पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४५६

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कामरुप ४५ वह गङ्गा नदीको निज देशान्तर्गत करनेके अभि इसके निकट शिवसागरकी भांति वृहत् "जयसागर" पायसे वजन्देश पर चढ़नेको ससैन्य युझ्यावापूर्वक | नाम्री पुष्करिणी उनीको प्रतिष्ठित है। फिर तीरस्थ गौहाटीमें उपस्थित हुये। किन्तु दुर्भाग्यवश वहां शिवमन्दिर भी उन्होंने स्थापित किये थे। उनके उनको रोग लग गया। फिर कालके कराल कवल में पोछे उनके माता चुन्येप्रोफा वा वक्ष्मीनाथ सिंह पड़नेसे उनका प्रमिलाप सिह न हुवा। उनके पुत्र अभिषिक्त हुये। उन्होंने भी कतिपय देवमन्दिर चुतनफा या शिषनाथ सिंहको सिंहासनका अधिकार स्थापित किये थे। उनमें कामपके अन्तर्गत मिला था। आसामके समस्त देवोत्तर, ब्रह्मोत्तर वा मणियवंत पर अवकान्तका देवालय प्रधान है। अन्य प्रकार निष्कर भूमिमें पधिकांश उन्हों का प्रदत्त उनके मरने पर उनके जेष्ठपुत्र चुहितपांगफा या है। उनको पट्टमहिषो फलेवरी वा प्रथमेश्वरीके गौरीनाथ सिंह सिंहासनाधिष्ठित हुये। उनके आदेशानुसार गौरीसागर नामक बहाद पुष्करिणी बनौ रामलकालको प्रधाम घटना डिवरूगड़ के निकट स्थ. और उसके पार एक शिवमन्दिरको स्थापना हुयी। हिन्दूधर्ममें दोधित मटक, मोयामरीया या मरान उनके मरने पर महाराजने उनको भगिनी द्रौपदी वा नामक प्रादिम निवासी लोगोंको विद्रोहिता है। अम्बिकाको विवाह कर पट्टमहिषी बनाया था। व दो बार विरोधी हुये । प्रथम बार तो राजाने उन्हें उन्होंने अपनी नाष्ठाके आदेशसे शिवसागर जिलेकी दमन किया, किन्तु दूसरी बार दवा न सकनेसे भागना. दिखु नदीके उत्तर पार किश्चिदधिक चार सौ बौधे पड़ा। उन्होंने कलकत्ते दूत भेज अंगरेज गवरन- भूमिमें शिवसागर नाम्नी एक पुष्करिणी खोदा उसके मेण्टसे साहाय्य मांगा था। उससे सार्ड कारनं- तौर शिव, दुर्गा तथा विष्णुके तीन बहत् मन्दिरीको वालिसके पादेशानुसार कप्तान बेल्स और लेटिनेण्ट. प्रतिष्ठा को और देवसेवाके लिये बहुत सी भूमि दी। भग्रेगर कितने ही देशीय सैन्यके साथ पासाम पहुंचे। उक्त तीनी मन्दिर और पुष्करिणी पाज भी विद्यमान उन्होंने विद्रोह दवा देशमें शान्तिको स्थापना किया है। उसी पुष्करिणीके नामानुसार उक्त देशका था। रानाके मागने पर विद्रोहियोंने पसीव मिष्ठर माम शिवसागर पड़ा है। फिर उसीके सौर वर्तमान भाषसे असंख्य निराश्रय प्रजाको मार डाला। उसोसे समुदाय राजकार्याय और अंगीन राजकर्मचारियोंके , उन्हें मराम कहते हैं। विद्रोह-शान्तिके पोछ गोरी- निवासरह स्थापित हैं। राजा शिवनाथ सिंहक नायने रंगपुर मगर छोड़ शिवसागरके अन्तर्गतं जाड़- मरने पर उनके माता प्रमत्त सिंह वा चुचेनफाने हाट नामक स्थानमें नगर स्थापन किया। उसी स्थान सिंहासन अधिकार किया। शिवसागर जिलेके पर वह कालग्रासमें पतित हुये। उनके पीछे काम- अन्तर्गत दिखु नदीके दक्षिण पार रंगधर (रङ्गशाला) रूपीय वंशके कमलेश्वर सिंहने राज्य पाया था। यहां नामो हितल पटासिका उन्हींको बनायी है। उन्होंने यह बता देना भी उचित है कि हिन्दू धर्म में दोधित इस्ती, व्याघ्र, महिष प्रभृति पशुवोका युद्ध देखने के लिये होनेक समयसे अहोम राजा परापर पहोमांकी से बनाया था। उनके पीछे उनके चाता चुराम्फा भांति पपने सन्तानका हिन्दू नाम रखते थे। फिर या राजेश्वर सिंह सिंहासनाधिरूढ़ हुये। उन्होंने उनमें राना होनेवाले अभिषेकके समय अहोमः तदानीन्तन राजप्रासादक परिवर्तमें - शिवसागरकी शास्त्रानुयायी कोई कार्य कर रहीम नाम ग्रहण करते दिखु नदीके उत्तर पार "गड़गांव" नामक बहत् और थे। किन्तु उक्त कार्य अतीव व्ययसाध्य था। इसी कारण वितल भवन बनाया था। कुछ समय वहां रहनेके कमलेखर उसको कर न सके। उनके पहोम. बाद वह प्रसन्तुष्ट हुये। फिर उस नदौके पर नाम न पानेका यही कारण है। उनके पीछे न तो पार रंगधरके पास उन्होंने पति हात् और सप्ताल किसी राजान उक्त कार्य किया और न उसको पहोम. राजप्रासाद बनवाया। उसका नाम रंगपुर रख गया। नाम ही मिला। उनोंने पश्चिमाचमसे बात Vol. IV. 115