बालनाग़----कालनेमिः को गहन्द्रश्यादि कलकत्ते भेजने में जितना व्ययं पडता | कासनिरूपण (सं० पु०) कायस्य निरूपणं निर्धारणमा इस्तत्। समयका निश्चयकरण, वल्लका ठहराव : नदोको गत उमसे अल्प नगमा है। इसीसे नावपर लदकर हो वहांसे ट्रव्यादि कलकत्ते पाते हैं। कालनिर्णय (सं० पु०) कालस्य निर्णयः निरूपणम् उसकी ममधि पाज भी डाम न होने का यही कारण ६-तत्। १ समयका निर्धारण, वक्तका ठहरावः। है। दीनाजपुर और रङ्गापुरसे यहां चावल जाता है। २ माघधाचार्यमणोत कालमाधवीय नामक एक ग्रन्थ । १८३१ ई० को वर्धमानके महाराज तेजञ्चन्द्र बहादुग्ने काननिर्यास (सं० पु०) कालः कृष्णवर्णी निर्यात कातनाम वर्धमान पर्यन्त एक अच्छी सड़क बनवा दी कर्मधा०। गुमा लु, गूगुन। थी। उममें ४ कोमके अन्तर पर एक एक तानाव काननिर्वाह (स.पु.) कानस्य निर्वाह प्रतिवाहनं। और डाकबंगला बना है। वह महारानके गङ्गामानको समयका प्रतिवाहन, वक्त का निवाह। सुविधा लिये तैयार किया गया था । मुसनमानोंके काननिगा (स. स्त्रो०) १ दीपमालिकाको रात्रि, शासनकाम्न व एक टुगे रहा। उसका भग्नावशेष दीवान्त्रीकी रान। २भयङ्कर रात्रि, अंधेरी रात । आज भी भागोरधोके तौर टेखपड़ता है। दो पुरानी काननेव (स. वि० ) कालं मृत्युज्ञापकं कृष्णवर्ण टूटी मसजिद भी वहां गङ्गाके तौर वर्धमानराजके वा नेत्रं यस्य बहुत्री० । १ नृत्युलक्षणयुक्त नेवविशिष्ट, भवनमें १०८ शिवमन्दिर, अन्यान्य टेवदेवीके मन्दिर, अांखोंमें मौतको अनामत रखनेवाला। २ वष्यवर्ण अतिविशाला और समाधिस्थान है। समाधिस्थानमें चक्षुविशिष्ट, काली पांखवाना। पूर्वतन गजाओंका अस्थिपञ्जर रक्षित है। राजभवन काननमि (स.पु.) कालस्य मृत्योर्ने मिरिव, उपमि। अति मनोरम स्थान है। वहांका बाजार बहुत बड़ा १गक्षस विशेष, बाधिपति रावणकामातुन्न । शनि- है। साम्राधिक घटकनिर्मित यह देख पड़ते हैं। शेलके प्राघातसे लक्ष्मण पाहत हुये थे। हनूमान् उनके कालनाग (सं. पु०) कालपापको नागः, मध्य- लिये भौषध लाने गन्धमादन गये; उधर काननमि • पदनो०।१ नियत मृत्य कर मर्पविशेष, रावणसे अर्धराज्य मिचनेका प्रलोभन पा छद्मवेशसे सांपाइसके काटनेसे निचय मत्व होता है। नाग- जातिकी एक येणे । हनमान्को विनष्ट करने पहुंचा था । वहां कुम्भौरा कान्तनागिमी ( सं० स्त्रो० ) नियत मृत्य कारिणी द्वारा विनाग साधनेके उद्देशसे उसने हनुमानको सर्पिणी, काली नागिन । कौशन्न क्रमसे किमी सरोवरमें नहाने भेज दिया ।जनमें प्रवेश करते ही कुम्भीराने हनुमान पर पाक्रमण किया; -कालनाथ (सं० पु०) कालस्य कान्तभरवस्य नाघ:, ६ तत् । १ महादेव। किन्तु उन्होंने उसे मार डाला । हनुमानके हाथ मारो "कालनाथाय कल्पाय पयायोपचयाय " (भारत, थान्ति २८८०) जाने पर वह अभिशापसे छूट गयो। उसी समय उसने २ कातोय यजुर्वेदमन्नरों नामक ग्रन्यकार ।३ काल- कृतज्ञ वृदयंसे इनूमान्को कालनेमिको कपटताको भैरव। वाल वसायी घो। फिर उन्होंने अत्यन्त का हो कालनाम (सं० पु०) काम्नः कृष्णः नाभिरस्य, काल- कालनेमिको मार डाला। (पिवायो रामायए) नामि संज्ञायां च । १ हिरखाच असुरका कोई पुत्र। २ दानवविशेष, कोई राक्षस। इस दानवका (हरियम श्य) २ हिरण्यकशिपुका एक लड़का रूयादि इस प्रकार वर्णित है,--यह दानव हिरण्य- कालनिधि (सं० पु०) शिव, महादेव । कगिपुका पुत्र था। शरीर मन्दारपर्वतको भांति कालनियोग (सं.पु.) कालेन तो नियोगः, कालस्य वृहत् क्षेतवर्ण रहा। शत हस्त और शत मुख थे। नियोगो वा।.१ देवकी पात्रा-२ काचक्रत नियम, केश धुमश्ण रहे । श्मत्र हरित्वर्ण था ।- दन्त वहि- वखका कायदा। भांग पर्यन्त विस्त त थे। कालनेमिने खोय. प्रतापके Vol. IV. 142 काना -1 1
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५६४
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