पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४७६

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पा ११॥२॥ कामुकौ-कामोद 800 कामुको (स.बी.) कामुक डोष्। नामपदकृष्णगोले ति।। पस, त्रिकट १ पल, पिप्पलीमूल १ पल, विष १ पन्न, वृषस्यन्ती, हिमान। कामका देखो। नागकेसर १कर्ष, एरण्ड १ पल और सबके बराबर कामुहा (स. स्त्री०) मुहपर्णी, मोट । गुड़ डाल धुस्त ररस या घोसे एक प्रहर घाँटने पर कामप्सु, (वि०) अभिलाषके पूरणार्थं उद्योग यह रस तैयार होता है। गोलो वेरको गुठलीके करनेवाला, जी खाहिश पूरी करने में लगा हो। बराबर बनती है। रातको इसे सेवन करनेसे पाण्डु कामेश्वर (स'• पु.) कामानां ईखरः, ६-सत् । और शोथरोग पारोग्य होता है। (रसैन्द्रसारसया) १ परमेश्वर। २ कुवेर । कामेश्वरी (सं० स्त्री.) कामानां भोग्यविषया कामेश्वरमोदक (सं. पु.) औषधविशेष, एक दवा। प्रदायित्वेन ईश्वरी, ६-तत्। १ कोई भैरवी। पामलकी, सैन्धव, कुष्ठ, कट्फल, पिप्पली, शुण्ठी, २ कामाख्याको पांच मूर्तिमें एक मूर्ति । यमानी, बनयमानी, यष्टिमधु, जोरक, धान्य क, कृष्ण "कामाख्या विपुरा चैव सथा कामभरी पिया। जोरक, पठी, कर्कटशृङ्गी, वचा, नागैखर, तालीश, सारदाय महोबाहा कामरूपगुणयुवा" (कालिकापुराया.) एला, तालीशपत्र, गुड़त्वक, मरिच, हरीतकी तथा कालिकापुराणमें कामेश्वरी मूर्तिको वर्णना इस विभौतकका पूर्ण समभाग पौर सवीन भूनी हुयी प्रकार है, कृष्णवर्ण, मुस्निग्ध कृष्णकेश, षणमुख, भागका चूर्ण सबके बराबर डालते हैं। फिर उक्त हादश इस्त, अष्टादश चक्षु, प्रत्येक मस्तकमें पध- सर्वच के समान चीनी छोड़ पाकयोग्य जलमें चाशनी चन्द्र, वक्षोदेशपर मणिमुक्तादि-निर्मित माला और बनाना चाहिये। पाक शेष होने पर किञ्चित् धृत दक्षिण-शस्त समूहमें पुस्तक, सिद्धसूत्र, पञ्चवाण, खडा एवं मधु और सुगन्धके लिये भूना तिन तथा कपूर शक्ति नथा शूल है। वाम-हस्तसमूहमें पक्षमाला, पड़ता । मोदक आध तोलेका बांधते हैं। इस महापन, कोदण्ड, अभय, चर्म और पिनाक है। औषध सेवनसे संग्रहणी रोग शीघ्र पारोग्य होता है। ईशान, पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर और मध्य छहो (रसरबाकर) पोर षण्मुख अवस्थित हैं। सकल मुख यथाक्रम शक्त, बाजीकरण ( ताकत बढ़ाने ) का कामखर मोदक रक्त, पोत, हरित, कृष्ण और विचित्र वर्णविशिष्ट हैं। . इस प्रकार बनता है, कुष्ठ, गुडू चौ, मेथी, मोचरस, यह मुख पृथक पृथक देवीके मुख कहे गये हैं। शक्ल विदारी, सुषली, गोक्षुरवीज, इक्षुर, शतावरी, कशेरुक, माहेश्वरीका, रख कामाख्याका, पोत त्रिपुराका; हरित यमानी, तासाहुर, धान्यक, यष्ठिमधु, नागबासा, तिला, शारदाका, कृष्ण कामेश्वरोका और विचित्र मुख चण्डी मधुरिका, जातीफल, सैन्धव, भार्गी, कर्कटशृङ्गी, देवीका है। प्रति मस्तक पर केश संयत है। परिधान शुण्ठी, मरिच, पिप्पली, जौरक, कृष्णजीरक, चित्रक, विचित्रवस्त्र अथवा व्याघ्रचर्म है। सिंह पर खेत शव, गुड़त्वक, तालीयपन, एमा, नागकेशर, पुनर्नवा, | खेतशव पर रतपन और रक्तपद्म पर देवो बैठो हैं। गपिप्पली, द्राक्षा, कटूफल, शुण्ठी, शाल्मली, त्रिफला धर्म, अर्थ और कामसिक्षिके लिये इसी प्रकार काम- और कपिभवका चूर्ण समभाग, सवैचूर्णका चतुर्थीग खरी मूर्तिका ध्यान करना चाहिये। .अन्न, और अमसे पाधा गन्धक पड़ता है। फिर इस (कालिकापुराण ६५०) चर्णसमष्टिसे पाधी भांग और सबसे दूनी चीनी डाल कामेष्ट (सं• पु०) रानाम्रवृक्ष, एक बड़े भामका पेड़ । यह मोदक बनाया जाता है। मोदकको मात्रा १ तोला कामोद (स.पु.) एक रागिणी। वैलावती पौर है। इसके सेवनसे बलवीर्य बढ़ता है। (भेषनारवावलो) गौड़के संयोगसे यह बनता है। ध नि स ऋ ग म प कामेश्वररस (स. पु.) औषधविशेष, एक दवा । स्वरग्राम है। धैवत इसका वादी और पञ्चम संघादी पारा १ पक्ष, गन्धक १ पल, हरीतकी तथा चित्रक है। करण और हास्य रसके समय यह गाया जाता है। १पक्ष, सुस्तक डेढ़ पस, एला डेढ़ पर, पत्रक डेढ़ रात्रिका प्रथम पर्धप्रहर इसके गानका समय है। यह Vol. IV. 120