पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३९१

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३ER कापाली-कापिशी कापासी (स• पु०) कपातं धार्यत्वेन प्रस्ताव, कपाल | कापिस्थक (सं० की.) देशविशेष, एक मुका। (न इनि।१ शिव। २ वासुदेवके एक पुत्र । ३ एक नाति । संहिता ) वर्तमान उत्तर भारतके सहिय नामक नगरकी पूर्ववङ्गमें एक प्रकारके जुलाहे रहते हैं। किसीके चारो पोरका स्थान 'कापित्यक कलाता है। मसमें खोहारके औरस और वेलीको कन्याके गर्भसे सरिय और सामाना देखो। वह सत्यच हुये हैं। फिर कोई मछुवेके पौरस | कापित (सं० पु.) कपिलेन प्रोक्तं शास्त्र वत्ति पीते और ब्राणोके गर्भसे कापालियों का जन्म बताता है। वा, कपिल-पण् । १ सांख्ययात्रवेत्ता। कपिलमधि- वह अपने पूर्वपुरुषोंको युक्तप्रदेशसे पाये कहते हैं। कृत्य ततो अन्यः। २ कपिच मुनिके मतानुसार दूसरा प्रवाद यों है-"पादिशूरके समय कापाली शूद्र लिखित एक उपपुराण । ३ पिङ्गलवर्ण, भूरा रंग! समझ जाते थे। कान्यकुब्ज देशये पांच बाण और ४ कपिचवर्णाके पुत्र । (नि.) ५ कपिच-सम्बन्धीय । कायस्थ पाये। भादिशूरने कापारियोंसे उनके पैर ६.पिङ्गाल, भूरा। धोनको कहा। किन्तु कापासियों ने उनका आदेश कापित्तिक (स.पु.) कपिसिकाया अपत्य पुमान, माना न था। इसीसे गौड़राजने उन्हें समाजको नोच | कपिलिका-प्रण। कपिलवणाके पुत्र। श्रेणीमें गिन खिया।" कापिनेय (सं• पु०) कपिलाया अपत्यं पुमान, उनमें अधिकांश वैष्णव है। विवाद शास्त्रानुसार कपिला टक् । कपिल मुनिके एक शिष्य। कपिसा होता है। प्रथम स्त्री वन्ध्या होने तिीय स्त्री ग्रहण नानी किसी बाधणीका स्तनपान करनेसे वह 'कापि- कर सक्षते हैं। पानीयको मृत्यु होने पर ३० दिन लेय' कहाये है। (मारव, शान्ति, २९८ ५.) पायोचक पीछे ३१ वै दिन बाद किया जाता है। काविस्य (स' नि.) कपिलेन मित्तम्, कपिल एयः । कापिक (सं० पु.) कपिरेव ठक् । अगुल्यादिमाठक। | कपिचनिर्मित, कपिलका बनाया हुवा। .मा... .१ कपि, वानर। (वि०)२ कपिवत् / कापिवन (सं० को०) दो दिनमें होनेवाचा एक पाचरण करनेवाला, जो बन्दरकी तरह पेश पाता या देखा जाता। "पारिस भवरख वापिवना।" (सात्यायन, शरा) कापिकेक्षण (सं० पु०.) कोकियाच सुप, ताल | कापिश (म. ली.) कपिशा माधवी तत्पुष्पात् मखानका पेड़। जातम्, कपिधा-अण्। १ द्राक्षामद्यविधेष, माधवीके कापिझल (सं: पु.) कपिछलस्य अपत्यं पुमान्, फूलोंको भराव। २ मधमाव, कोई मराव । कपिञ्चत-पण्। कपिञ्चलके पुत्र। . कापिधायन (सं.ली.) कापिश्या बातम्, कापियो- कापियादि (सं. पु.) कपिलखान तान्सानि स्फक्। वापिण्याः सयापा ४ारा १ मब, घराब। पत्ति, कपिनल-पद-पण-इन्। चातक तथा तित्तिर २ मधु, शाद। ३ देवता। ४ कापियो जनपदम पचीका मांसभचक, जो पपीहे और तीतरका गोश्त रहनेवाला। (वि.) ५ द्राचानिर्मित, दासका बना हुवा। कापिशाय( • पु.) कापिनसादरपत्वं पुमान, वापियायनी (म.बी.) द्राचा, दाण। कापियसादि-ख। कुर्मादिभ्यो यः । पा ॥२॥ १५१। कापि- कापियो (स.पी.) प्राचीन जनपदवियेष, एक प्रसादिका पुत्र, प्रपोई पौर सोतर गोग्त खान- पुरानी बसती। प्राविनिने पपने सूत्र में उसका उल्लेख वासका बेटा। किया है। (आय) हिउयनसियाङ्कने इस जनपदका बापित्य (सं• की ) पित्य विकार, कपित्य-प्रम। नाम 'किप-पि-विशिषा है। चीन परिखाना समय भी कापियो जनपद अनिय राजाके पपीन अनुदापादेय। पा॥ ५॥१... १ कपित्य द्वारा निर्मित बत, केधको चीन। २ कपित्यफस, कैथा। रासस प्रमय यहां निम्ब, पायपत, मापारिक, पाहीम यन्त्र खाता हो। ...