तैहाना कागज ढूंस कर उस पर दागराजी कर दी जाती है। पहिले जिन जिन कड़े कागजांका उल्लेख किया है, उनसे ये लोग नौका वा जहाजके पालमें थेगग लगाते हैं; और दूकानदार लोग इससे चीज-वस्तु बांधने के लिये सूतली बना लेते हैं। चीनम नित्य प्रति कागजका इतना खर्च है कि, वह लिखा नहीं जा सकता। इससे सुलभ वाणिज्य चीनमें और दूसरा नहीं है। चीनवासियोंको पूला, भूसी, सई, सन, कञ्चे बांस, रेशम इत्यादि जो कुछ मिलता है, उसौमे से ये लोग कागज बनाया करते है। चीनके कागजों पर मोम बगाया नाता है, सौसे वे देखनेमे खूब चिकने होते है। कागज पर मोम लगानसे पहिले, उनको पत्थरसे घिस लिया नाता है। चीनमें विदेयीय कागज बहुत कम टिकते है। देयीय कागज ऐसे नियमसे बनाया जाता है कि, अकस्मात् नष्ट न होनसे वह जल्दी नट नहीं होता। इस लिये वहां लिखने पढ़नेके काममें, देशीय कागज ही व्यवहार किये जाते हैं। विदेशी साग पर शिरोप लगानसे वह ज्यादा दिन तक नही ठहरता। चौनवासी खूब भासानीके साथ बांससे कागज बनाते हैं। खून कञ्चे वासांको पहिले पानीमे डाल देते हैं। जब बासमि अच्छी तरह पानी भिद जाता है, तब उनको चीर कर चनाके पानी मे डाल देते है। इसमे यह कौचको तरह नरम हो जाता है; फिर कूटा जाता है। कूटने जब वह 'मंड' बन जाता है, तब पानीमे उबाला जाता है। इस प्रकार उवाले जाने पर सांचेमें ढान कर आवश्यकतानुसार पतले और माटे कागज बनाये जाते है। इस कागजसे लिखने और पुड़िया बांधनके सिवा और भी एक काम लिया जाता है। ईटखोलामें ईट बनते समय मिट्टीम इस कागजको कूट कर मिन्चा दिया करते हैं। वासका कागज खुब पतले और साफ होते हैं। चीन वासियोंने ईस्वी सन् ५ में इस कागजको सबसे पहिले
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