पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३४५

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३४६ काण्डभग्न -काण्डी काण्डं तरकन्ध इव स्थल पृष्ठं यस्य । १ स्थ लपृष्ठधन ( काण्डवीणा (सं. स्त्री०) काह व सना वीणा, मोटी पोठवाली कमान ४ महावीर कर्ण का धनु । मध्यपदलोपी कर्मधा। चंडालोग्णा, वेंतो का बना कांडमग्न (सं० लो०) काण्डे अस्थिखण्डे अग्नम्, ७ तत् । एक बाजा। अस्थिभङ्गविशेष, इडियोका टुटाव। यह बारह ) काण्ड शाखा (सं० स्त्री.) १ महिषवलो, एक.वेक्ष। प्रकारका होता है। २ सोमवल्ली, एक लता। कांडभङ्ग (सं० पु० ) अस्थिभङ्ग, हड्डीको टूट । काण्डसन्धि (सं० पु.) काण्डस्य स्कन्धस्य सन्धिः कांडमध्या (सं० स्त्री०) काण्डवली, एक वैन । मैननस्थानम, ६-तत् । अन्धि, गांठ। काण्डमय (संवि०) ३तका बना हुवा। काण्डस्पृष्ठ (सं० वि०) अष्टं होतं काण्डं येन, काहरहा (सं० स्त्रो०) काण्डात् शिवकन्धात रोहति, निष्ठानत्वात् परनिपातः । शस्त्राजीव, हथियारके काण्ड-रह क-टाप। कटकी, कुटकी। सहारे अपना काम चलानेवाला। काण्डषि (#. पु० ) काण्डस्य वेदविभागस्य ऋषिः | कांडहिता (सं० स्त्रो. ) लोधवक्ष, लोधका पेड़। यहा कांडेषु, एकजातीयक्रियादिसमवायेषु ऋषि कांडहीन (सं० लो०) कांडेन स्कन्धेन होनमा ३ नत् । विचारकः। किमी देवकाण्डके अध्यापक एक मुनि। १ भद्रमुस्ता, एक प्रकारका मोया (पु.)२ लोध्र, पूर्व मौमांसाशास्त्रके प्रणयनसे क्रियाकांडके विचारक लोध। नैमिनि, उत्तर मीमांसारूप वेदान्तशास्त्र के प्रपयनसे कांडा (सं. स्त्री० ) अपलो, मूसर । जानकाण्डके विचारक वेदव्यास और भक्तिशास्त्रके | कांडानुक्रम ( सं० पु. ) कांडस्य अनुक्रमः । तैत्तिरीय प्रणयनसे भक्तिकाण्डके विचारक शांडिल्य ऋषि संहिता कांडसमूहका सूचीपत्र । 'काण्डर्षि' कहाते है। कांडानुक्रमणिका (सं• स्त्रो०) कांडस्य अनुक्रमणिका। कांडलाव (सं.वि.) काण्डं लनाति, काण्ड-ल-अण् । तैत्तिरीय संहिताका सूचीपत्र। वृक्षस्कन्धका छेदनकारक, पेड़को डाल काटनेवाला। कांडानुक्रमणी ( स० स्त्रो० ) कांडस्य मनुक्रमणी कांडवली ( (सं० स्त्री०) कारवेल्लोलता, छोटे करने की अनुक्रमणम्। तैत्तिरीय संहिताका सूचीपत्र। वेल। यह दो प्रकारको होती है-विधारा और चतु. कांडारोपण (सं० को०) एक मात्रय क्रिया। देवमूर्तिके धार। यह कटु, तिक उष्ण, सर, पित्तल और कफ, चारो ओर चार कांड (तोर) काट कर लगाने से यह क्रिया सम्पन्न होती है। गुल्म, लता, दुष्टत्रण, लीडोदर, अग्निमान्य, शून, वात तथा मलस्तम्भ नाशक है। विधाग सर, लघु, कांडाल, कालोब देखो। अग्निदीयन, रुक्ष, उपप, मधुर और वात, कमि, कांडिक (सं० पु. ) कालिका देखो तथा कफनाशन होती है। चतुर्धारा अति उष्ण और कांडिका ( सं० स्त्री० ) कांड: गुच्छः बाहुल्येन भूतोपद्रव, शूल, प्राध्यान, वात, तिमिर, धातरता और अस्यास्ति, कांड-ठन्-टाप् । १ ला नामक धान्य- अपस्मार नाशक है। (यशनिघण्ट) विशेष, एक अनाज । २ पलावु, लोको।३ पन्नाशोच्चता, प्रहरयतया काण्डवान् (सं० पु.) काण्डः शरः अस्त्यस्य, कांड-मतुम मस्य वः। कांडोर, तौरन्दाज। कोडिती (सं० स्त्री.) हरित शडीलता, एक वेत । काण्डबारिणी (सं० स्त्री० ) काहान संग्रामापतितान् । काडी (सं. वि. ) कांड: गुल्मः प्राशस्य न प्रस्तास्य, कांड इनि । प्रशस्त गुरमयुक्त । वाथान् वारयति स्मरणादेव इति शेषः, काय-व-णिच- काण्डो-सिंहलको मध्यवर्ती काण्डी नामक भविष्य पिनि-डीम् । दुर्गा। "मडागनघाटाटोपसंयुगे नरवानिमाम् । मरणवारयते नापान तन सा वाचवारिणे। (देवोपुरावा.) - एक बेन। - काका प्रधान नगर। यह प्रक्षा००१७ ४० और देशा..पू.पर पवखित है।