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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४४७

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1 कामरूप नारायणको सब वात. मालूम हो गयी। फिर रखदेव पश्चिमोत्तरसे दक्षिणपूर्व तक 2• मोक्ष दीर्घ और पूर्वो-- भाग कर पूर्वाप्नलके शवासे मिले और उनका सैन्य ले त्तरसे दक्षिणपश्चिम तक ६ • मौच विस्तृत रहा। उत्तर ज्येष्ठनाताके राज्य भाक्रमणार्थ पापईचे । नारायण भी पश्चिममें ककटा मौमान्त प्रदेश शिवसिंह (उच होरा खराज्य रक्षणार्थ ससैन्य अग्रसर हुये। स्वर्णकोषी नदीके . और जीराक मध्य नीराके पुत्र ) के मन्तानोंको दिया पूर्व पार रघुदेव और पश्चिम पार नारायणको छावनी गया। लक्ष्मीनारायण अपने राज्यको पहलेसे ही पड़ी थी। नारायण स्वयं अखारोड़ी सैन्य ले पागे "विहार" कहते थे। कारण शिव हौरा और जीराके. बढ़े। रघुदेव भोत हो ससैन्य भागे थे। नारायणन साथ विहार करते थे। किन्तु मधदेयके वर्तमान पाक्षेप कर कहा,-"दुःख है कि हम रान्य देनेके विहार (पटना) प्रदेशसे स्वतंत्रता दिखाने के लिये. लिये ही आये थे। किन्तु वह बात न हुयी। इस "कोचविहार नाम रक्खा गया। लिये यह नदी ही पव दोनों राज्य सीमा रहगी।" आईन: प्रकवरीके अनुसार सुमोनारायणन प्रक- श्रावनिक आसामको बुरष्क्षीके मतमें उक्त घटना १५०३ . वरको वचता मानी थी। उनके समय राज्यको शकको हुयी थी। रखदेवके राज्यको सीमा पश्चिम सीमा उत्तरमें सिव्वत, दक्षिप, घोड़ाघाट, पश्चिममें. स्वर्ण कोबी एवं पूर्व दिकराई और नारायणके राज्यको बिहुत और पूर्वमें ब्रह्मपुत्र यौ। भूमिका परिमाण- सोमा पूर्व स्वर्णकोपौ पयिम करतोया थी। रघुदेवने फल दैव्य में प्रायः २०० कोम रहा। उनके 8.... म्बालपाड़े जिलेके जोयार परगर्नमें आधुनिक गौरीपुर । अश्वारोही सैन्य, २ लाख पदाति, ७०० हस्ती नगरसे १० मील दूर गदाधरनदीके तीर नगर स्थापन पौर १००० जहाज थे। फिर पाईन-अकबरीम किया था। लक्ष्मीनारायणके पिताका नाम गुरुगोस्वामी रिणा शुक्लध्वजके जोते समय कामाख्याका मन्दिर फिरसे है। गलगोस्वामी नहीं, उनके कनिष्ठ खाता वाड. बना था। मन्दिर समाप्त होने में १० वर्ष संगे। गोस्वामी राजा थे। उन्होंने विवाह न किया था। किसी पश्चिमी हिन्दुस्थानीने उसे बनाया था। मन्दिरक इससे उनके मन्तान कोई न था। बालगोस्वामी पूर्व द्वारके सम्मुख उक्त केन्टुकलाई पुरोहितके छिन्द्र अति सुविन राजा थे। उन्होंने अपने भातुष्प व मुण्डको प्रतिमूर्ति वर्तमान है। शुक्लध्वजके नीवित पाटकुमारको राज्याधिकारी ठहराया । शक्तगोस्वामौन कालमें नरनारायण एक बार शनिग्रस्त हुये थे। न्योति दूसरा विवाह किया था। उमौसे लक्ष्मीनारायणका षियोंने गणना कर उक्त कथा दी। फिर नरनारा- जन्म हुवा। पाटकुमार विट्रोही बने थे। उमौ यणने शुलध्वजको राज्यका प्रतिनिधि बना तीर्थयात्रा समय मानसिंह बङ्गालेके नवाव रहै । लक्ष्मीनारायणन की थी। प्रायः एक वर्ष पीछे वह लौटे। उत्त भ्रमणके मानसिंहसे सम्राटी निकट परिचित होनेको प्रार्थना समय प्रासामराज्यके खेतइस्ती पर उनको लोम को । किन्तु मानसिंहने वह वात न सुनी। मानमिंटने बढ़ा। शुक्लध्वनकी यह खबर लग गयी। वह भ्राताको उनकी एक कन्याका पाणिग्रहण किया था। दृप्तिके लिये आसामरानको युद्दमें परास्त कर हाथी गोस्वामीने १५७८ ई० को एक बार बङ्गालक नवावको ले आये थे। अनेकांके कथनानुसार उक्त घटनासे हो अधीनता मान दरवारमें ५४ हाधियोंके माय विसर उनका नाम "शलध्वन" हुवा। उपटोकन दिया। लक्ष्मीनारायण १५८६ ई.में भावनिक बुरजीके . मतमें १५०६ शकको नर। 'नारायण मरे थे। फिर उनके पुत्र लक्ष्मीनारायणको : ताजक-जहांगीरीके स्वर्गकोपीसे महानन्दा. और सरकार १६१८ई को गुजरातको राजसमाम ५०. अगरफी घोडाघाट तथा भोटानके दक्षिणस्थ पार्वत्व प्रदेश तक समस्त भूभाग उनके राज्यके अन्तर्भूत था। उक्त राज्य . वादशाइनामेको देखते जहांगोरखे समयं परीचित् बान- राजत्व करते थे। अनुसार सक्ष्मीनारायणने राज्य मिला ! मज़र मेनी थीं।