पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४६१

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४६२ कामरूप वह हिन्दुस्थानी अंगरेजोंको प्रजा थे। सुतरां उनको । आक्रमण करनेको पैर बढ़ाया। गौरीनाथ भी साथ दबाना लाट साहबने अपना कर्तव्य समझा। उसीसे थे। जिस दिन वह नगरके निकट पहुंचे, उसी दिन १७८२ ई०को कप्ताम वेल्स साहब ससैना भेजे गये। नगरको अवस्था ज्ञात हो दूसरे दिन प्रातःकाच १२ उन्होंने वहां पहुंचते ही हिन्दुस्थानियोंको दबाना सिपाही, १ जमादार, १ नायक और १ इवलदार कुल चाहा था। १५ श्रादमी नगरके निकट भेजे गये। राजा गौरीनाथ उधर भरतसिंह राजा हो निठुर भावसे शासन वह व्यापार देख विषम हुये। उन्होंने यह सोच जयकी करते थे। सिपाहियों को आदेश रहा,-"तुम जिस पाशा छोड़ी थी कि ५००० मोयामरीयावालोंके साथ प्रकार हो, अहोममजाको लटो मारो।" रम साहबके उन मुष्टिमय सिपाहियों का युद्ध होगा। मोया- वरकन्दाज और मणिपुरके सिपाही विनष्ट होनेसे मरीयावाले चारो ओर घेर कर खड़े हो गये। उन्होंने उन्होंने अपना रान्य निष्कण्टक समझ लिया। उन्होंने सोचा कि उन्हौं कई सिपाहियोंके मारनेसे जय होगा। गौहाटीके निकटस्थ कई स्थान पधिकार किये थे। पन्तको सिपाही वीरभावसे गोली छोड़ने लगे। यथेष्ट राजा गौरीनाथ उक्त संवाद पा कुछ सैन्य ले उसी ओर मोयामरीयाके लोग मरे थे। उन्हों कई सिपाहियों ने चल पड़े। फिर कप्तान वेल्स साहब भी जा पहुंचे। शव पक्ष प्रायः निःशेष कर डाला। फिर कुछ राजाके मुखसे देशको अवस्था सुन १७८२९ की २५वौं अंगरेज सिपाहियोंने जा नगर अधिकार किया। नवम्बरको उन्होंने गौहाटी प्रदेश उद्धार किया। उसके दूसरे दिन बूढ़ा गोसाई गौरीनाथको नगरमें ले मायामरीया दल छिन्न भिन्न हो गया। गौरीनाथ गये १७८५ ई०के चैत्र मास कमान वेल्स नगरमें गौहाटीमें ही रहे। कप्तान वेल्स ६ठौं दिसम्बरको घुसे थे। लौहित्यके उत्तर कूल गये थे। मायामरीयावालोंका गौरीनाथ फिर जा कर सिंहासन पर बैठे। कप्तान पराजय सुन कृष्णनारायण का भी सैन्य भागा। कृष्ण साहबने बूढ़ा गोसाई प्रभृति प्रधान कर्मचारियाँको नारायणने कहा, "हम गौरीनाथके विपक्ष नहीं बहुत उपदेश दिया और गवरनर जनरलका अभिप्राय थे। मायामरीया-विद्रोह निवारण करना हमारा भी समझा कर कहा,-"देशमें मुशासन रखने के लिये कुछ उद्देश्य था। किन्तु गौरीनाथ यह बात समझ न सके। बटिश सैन्य यहां रहेगा और कामरूपको पामदनीसे इसीसे उन्होंने हमें भी विद्रोही मान रखा है।" फिर उस सैन्यदलका खर्च चलेगा।' कप्तान वेल्सने गौरीनाथ और कृष्णनारायणके मध्य उधर बर्ड कारनवालिस स्वदेश गये। १७८४ सन्धि करा दी। सन्धिमें शर्त थी कपणनारायणको दरङ्ग, ई०को सर नान शोर गवरनर हो कर पाये थे। छुटिया तथा · चायःदोषावको प्रादमी देनेके बदले उन्होंने कप्तानको लोटने का आदेश किया। ५५००१) और भोट राज्यमें व्यवसाय करनेके लिये फिर १८१७९०को पुरन्दर सिंहने चन्द्रकान्तसिंह महसूलके हिसावमें ३०००० रु० देना पड़ेंगे। कप्तान स्वर्गदेवको बन्दी बना कर राज्य लिया था। उसी वेल्सने गौहाटीमें रह देखा कि गौरीनाथ की बुद्धि विवे. समय बड़फकनके लोगोंने ब्रह्मदेशके अधोखर घालुन चना बड़ी न थी। फिर निष्कण्टक होते भी उनके मिति या किवया मिलिमे जा कर उक्त विषयको हारा राज्य स्थापित होने में बड़ा सन्देश रहा। उन्होंने सूचना को उन्होंने साहाय्यार्थ ३०.०० सैन्य भेजा निम्नलिखित मर्मका पत्र कलकत्ता मैना था,-"हम था। बधशेनापतिके राज्य में प्रवेश करने पर पुरन्दर 'वर काम करके पाना चाहते हैं, जिसमें राज्यका सुप. सिंहने सैन्य भेज कर बाधा दी। युद्दमें पुरन्दर बन्ध रहे। हमें बोध होता कि राजाके अन्याय्य पाच. सिंहका सैन्य परास्त हुवा। पुरन्दर डर कर गौहाटी

रणसे ही जयनारायण प्रभृति विद्रोही हुये थे।" भाग गये। ब्रह्मसेनापतिने चन्द्रकान्तको राजा बना

१०८३१ मार्च मास कप्तान वेल्सने प्रधान नगर पुरन्दरको पकड़नेके लिये सैन्य भेजा था। पुरन्दरको