पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४५९

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कामरूप - 1 एक वर्ष विश्वास और भक्ति करते थे। रुद्रसिंहके पुत्र शिव ली। राजगुरु होनेरी रमानन्द ने बहुत इति पायो सिंहने भी सपरिवार उनसे मन्त्र लिया। शिवसिंह थी। फिर वह पहुमरिया गोसाई नामसे पाख्यात 'स्वर्गदेव सपरिवार भट्टाचार्य महाशयके उपास्य देवी- हुये। उनको वैसी पदमर्यादासे अन्यान्य महन्त वहुत मन्त्रमें दीक्षित हुये। किसी समय शिवसिंहको चिढ़े थे । विशेषतः मोयामारीके महन्त कटु वचन छत्रभन दोष नगा था। ज्योतिषी पण्डितों और प्रयोग करनेसे गनाके विरागभाजन हो गये। उसी मन्त्रियों ने परामर्श किया। फिर वह शिवसि'को वर्ष पाश्विन मासमें वर्गदेव नौका पर भमणार्थ बाहर प्रथमा पत्नी रानी फूलेखरीको सिंहासन पर बैठा कर निकले थे। साथ ही स्वतन्त्र नौकामें बड़बडुवा राजकार्य चलाने लगे। उसी प्रकार शिवसिंहके मोयामारीके महन्तने साचात् कर क्षमा दीर्घ राजत्व में उनको चार महिषी-फूलेश्वरी, प्रमत्तेखरी, मांगी थी। किन्तु बड़बड़वाने महन्तको यथेष्ट द्रौपदी, वा अम्बिका और अनादेवी या सखरीने विद्रूप किया। महन्तने उससे अपना प्रतिपय अप- बारी बारी सिंहासनाधिरोहण किया। फलेखरी मान समझा था। उनके मनमें पूर्व अपमान भी देवीके प्रति विशेष भक्तिमती थौं। । दूना भड़क उठा। उन्होंने बुला कर भीतर ही भीतर दुर्गोत्सवके समय उन्होंने मोयामरियाकै महन्त थियोंको दलबद्ध किया। फिर महन्तने रुद्रसिंह और अन्यान्य स्थानके कई महन्त मिमग्वस देकर स्वगंदेवके किसी ताड़ित राजवंशीयको दलपति होने के बुलाये थे। फिर उन्होंने भगवतीका प्रसादित सिन्दूर, लिये बुलाया था। नाहरखोरा और राघमरान दो रक्तचन्दन और वलिका रक्तादि छिड़क उन्हें लाछित व्यक्ति सेनापति बने । विद्रोहमें योग देनेवाले कुरा,. किया। दूसरों की अपेक्षा मोयामारीवाले महन्तके कुल्हाड़ा, कमान, कांता, बरछा प्रमृति प्रस्त्रोंसे समित हृदय पर उच्छा व्यवहारसे दारुण भाघात लगा था। प्रायः नौ हजार पादमी अग्रहायणके प्रथम ही उन्होंने सब शिष्यों को बुलाकर कहा,-"इसका प्रति रङ्गापुरकी पोर चल खड़े हुये। प्रवादानुसार महन्तने शोध लेना आवश्यक है। उसके लिये प्राणपणसे अन्यायसे लक्ष्मोसिंहको राजा बनाने के लिये उस युद्ध. चेष्टा करनी पड़ेगी। कालक्रममे वह भी सिद्ध हो यात्रा की थी। १७५१९०को राजेश्वर राजा बने। उनकी मोयामरियाके लोगोंका उक्त उद्योग देख भूपाई अन्तिम दशामें मोयामारीके महन्तने शिष्यों को एकत्र बड़ गोसाई, बूढ़े गोसाई कीर्तिचन्द बड़बडुवा प्रभृति' कर शिवसिंह रानाके पनीवत अपमानका प्रतिशोध मन्त्रियों ने भी परामर्श कर एक दल संन्य भेजाया। लेने के लिये सबसे साहाय्य मांगा। शिष्य भी गुरुके ' युद्दमें राजसैन्य हार गया। मोयामरियाके सैन्यदलने अपमानका बदला सेनेको प्रतिघ्राबद्ध हुये। नगर पर अधिकार कर राजा, सेनापति और बड़बडुवा. उसके पीछे लक्ष्मीसिंहको राज्य मिला। राजा रुद्र प्रभृति मन्त्रियों को बांध लिया। राजा जयसागरके मिहके पन्तिम समयमें उन्होंने जन्म लिया था। निकट बन्दी रहे और गोसाई, बूढ़े गोसाई प्रभृति प्रधान पाकसिगत सौसादृश्य न रहनेसे गना रुद्रसिइ उन्हें प्रधान लोग मारे गये। फिर मोयामरियावालोंने अपना पुत्र न मानते थे। उसीसे राज्य अन्यान्य कोर्तिचन्द्रको सूली दे उनके पुत्रों को बध किया। खोरा- प्रधान लोगों में भी उनका वैसा पादर न रहा। फिर मरानके पुत्र रमाकान्स गनाये। उस घटना अग्र- राजाके कुलगुरु पर्वतिया गोसाई भी उन्हें दीक्षा हायणकी थी। किन्तु चैव मासमें लीकान्तकै पक्षसे देने पर असम्मत हुये। समीसिहने खीय विद्यागुरु कुंये, गयां, घनशाम प्रभृति कई लोगोंने सामिश कर रमानन्द भट्टाचार्य नामक किसी प्रध्यापकको दीक्षागुरु रमाकान्सका दासत्व स्वीकार किया। उनके कौयससे बना लिया। बाल्यकाल में उन्होंसे राजाने शिवको पूजा रमाकान्त. मोयामरीयाके सेनापति प्रमसिने अपने प्राए खोखी थी। फिर उन्होंने दीक्षा भो शिवमन्त्रको ही गंवाये। उसके पीछे सच्चीसिह रावा बने। सनी गया।