कारण
काश स्पर्शसे यातना मा म होती है । बहु भोजन करते भी श्यक है। कफ पसला रहनेसे स्निग्ध एवं गोतल रोगी दुवान और कश रहता है । मुख प्रसन्न और भोज्यादि और कफ धन रहनेसे रुन तथा शीतल सिग्ध तथा चक्षु प्रियदर्शन लगता है। इस्त एवं भोज्यादि व्यवहार कराना चाहिये। पदतल मसूण पड़ जाता है । वृणा और हिंसा अधिक कफज कासमें रोगीको बलवान् रहनेसे प्रथमतः परिमाणमें पाती है। हिदोष वा विदोषके वमन करा शुद्ध करना उचित है । उसके पीछे कटुरस- ज्वर, पाचवेदना, पीनस और अरुचिका प्राबल्य होता युक्त, रूक्ष और उक्त यवागु भृति सेवन करा अन्यान्य है । कभी पतला और कभी कठिन मन निकलता है। औषध व्यवहार कराना चाहिये। स्वरभेद प्रकारण हुवा करता है। क्षयन कासमें प्रथमतः शरीर तुष्टिकारक और उक्त पांच प्रकारको कासमें वातज, पित्तज और अग्निदीप्तिकारक द्रव्यादि खिनाते हैं। दोष अधिक कफज साध्य है। क्षयकास खभावतः याप्य होता है। रहनेसे स्नेह द्रवाके साथ मुटु विरेचन देना उचित है। किन्तु चयन कास बहुत दुर्बल और चीण व्यक्तिके उसके पीछे अन्यान्य औषध व्यवहार कराना चाहिये। लिये प्राणघातक है । फिर बलवान् वाचिके क्षयज विश्व, श्योनाक, गाम्भारी, पाटला एवं गणिकारी कास उत्पन्न होते ही चिकित्सा करनेसे साध्य भी हुवा पञ्चमूल, अथवा शालपर्णी, चश्मद, बहती, कण्टकारी करता है। तथा गोक्षुर पञ्चमूतका क्वाथ प्रस्तुत करा पिप्पनि एतशिव जराकास नामक एक प्रकार कास होता प्रक्षेपके साथ पान करनेसे वातज काशका उपशम है। वह स्वभावतः ही याप्य है। होता है॥१॥ रूक्ष व्यखिको वायुजन्य कासमें प्रथमतः वायु. . वाव्यालका, हतो, कण्टकारी,-वासकल भोर नाशक ट्रया समूह द्वारा सिह वस्ति; चौर, यूष एवं ट्राचा समुदायका क्वाथ शर्करा तथा मधु मिलाकर मांस रसादिक साथ निग्ध पेय द्रव्य, स्नि प धूम, पोनेसे वित्तज काश प्रथमित होता है॥२॥ स्मिगध पवलेह, स्नेहाभ्यन, स्नेह परिषेक और स्निग्ध कुष्ट, कटुफल, बाधणयष्टिका, शदी पौर पिय- खेद प्रदान करना चाहिये। उसके पछि अन्यान्य औष- लीका काय पान करने से मन कास दब जाता है। धादि वावहार करना पड़ता है। मलबद्ध रहने तद्विव प्रवास और वचोवदना भी निसवत होती है। वस्तिकम, अवंधात होनेसे भोजन के पूर्व वृतपान, समाज कासके साथ पाच वेदमा, ज्वर और खास पित्त एवं कफसंयुक्त वातज कासमें स्नेह विरेचन रोग रहनेसे विल्य, सोनाक, गाम्भारी, पाठला, गणि दमा पड़ता है। कारो, शान्तपर्णी, चक्रमर्द, बहती, कण्टकारी, तथा पित्तजन्य कासके साथ कफका विशेष अनुवन्ध गोचर दशमूलका क्वाथ .विष्यलो चौके साथ पान रहनेसे वमनकारक घृतपान हारा, किंवा. मदनफल, गम्भारोफल एवं यष्टिमधुके क्वाथ जन हारा, अथवा करना चाहिये ॥४॥ कटफस, गन्धप, ब्राधणयष्टिका, मुस्ता, धना, भूमिकुमाण्डरस, तथा पुरसके साथ यस्मिधु और मदनफलके कस्तपान द्वारा प्रथमतः वमन कराते हैं। देवदारु सकल ट्रव्यका क्वाथ मठ एवं हित के साथ वचा, हरीतको, कर्कटमङ्गो, त्यापडा, शुण्ठी और वमनहारा दोष निःसारित होने पर गौतन और मधुर- पौनेसे वातासजन्य कास निवारित होता है . । रसयुक्त पेयादि पिलाना चाहिये। उसके पीछे अन्यान्य पौषधका वावहार कर्तव्य है। किन्तु कफका अनुवन्ध तद्विब कण्ठरोग, क्षयरोग, शून, खास, हिक्का भोर अप रहनेसे वमन न करा सधुररसके साथ विष्ठत् ज्वरादि उपद्रवको भी शान्ति देख पड़ती है।५। 'चूर्ण द्वारा विरेचन कराना चाहिये । कफ रहनेसे तिल कण्टकारिका वाथ. पिप्पलीचूर्णके साथ पान रसविशिष्ट ट्रयके साथ विवत् चूर्ण का प्रयोग भाव. करनेसे सविध कासका उपशम होता है।।६म तान्तीधादि चूर्ण, मरिचादि . समयकरचणं, Vol. IV. 155