पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३४३

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३४४ काणा-काण्डक 1 पा १२१५४1 शिरा नामक किसी राक्षसके साथ इनका बन्धुत्व रहा। काणयविध ( सं० लो. ) काणेयानां विषयो देशः, कुवेरने उसका साथ छोड़नेको कहा। किन्तु यह काणेय-विधल । भौरिक्वायेष, कायांदिया विष मान्नो। बन्धुत्वके अनुरोधसे उसका साथ छोड़ न सके ।। इसीसे कुवेरके अभिशाप वश इन्हें पिशाच योनिमें उत्पन्न हो काणेयो का विषय वा देश । काणमूति नामसे विध्याटवी पर कुछ दिन रहना | काणेर ( सं० पु. ) काणाया: प्रपत्वं पुमान्, काणा. पड़ा। फिर दोघजवा नामक अपने माताकी चेष्टा ढक। चद्राधी वा। पा। ४।५१३१ ॥ पर पुष्पदन्तके मुखसे इन्होंने महादेव कथित वृहत्- १ एकनेत्र स्त्रीका पुत्र, कानोका बड़का ! २ काका कथा सुनी और माल्यवान्के निकट उसे प्रकाश करने शावक, कौवेका बच्चा। (वि.) ३ काय, काना। पर पिशाचयानिसे मिली। (कथासरित-सागर) | काणेली सं० स्त्रो०) १ अविवाहिता कन्या, वेच्याही काणा (स'• स्त्रो०) १ काकोनी, एक जड़ी बूटो। लड़को। २ व्यभिचारिणी, छिनाच । २ काकिनी, धुंधची। ३ पिप्पलो, पीपल । काणेलीमात (सं० पु.) काणेन्लीमाता यम्य, बहुव्री. काणाद (सं० वि०) कणादस्य इदम, कणाद-अण् । १ अविवाहिता स्त्रोके गर्भसे उत्पन्न पुत्र, वेश्याही १ कणादप्रणीत ( शास्त्र )। इसे वैशेषिक वा श्रौलूक्य | औरतका लड़का । २ व्यभिचारिणीका पुन, छिनालका कहते हैं। कणाद देखी। लड़का। २ कणाद-सम्बन्धीय। काण्ट कमटैनिक (सं० वि०) कण्टकमदनेन नि काणादामोदर-बङ्गाल्न प्रान्तके हुगली जिलेको एक त्तम्, कटकमदन-ठक् । नितेऽचयूतादिभ्यः। पा ४६१८ ॥ नदी। पहले यह दामोदा नदीकी एक शाखा थी। कण्टक वा भव मदन द्वारा सम्पादित, जो कांटों या किन्तु आजकल हमने दामोदरको छोड़ दिया है। दुश्मनों के कुचलनेसे हासिल हो। इसीका निम्नांश काणमोना कहनाता है। काण्टकार (सं० वि०) कण्टकारस्य अवयवो विकारा काणानदी-वङ्गालके हुगली जिले को एक नदी। पहले वा, कण्टकार-अन । प्रापिरजतदिममोऽत्र । पा ४१५४ ॥ यह दामोदरका प्रधान भाग थी। किन्तु प्रब क्षुद्रस्रोत | कण्टकारके काष्ठसे निर्मित, जो किसी कंटीले पेड़की. व्यतीत घऔर कुछ भी नहीं। वर्धमानके दक्षिण सन्तोमा-| लकड़ीसे बना हो। वादके पास वर्तमान दामोदरसे यह पृथक् दुई, फिर | काण्ठेविधि (सं० पु०) कण्ठेविवस्य ऋणेः अपत्यं पुमान्,. दक्षिणाभिमुख जा धिया नदोसे मिली और कुन्ती | कण्ठेविद-इन । कण्ठेविच नामक ऋषिके पुत्र । नदीके नामसे नईसगयके निकट भागीरथीम गिरी काण्ड (सं० पु. लो०) कणि-ड दोश्च । १ दण्ड, है। इसी नदीमें दामोदरका नल पा पहंचता है . कड़। २ नाल, डाच । ३ वाण, तौर । ४ भरवृक्ष, रम- काणुक (सं० वि०) कण दंतो उकञ्। १ कान्त, सर। ५ अश्व, घोड़ा । ६ कई एक नातीय वस्तुका कमनीय, चाहने लायक । २ पाक्रान्त, दवाया हुवा । एकव समावेश, ढेर। ७ परिच्छेद, बाब। ८ अवसर, ३ पूर्ण, भरापूरा। मौका। प्रस्ताव । १० जल, .पानी ।। णादिका गुच्छ, घासका गुच्छा। १२ तकप्रकाण्ड, पेड़का तना। काणूक (सं० पु० ) कति शब्दायते, कण-कण मकनिभ्यामकोकणौ। उप ४ । २८ । १३ निर्जनस्थान, सूनी जगह। १४ साधा, चापलूसी। १ वायस, कौवा । २ कुक्कट, मुरगा। ३ इंसभेद । १५ व्यापार, काम । १६ पर्व । १५ सन्त, बोड़ी। ४ करट, एक पक्षी। १८ अोठ वृक्ष, एक पेड़। १एक सन्धिक निकटसे काणेय (सं० पु०) काणायाः अपत्यं पुमान, काणा ढक । अन्च सन्धि पर्यन्त दौर्घ पस्थि, सम्बी रही। १ एक चक्षुहोनाका पुत्र कानी औरतका लड़का । २० विभाग, महकमा। २१ गुप्तस्थान, पोशीदा जगह। २ काकथावक, कौवे का बच्चा । (वि.)२ काण, काना। काण्ड (सं० पु० ) बालुककर्कटी, एक ककड़ी। 1 । का क देखो।