पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५९८

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नाता कालो भन्दकारिणौ, भयहरमूर्ति, श्मशानवासिनी, परुण पुराणों में मार्कण्डेय पुराव अपेक्षाकृत प्राचीन तुष्यन्नीचनत्रयविशिष्टा, करालदन्ता, दक्षिणानन्याधि गिना जाता है । जिस देवीमाहात्माके पढने या सुनने. से इन्द्र के ऐवयं तुत्य ऐखयं भोग किया जाता, वह मुक्तकेगपाशयुक्ता, शवरूपिमहादेव-हदयस्थिता, भय- अरशदकारिशिवागणपरिवेष्टिता, महाकाल के साथ चण्डी नामक अपूर्व पुस्तक भी मार्कण्डेयपुराणके विपरीत सङ्गममें प्रासक्ता पौर सुखप्रसन्नवदना हैं । ही अन्तर्गत पाता है। कालिका मूर्ति को उत्पत्ति- इसीप्रकार सर्वकामार्थसिद्धिदायिनी कालोको चिन्ता कथा चण्डीमें दो स्थान पर कही है। प्रथम,- करना चाहिये। महिषासुरके वध पीछे देवता, शुम्भ-निशुम्भके पत्या. महाकाली, दक्षिणकाली, भद्रकाली, श्मशान चारसे उत्योड़ित हो देवीका स्तव करते थे । उसो काली, गुह्यकाली और रक्षाकाली प्रभृति नामानुमार समय भगवतीने जाडवीजन में मानार्थ जानके छलसे कालीमूर्ति के विविध भेद हैं। देवो मूलप्रकृति है। उनके निकट उपस्थित हो पूछा था-'तुम यहां क्यों स्वल्पवुद्धि और दुर्बल मानके उपासना कार्य में पाये हो, देवतावो के उता प्रश्रका उत्तर देनेसे पहले सुविधा करनेके लिये तन्त्रादि शास्त्र में उक्त प्रकृतिक ही भगवतीके शरीरमे शिवा पम्बिकाने निकल कर कहा काली, तारा प्रकृति नाम और रूप कल्पित हुये हैं। 'दैत्यपतिकक निराकृत और तदीय महानhिणतन्त्र में भी ऐसा ही लिखा है, निशुम्भकटक पराजित हो देवता हमारा स्तव करते "सपासकामां कार्याय पुष कथितं पिये। है। अम्बिका भगवसोके शरीरकोषसे निकनी थों । गुणमियानुसारय रूपं देव्याः प्रकसितम्" इसीसे वह कोषिको नामसे विख्यात हुयौं और हिमा. (महानिर्वाण, १३ उल्लास) चलपर रहने मगौ । कोषिकोको उत्पत्तिके पीछे उपासकोदो कार्य के लिये हो गुणभियानुसार | भगवतीने भी स्त्रीय गौरवर्ण छोड़ कृष्णवर्ण धारण देवीका रूप कल्पित होता है। किया था। इससे वह भी 'कालिका' कहायों और पाद्य शक्तिको प्रधान मूर्ति काली है। शानों में हिमाचल पर हो रहने नगीं । उक्त स्थल पर प्राय: दश भाने लोग उक्त मूर्ति के उपासक हैं। भग चण्डोमें नहौं लिखा उन कालिकाका क्या रूप था? वतीको जिसनी मूर्ति हैं, उनमें दुर्गा और काली फिर हितीय स्थान पर चण्डों में काली मूर्ति को कथा मूर्ति का बहुत प्रचार है। सहज ही निर्णय करना इस प्रकार लिखी है,-कोषिको हुदारसे शम्भक दुःसाध्य ई-कितने समयले उक्त मूर्ति की कल्पना की सेनापति धूम्रलोचन भनीभूत इये । फिर भने गयी है। अनेक पाचात्य पण्डितों और तन्मतावलम्बी चण्डमुण्ड नामक दो प्रचण्ड सेनापति बहु सैन्य दे प्राच्य विद्वानों के कथनानुसार कालोको मूर्ति हिन्दूवो कोषिकीको पकड़ने के लिये भेजे । चण्डमुण्ड सैन्यबत्त को मौलिक न थी, वह भारत पादिम अधिवासी परिडत हो महादसे देवीके निकट हिमाचल पर अनार्यो को देवदेवीसे संगृहीत हुयी । नहीं समझ उपस्थित हुये। देवीने उनका दर्प देख ईषत् हास्य पहता वैसो कल्पनामें कोई फन्त है या नहीं। कारण माव किया था। चामुण्ड पहुंचते ही उन्हें पकड़ने अनेकानेक प्राचीन पुराणों में भगवतीको उक्त मूर्ति का | को पागे पदे । पास जाने पर देवीने महाक्रोधसे वर्णन मिलता है । फिर भी इतना मानना पड़ेगा उनको भोर देखा था । क्रोधसे उनका मुखमण्डल कि तान्त्रिक युगमे ही उक्त मूर्ति की उपासनाका काला पड़ गया। फिर उनको कुटिकुटिल * ललाट- नानाविध विधि नियम बना और चचा है। संव से प्रति योध्र एक देवो निकदी थौं । फिर वह असरों की बात कोड़ पागे वट देखना चाहिये-पुराणादि- में भगवतीको पालीमति की उत्पत्ति, पूजा, ध्यान प्रत्यादिके सम्बन्धमें क्या विवरण मिलता है। • मार्कणेय चणी-भर-काद, - शोक । Vol. IV. 1 151